UNSC में पाकिस्तान के झूठ का करारा जवाब

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-05-2025
A befitting reply to Pakistan's lies in UNSC
A befitting reply to Pakistan's lies in UNSC

 

saleem साकिब सलीम

"हम भारत के मुसलमान इन घटिया तानों के आदी हो चुके हैं... पाकिस्तान यह स्वीकार नहीं कर पा रहा कि भारत के मुसलमान उसकी कट्टर सोच को नकार चुके हैं."
 – सैयद मीर कासिम, 1965, संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण के दौरान

भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 का युद्ध सिर्फ सीमाओं पर नहीं लड़ा गया था, बल्कि यह एक वैचारिक युद्ध भी था — पाकिस्तान की उस थ्योरी के खिलाफ, जो भारतीय मुसलमानों को "शोषित अल्पसंख्यक" बताने की कोशिश में लगी थी.. लेकिन पाकिस्तान की इस कूटनीतिक चाल को संयुक्त राष्ट्र में दो भारतीय मुसलमानों — सैयद मीर कासिम और एम.सी. छागला — ने न केवल तार-तार किया बल्कि विश्व समुदाय के सामने भारत की धर्मनिरपेक्षता और मुसलमानों की निष्ठा का ऐतिहासिक प्रमाण पेश किया.

1947 से ही पाकिस्तान भारत को एक 'हिंदू बहुल राष्ट्र' बताकर यह सिद्ध करने की कोशिश करता रहा कि मुसलमान यहां असुरक्षित हैं. इसी नैरेटिव को लेकर 1965 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर में 'मुसलमानों की रक्षा' के नाम पर हमला किया, तब उसकी असलियत को उजागर करने का काम किया सैयद मीर कासिम ने..

तब कांग्रेस नेता कासिम, जो बाद में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने, संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. उन्होंने पाकिस्तान के विदेश मंत्री के बयानों का सिलसिलेवार खंडन करते हुए कहा:"मैं खुद एक कश्मीरी मुसलमान हूं. हमारे देश में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता, न राजनीति में और न सामाजिक जीवन में। पाकिस्तान के विपरीत हम धर्म को राष्ट्रवाद का मापदंड नहीं मानते."

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह की बात करके दुनिया को गुमराह कर रहा है, जबकि कश्मीर का भारत में विलय वहां की सबसे लोकप्रिय राजनीतिक पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस की सहमति से हुआ था. उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 1947 में जब पाक समर्थित कबायली हमलावर घाटी में घुसे, तो स्थानीय मुस्लिमों ने मिलिशिया बनाकर उनका विरोध किया.

सैयद मीर कासिम ने नेहरू के बयानों को उद्धृत करते हुए स्पष्ट किया कि जनमत संग्रह की पेशकश सशर्त थी और पाकिस्तान ने उन शर्तों का उल्लंघन किया.उन्होंने कहा:"हमारे लोग न केवल भारत में विलय के पक्ष में रहे हैं, बल्कि उन्होंने दो बार — 1947 और अब 1965 में — पाकिस्तान की आक्रामकता का खून से जवाब दिया है। इससे बड़ा जनमत क्या होगा?"

सिर्फ महासभा ही नहीं, सुरक्षा परिषद में भी भारत की ओर से एक मुस्लिम प्रतिनिधि ने मोर्चा संभाला. एम.सी. छागला, उस समय भारत के शिक्षा मंत्री और अनुभवी राजनयिक थे। उन्होंने पाकिस्तान के उस झूठ का जवाब दिया जिसमें कहा गया था कि भारत के मुसलमानों को पूर्वी पाकिस्तान में धकेला जा रहा है.

छागला ने दो टूक कहा:"भारत में मुसलमान कोई छोटे मोटे अल्पसंख्यक नहीं हैं. वे यहां के धरती पुत्र हैं। हम दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मुस्लिम देश हैं। हमारे संविधान में उन्हें सभी मौलिक अधिकार मिले हैं। यहां कोई फर्स्ट क्लास या सेकेंड क्लास नागरिक नहीं है."

उन्होंने आगे कहा कि भारत की सभ्यता अनेक संस्कृतियों का संगम है और इसमें मुसलमानों का योगदान अविस्मरणीय है..

छागला ने सुरक्षा परिषद में यह भी स्पष्ट किया कि भारत को अपनी सीमाओं की रक्षा करने और पाकिस्तान की आक्रामकता के खिलाफ सशस्त्र बलों का प्रयोग करने का पूरा अधिकार है। उन्होंने नियंत्रण रेखा के पुनः निर्धारण की बात भी सामने रखी.

2025 में जब एक बार फिर भारत को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सामना करना पड़ा है, और 'ऑपरेशन सिंदूर' जैसी सर्जिकल कार्रवाई की गई है, तो पाकिस्तान की प्रचार मशीन फिर से वही पुराना राग अलाप रही है — कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं और वे पाकिस्तान के साथ हैं..

ऐसे समय में 1965 की यह ऐतिहासिक घटना भारतीय मुसलमानों की निष्ठा और राष्ट्रवाद का प्रमाण बनकर सामने आती है. यह दिखाती है कि मुसलमान न सिर्फ भारत की आत्मा हैं, बल्कि उसकी सुरक्षा, एकता और गरिमा के सबसे बड़े रक्षक भी हैं.

1965 की तरह, आज भी भारतीय मुसलमान पाकिस्तान के दुष्प्रचार के खिलाफ खड़े हैं. वे बार-बार यह दिखा चुके हैं कि उनका राष्ट्र प्रेम किसी प्रमाण पत्र का मोहताज नहीं. भारत में उनका स्थान बराबरी का है — और यही बात उन्हें गर्व और गरिमा से भर देती है.