यह गीत था — "ऐ मेरे वतन के लोगों"
लता की आवाज़, देश की आत्मा की गूंज
इस गीत को स्वर दिया था भारत की कोकिलकंठी — लता मंगेशकर ने. लता दीदी के स्वर जैसे ही गूंजे, पूरे स्टेडियम में सन्नाटा छा गया. हर शब्द, हर सुर शहीदों की कुर्बानियों की कहानी कह रहा था. जब लता मंगेशकर ने गाया — "जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली...", तो लोगों की आँखें भर आईं. गीत पूरा होते-होते माहौल एक श्रद्धांजलि सभा जैसा बन चुका था.
गीत की रचना और उद्देश्य
यह अमर गीत कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया था और इसका संगीत सी. रामचंद्र ने दिया था. इस गीत का उद्देश्य सिर्फ शहीदों को श्रद्धांजलि देना ही नहीं था, बल्कि पूरे देश को एक सूत्र में बाँधना था. यह गीत उस समय के भारत की पीड़ा, गर्व और एकजुटता का प्रतीक बन गया.
नेहरू की आँखों में आँसू
कार्यक्रम के समाप्त होते ही आयोजकों ने लता मंगेशकर को बताया कि प्रधानमंत्री उनसे मिलना चाहते हैं. लता दीदी ने बाद में याद करते हुए कहा, "पहले तो मैं घबरा गई. मुझे लगा शायद कुछ गलती हो गई है. लेकिन जब मैं पंडितजी से मिली, तो उनकी आँखों में आँसू थे.उन्होंने कहा — 'लता, तुमने आज मुझे रुला दिया.'"
पंडित नेहरू के लिए यह सिर्फ एक गीत नहीं था — यह उन जवानों की याद थी जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. उन्होंने आगे कहा था — "जो लोग 'ऐ मेरे वतन के लोगों' से प्रेरित महसूस नहीं करते, वे हिंदुस्तानी कहलाने के लायक नहीं हैं."
लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं एक अद्वितीय क्षण, जो इतिहास बन गया
यह पल भारतीय इतिहास का एक भावनात्मक अध्याय बन गया. ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ महज एक गीत नहीं रहा, यह राष्ट्रभक्ति की आत्मा बन गया. इसके बाद यह गीत हर भारतीय समारोह में, विशेषकर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर, एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि के रूप में गाया जाने लगा.
लता मंगेशकर: स्वर से अमरता तक
लता मंगेशकर का निधन 6 फरवरी 2022 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में हुआ. वे 92 वर्ष की थीं और उनका जीवन भारतीय संगीत का एक स्वर्णिम अध्याय था. 73 वर्षों से भी अधिक के करियर में उन्होंने 36 से अधिक भाषाओं में 25,000 से ज्यादा गाने गाए. उनका पहला गाना मात्र 13 वर्ष की उम्र में मराठी फ़िल्म 'किती हसाल' के लिए रिकॉर्ड हुआ था.
उनका अंतिम रिकॉर्डेड गाना 2021 में फिल्मकार विशाल भारद्वाज और गीतकार गुलज़ार के साथ था — ‘ठीक नहीं लगता’ — जो दर्शाता है कि उनके स्वर में वही जादू अंत तक बरकरार रहा।
एक गीत, जो हमेशा जीवित रहेगा
‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रभावशाली है जितना 1963 में था। यह गीत आज भी स्कूलों, कार्यक्रमों और परेडों में बजता है और हर बार वही भावना फिर से जाग उठती है — कि हम अपने उन शहीदों को कभी न भूलें जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व दे दिया.
लता मंगेशकर नहीं रहीं, लेकिन उनका स्वर, उनका भाव, और उनका यह गीत — भारत की आत्मा में सदैव जीवित रहेगा.
जय हिंद।
( लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)