हिंदुस्तान के हुनरमंद -5: सिकी कलाकार नाजदा खातून ने दादी से सीखकर घास को बनाया हथियार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-03-2023
 नाजदा खातून ने दादी से सीखकर घास को बनाया हथियार
नाजदा खातून ने दादी से सीखकर घास को बनाया हथियार

 

अर्चना

 तेरह साल की उम्र में शादी करके ससुराल पहुंची नाजदा खातून (57) को परिवार की माली हालत ने लंबे संघर्ष के लिए मजबूर कर दिया. समय बीतने के साथ पांच बच्चे हो गए. पति मोहम्मद जासिम किराए पर रिक्शा चलाते थे.

दिन भर की कमाई से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था. पति का हाथ बंटाने के लिए सिलाई सीखी, लेकिन वह आमदनी बढ़ाने का जरिया न बन सकी. लोग कपड़े सिलाने के बदले थोड़ी दाल, चावल अथवा गेहूं दे दिया करते थे.

मगर शादी से पहले नाजदा खातून ने अपनी दादी स्व. हसीना से सिकी घास सामाान बनाने की कला सीखी थी. उसी कला को उन्होंने फिर आजमाया. कुछ दिनों बाद मेहनत रंग लाने लगी. अब वह इस कला की ट्रेनर भी बन चुकी हैं और इन्हें बिहार सरकार से स्टेट अवार्ड मिल चुका है.

पति का रिक्शा चलाना भी बंद करा दिया. इसी कला से पूरे परिवार का खर्च आसानी से चलने लगा है. साथ ही सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी हैं.

अशिक्षित नाजदा की शिल्पकारी कमाल की

बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली शिल्पकार नाजदा खातून ने एक मुलाकात में अपने संघर्ष की कहानी शेयर की. उन्होंने बताया कि उनके गांव में स्कूल की सुविधा न होने के कारण वह पढ़ाई नहीं कर पायी थीं. वह पूरी तरह अशिक्षित हैं.

मगर उनके बनाई कलाकृतियां और सामान कमाल के हैं. नदी और तालाबों में होने वाली सिकी घास से वह विभिन्न प्रकार के सामान बनाती हैं. इस घास से देवी-देवाओं की आकृति, पेड़ पौधे, शादी ब्याह का सामान, डाली, फलदानी, सिंदूरा, रोटी डिब्बा, कछुआ बैग, लैंप सेट, मैट के अलावा कान की रिंग, हाथ की चूड़ियां, चिड़िया का घोसला, कबूतर, गुलदस्ता आदि सामान बनाती हैं.

घास बनी रोजगार का जरिया

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/167783905002_Indian_craftmen_Siki_artist_Najda_Khatoon_learned_from_her_grandmother_to_make_grass_a_weapon_2.jpg

नाजदा ने बताया कि वे नदी और तालाबों में उगने वाली घास को काटकर लाती हैं. उसे बीच से चीरकर सुखाती हैं. फिर पानी में उबालकर घास को चावल की तरह पकाती हैं. पक्के रंग से विभिन्न रंगों में उसे रंगती हैं. फिर उसे धोकर- सफाई कर सामान बनाती हैं.

अब यही घास इनके रोजगार का जरिया बन गया है. इसी कला से परिवार का खर्च भी चल रहा है और तीन बेटियों की शादी भी कर चुकी हैं. बिहार सरकार से स्टेट अवार्ड मिलने के बाद अपने पति का रिक्शा चलाना भी बंद करा दिया है. पति मोहम्मद जासिम भी कारोबार मंे हाथ बंटाते हैं.

ऐसे किया मुकाम हासिल

नाजदा खातून बताती हैं कि जब वह दस साल की थीं, तो उनकी दादी हासीना सिकी घास से डोलची आदि बनाया करती थीं. दादी जब सामान छोड़कर कहीं चली जाती थी, तो चोरी-छिपे उसी सामान पर वह भी हाथ आजमाती.

कई बार सामान खराब हो जाने पर उनकी पिटाई भी होती थी. डेढ़ दो साल में आखिरकार उन्होंने दादी से यह कला सीख ही ली. 13 साल की उम्र में शादी हो गई. इनके पति मो. जासिम रिक्शा चलाया करते थे, क्योंकि जमीन अधिक थी नहीं.

रिक्शा चलाकर पति परिवार का खर्च चलाते थे. समय बीतने के साथ ही पांच बच्चे भी हो गए. परिवार का खर्च बढ़ गया. फिर सिलाई काम सीखकर लोगों के कपड़े सिलने लगी. उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. गांव के लोग पैसे देने के बजाय थोड़ा बहुत राशन दे दिया करते थे. इसके बाद नाजदा ने अपनी दादी मां से सीखी कला से आगे बढ़ने का प्रयास किया.

पति के पैसे चुराकर शुरू किया काम

नाजदा कहती हैं कि उनके पति रिक्शा चलाकर जो कमाते थे, उसमें से दो-तीन रुपए चुराए और बाजार जाकर सिकी घास खरीद लाईं. उससे सामान बनाकर पहले गांव में फिर बाजार, ब्लॉक और जिले में घूम-घूमकर बेचना शुरू किया.

वर्ष 1999 में उसी घास से लेडीज पर्स बनाकर बेचा. उससे करीब तीन हजार रुपए मिले. उसी पैसे से पति के लिए खुद का रिक्शा खरीदा. यहीं से हिम्मत बढ़ी. अपना रिक्शा होने पर पूरी कमाई घर में आने लगी. नाजदा खुद भी घास से रंग-बिरंगे देवी-देवताओं की आकृति बनाकर बाजारों में बेचने लगी.

फिर किसी ने वस्त्र मंत्रालय से संपर्क करने को कहा. नाजदा ने वस्त्र मंत्रालय जाकर अधिकारियों को अपने काम के बारे मंे बताया और अपनी बनाई आकृतियां दिखाईं. अधिकारियों ने कुछ दिन बाद ही उन्हें कोलकाता में आयोजित एक प्रदर्शनी में भेजा. वहां उनके सामानों की अच्छी बिक्री हुई.

राधा की प्रतिमा पर मिला स्टेट अवार्ड

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नाजदा कहती हैं कि कोलकाता से आने के बाद उन्होंने सिकी घास से ही भगवान शंकर की आकर्षक प्रतिमा बनाई. उसे वस्त्र मंत्रालय के अधिकारियों के पास ले गईं, लेकिन आकृति छोटी होने के कारण वह रिजेक्ट कर दी गई.

इसके बाद वर्ष 2010 में राधा की प्रतिमा सिर पर मटकी, कमर में मटकी, और हाथ में च्ूयिां पहने हुए बड़ी प्रतिमा बनाई. इसी प्रतिमा पर इन्हें वर्ष 2011 में बिहार सरकार की ओर से स्टेट अवार्ड से नवाजा गया. पुरस्कार मिलने के बाद इनके हौंसले ने उड़ान भरी. अब इन्हें सरकार की ओर से विभिन्न स्थानों पर प्रशिक्षण देने के लिए भेजा जाने लगा. अवार्ड मिलने के बाद पति ने वर्ष 2012 से रिक्शा चलाना बंद कर दिया.

अब पूरा परिवार इसी धंधे से जुड़ गया

नाजदा कहती हैं कि वस्त्र मंत्रालय की ओर से वह भुवनेश्वर में आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण दे चुकी हैं. इसके अलावा पटना व गुड़गांव मंे ऑनलाइन प्रशिक्षण् देती हैं. यूपी के गोरखपुर में भी प्रशिक्षण दिया है. इनके बनाए सामान देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचते हैं.

नेपाल मेले मंे भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी हैं. बिहार म्यूजियम खादी मॉल में भी अपने सामान की सप्लाई करती हैं. तीन बेटियां शबनम, रूसी व रूबी खातून भी इस कला में पारंगत हैं. शादी के बाद बेटियां भी इसी काम को करती हैं. इनके खानदान में कोई शिक्षित नहीं था.

लेकिन उन्होंने अपनी दो बेटियों और बेटे मो. आलमगीर को उनकी इच्छा के अनुसार पढ़ाया है. बेटा ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा है. साथ ही अपने काम को भी सीख रहा है. पांच-दस रुपए के लिए तरसने वाली नाजदा आज महीने में करीब 25 से 30 हजाार रुपए तक कमाती हैं. अब तक करीब 250 लड़कियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी हैं.