मंसूरुद्दीन फरीदी/नई दिल्ली
अमरोहा... बेशक दुनिया के नक्शे पर एक कस्बा होगा, लेकिन अमरोहा के लोगों के लिए यह एक दुनिया है. एक आकर्षक दुनिया. यादों से भरी दुनिया. दिलों-दिमाग में हमेशा खुश और खुशहाल रहने वाली दुनिया, जिसका जिक्र बुजुर्गों से लेकर आम लोगों तक इतिहास की किताबों मेंदर्ज है, लेकिन अमरोहा की एक खासियत है इस धरती से स्वाभाविक प्रेम.चाहे आप दुनिया में कहीं भी हों और किसी भी पेशे से जुड़े हों, इस भूमि की छाप और प्रभाव आपके दिलो-दिमाग पर जीवन भर रहेगा.
इसका एक नया उदाहरण हैं इनाम आबिदी अमरोहावी.दुबई स्थित एक सॉफ्टवेयर कंसल्टेंट और डिजिटल मार्केटर, जिनके लिए उनके दिल में धड़कता एक शहर ही उनकी दुनिया है, ने इसे एक किताब के रूप में प्रस्तुत किया है,जिसका शीर्षक है मेकिंग ऑफ ए कस्बा: द स्टोरी ऑफ अमरोहा.इसका उद्देश्य व्यावसायिक नहीं है, बल्कि दुनिया के उस वर्ग को इस भूमि के बारे में जानकारी देना जो उर्दू या हिंदी से परिचित नहीं है.
आपको बता दें कि इनाम आबिदी अमरोहवी ने कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर्स डिग्री हासिल की है.वह हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, गल्फ न्यूज और न्यूजलॉन्ड्री के साथ-साथ इन्फोस्टोर सहित विभिन्न समाचार पत्रों और आईटी पत्रिकाओं के लिए भी लेख लिखते हैं.
उन्होंने कहा कि यह पुस्तक महान सूफियों की भूमि अमरोहा के प्रति मेरे असाधारण और ईर्ष्यापूर्ण जुनून को भी मेरी श्रद्धांजलि है, जिसे अमरोहा के लोगों ने सांस्कृतिक रूप से जीवित रखा है.
अमरोहा ने दिखा दिया है कि आध्यात्म धार्मिक सीमाओं से परे है.जिससे आपसी सम्मान और बंधन पर आधारित सामंजस्यपूर्ण संस्कृति का निर्माण हो सके.लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है अमरोहा के प्रति प्रेम.यह शहर हर किसी के दिल में धड़कता है.जिसके इतिहास के पन्ने उर्दू लेखकों से लेकर कवियों और सूफियों तक के नामों से अटे पड़े हैं.
इलाहाबाद से लखनऊ
दरअसल, इनाम आबिदी के पिता उनकी शिक्षा के लिए अमरोहा से बाहर चले गए थे.इसके बाद नौकरियों के आदान-प्रदान का दौर चला.फिर 1970के दशक में उनका परिवार इलाहाबाद से लखनऊ आ गया.
वह कहते हैं कि लखनऊ में रहते हुए अमरोहा की ओर उनका आकर्षण उनके पिता के कारण था, जो अमरोहा से ताल्लुक रखते थे.अमरोहा को लेकर वे इतने संवेदनशील थे कि मैं बचपन में उनकी भावनाओं को समझ नहीं पाया.
लेकिन जब मेरे मित्र दिव्या अनुराग के पिता सूर्य प्रकाश सक्सेना अमरोहा से पहली बार लखनऊ में हमारे घर आए, तो वे मेरे पिता से इतने घुलमिल गए कि यह विश्वास करना कठिन हो गया कि वे पहली बार मिल रहे हैं.इसका कारण सिर्फ अमरोहा था.उस समय मुझे एहसास हुआ कि मातृभूमि के प्रति प्रेम क्या होता है.
क्यों और कैसे?
मृदुभाषी और बेहद विनम्र इनाम आबिदी ने आवाज द वॉयस को बताया कि इसके बाद मैंने अमरोहा की यात्रा शुरू कर दी.मैंने अमरोहा के इतिहास के बारे में बच्चों को जानकारी देने के लिए अंग्रेजी में सामग्री खोजी लेकिन ज्यादा कुछ नहीं मिला, जिसके बाद मैंने सोचा कि क्यों न अमरोहा पर एक किताब लिखी जाए जो कम से कम समय में अधिकतम जानकारी का स्रोत बन जाए.
उसी समय, मैंने शहर के बारे में एक व्यापक अंग्रेजी वेबसाइट के बारे में सोचा ताकि अमरोहा के इतिहास और विभिन्न पहलुओं की जानकारी अंग्रेजी में भी मिल सके.इसके बाद ही मैंने इस मिशन पर काम करना शुरू किया.
भले ही वह एक पुस्तक के मालिक बन गए
इनाम आबिदी ने अपनी पुस्तक तैयार करने के लिए अमरोहा की कई यात्राएं कीं.उन्होंने ऐसे लोगों से मुलाकात की जो शहर की विरासत से अच्छी तरह वाकिफ थे. उर्दू, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी सहित विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों का अध्ययन किया और कई यूट्यूब वीडियो देखे.यह एक नया अनुभव था.
इनाम आबिदी का कहना है कि पुस्तक को तीन भागों में विभाजित किया गया है: शहर का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास, शहर की कुछ प्रमुख हस्तियां और कुछ सांस्कृतिक पहलू.मैंने स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख हस्तियों का चयन विशुद्धतः उनके प्रभाव के आधार पर किया.
शहर के प्रसिद्ध नामों की एक विस्तृत सूची अमरोहा गेट पर उपलब्ध है.तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद 2023में 'मेकिंग ऑफ ए टाउन: द स्टोरी ऑफ अमरोहा' पुस्तक के रूप में अमरोहा के प्रति उनके अनूठे प्रेम का प्रमाण है, लेकिन यह अमरोहा के प्रति अपने पिता के प्रेम और उत्सुकता को देखने के बाद लखनऊ में उनके द्वारा देखे गए सपने की व्याख्या भी है.इस पुस्तक के प्रकाशन से एक वर्ष पहले उनके पिता का निधन हो गया था.
किताबों की बात करें तो
इनाम आबिदी की पुस्तक में छह अध्याय हैं, जिनमें से प्रत्येक अमरोहा के इतिहास और विकास के अलग-अलग पहलुओं पर प्रकाश डालता है.यदि प्रथम अध्याय में शहर के भूगोल, जलवायु और जनसांख्यिकी के साथ-साथ इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का अवलोकन प्रस्तुत किया गया है, तो दूसरे अध्याय में अमरोहा के प्रारंभिक इतिहास का वर्णन किया गया है.
तीसरे अध्याय में 1857 के विद्रोह में अमरोहा की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है.चौथे अध्याय में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि अमरोहा में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को मुसलमानों का समर्थन कैसे मिला.पांचवां अध्याय सबसे दिलचस्प है, जिसमें इनाम आबिदी ने अमरोहा के उल्लेखनीय कवियों, लेखकों और बुद्धिजीवियों के योगदान का उल्लेख किया है तथा उर्दू कविता और साहित्य में अमरोहा की भूमिका पर प्रकाश डाला है.
इसमें फिल्म निर्माता कमाल अमरोहवी, शायर रईस अमरोहवी, शायर जान एलिया, इतिहासकार प्रोफेसर खालिक अहमद निजामी, हामिद अली खान के साथ ही प्रसिद्ध चित्रकार जय कृष्ण अग्रवाल का भी जिक्र है.इसके साथ ही एक अध्याय में आम और मछली पर भी चर्चा की गई.
महत्वपूर्ण बात यह है कि इनाम आबिदी ने पुस्तक को अतीत तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि अमरोहा की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर भी चर्चा की है, जिसमें इसकी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को संरक्षित करते हुए आधुनिकीकरण और निवेश आकर्षित करने के लिए चल रहे प्रयास भी शामिल हैं.
अमरोहा नाम के बारे में किताब में लिखा है कि इस संबंध में कई दावे या अनुमान हैं.सबसे पहले, इसका संबंध अमरचोड़ा (या गलत वर्तनी 'अमरजोधा') से है, जो विश्वरावा की 10वीं पीढ़ी के एक राजपूत राजा थे, जिन्होंने 474ईसा पूर्व से इस स्थान को इंद्रप्रस्थ नाम दिया.बाद के वर्षों में इसका वर्तमान रूप 'अमरोहा' हो गया.
एक अन्य सिद्धांत के अनुसार यह नाम संभवतः 'अम्रवनम' (संस्कृत में 'अमरा' का अर्थ आम और 'वनम' का अर्थ जंगल या उद्यान होता है) शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है आम के पेड़ों से भरी भूमि। तीसरा सिद्धांत यह है कि इसका नाम 'आम' और 'रोहू' (एक लोकप्रिय दक्षिण एशियाई मछली) के नाम पर रखा गया है.
पुस्तक में अतीत में अमरोहा में लड़े गए युद्धों का भी उल्लेख है, जिसमें 1305में मंगोलों के खिलाफ लड़ा गया युद्ध भी शामिल है, जिन्होंने भारत पर विजय प्राप्त करने का एक और प्रयास किया था.
अली बेग और तर्ताक के नेतृत्व में 30,000 से 40,000 की सेना का सामना मलिक नायक के नेतृत्व में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की 30,000 की सेना से हुआ.अमरोहा में मंगोलों को भारी क्षति उठानी पड़ी, लड़ाकों के अलावा उनके 20,000घोड़े भी मारे गए.उनके नेताओं ने साम्राज्यवादी ताकतों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें मार दिया गया.
एक सुन्दर प्रयास
अमरोहा के प्रमुख बुद्धिजीवी और लेखक डॉ. मिस्बाह अहमद सिद्दीकी ने अमरोहा की कहानी की प्रस्तावना में कहा है कि ... यह एक खूबसूरत किताब है, इसके पन्नों पर अतीत को उकेरने का एक सफल प्रयास है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
मैं ईमानदारी से आशा और कामना करता हूं कि वह अपनी प्रिय भूमि के सभी साहित्यिक और ऐतिहासिक योगदानों को संकलित करने में सक्षम होंगे.उनके अनुसार अमरोहा सही मायनों में मुसलमानों के आगमन के बाद बारहवीं शताब्दी में अस्तित्व में आया.
यह भारतीय और फ़ारसी संस्कृति का एक सुंदर संगम है और इसने अपनी मूल भावना को बरकरार रखा है.अमरोहा साहित्य के इतिहास में एक उज्ज्वल प्रवेशद्वार के रूप में उभरा जब सूफियों ने इसे अपना घर बनाया.हज़रत शराफुद्दीन शाह वेलायत, हज़रत शाह नसीरुद्दीन, हज़रत ग़ाज़ुद्दीन, मुहम्मद जाफरी, हज़रत शाह अब्दुल हादी सिद्दीकी और हज़रत अबन बद्र चिश्ती, कुछ सूफियों में से हैं जिन्होंने अमरोहा में अपना नाम बनाया.
उन्होंने अमरोहा के पहलू पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह धरती एकता और भाईचारे की भी बेहतरीन मिसाल है.यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी लोग रहते आये हैं.महत्वपूर्ण बात यह है कि अमरोहा के इतिहास में कभी सांप्रदायिक हिंसा नहीं देखी गयी.यद्यपि अमरोहा के मुसलमान अलग-अलग विचारधाराओं और विश्वासों का पालन करते हैं, फिर भी वे परस्पर सम्मान दिखाते हैं.
इनाम आबिदी ने अपनी पुस्तक में अमरोहा के भाईचारे और धार्मिक सहिष्णुता का भी जिक्र किया है तथा उन त्योहारों पर प्रकाश डाला है जिनमें यह एकता दिखाई देती है.उन्होंने लिखा है कि इस भूमि पर हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई रहते आए हैं.
महत्वपूर्ण बात यह है कि अमरोहा के इतिहास में कभी सांप्रदायिक हिंसा नहीं देखी गई.यद्यपि अमरोहा के मुसलमान अलग-अलग विचारधाराओं और विश्वासों का पालन करते हैं, फिर भी वे परस्पर सम्मान दिखाते हैं.
साथ ही सांप्रदायिक सद्भाव एक प्रतिमान है, जिसका प्रमाण ईद से लेकर दिवाली तक मिलता है और यहां तक कि मुहर्रम में भी धार्मिक सहिष्णुता उभर कर सामने आती है.इनाम आबिदी के अनुसार, अमरोहा में एक संस्कृति, एक सूफी भावना और धार्मिक सहिष्णुता है.यही कारण है कि हाजी मुख्तार अहमद 'अनपढ़' भगवान कृष्ण की प्रशंसा करते हैं .
वेबसाइट भी लॉन्च की गई
इनाम आबिदी ने एक ओर जहां इस किताब का सपना पूरा किया, वहीं दूसरी ओर अब उन्होंने अमरोहा पर एक वेबसाइट Amrohvi.in लांच की है, जिसका उद्देश्य अमरोहा के इतिहास को अपने आगोश में संजोकर इस धरती से जुड़ी ऐसी शख्सियतों के बारे में विस्तृत जानकारी और साक्षात्कार प्रस्तुत करना है, जो इस समय दुनिया के कोने-कोने में विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं.
चाहे वे पत्रकार हों, खिलाड़ी हों, कवि हों या वैज्ञानिक हों.अमरोहा के समाचार निर्माताओं की सूची यहां दी गई है.इसके साथ ही इनाम आबिदी द्वारा स्वयं विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख भी प्रस्तुत किए गए हैं.एक सम्पूर्ण और रोचक वेबसाइट पर अमरोहा के उन व्यक्तित्वों के बारे में सारी जानकारी उपलब्ध है, जिनके बारे में आप जानते तो होंगे, लेकिन अमरोहा कनेक्शन के बारे में नहीं जानते होंगे.