आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
पाकिस्तान की पहले से ही खस्ताहाल अर्थव्यवस्था अब पूरी तरह चरमरा गई है. भारत द्वारा किए गए दो दिवसीय ऑपरेशन सिंदूर के बाद हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि पाकिस्तान को एक बार फिर दुनिया के सामने मदद के लिए कटोरा लेकर खड़ा होना पड़ा है.
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में भारत की सख्त सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की पोल खुलती जा रही है—चाहे वह आतंकवाद को समर्थन देने का मामला हो या फिर आर्थिक कंगाली का.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान सरकार ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल के ज़रिए एक बयान जारी किया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से और अधिक आर्थिक सहायता यानी ऋण की मांग की गई है। बयान में कहा गया है:
“पाकिस्तान सरकार ने दुश्मन द्वारा किए गए भारी नुकसान के बाद अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों से अधिक ऋण की अपील की है. बढ़ते युद्ध तनाव और घरेलू शेयर बाजार में भारी गिरावट को देखते हुए हम वैश्विक समुदाय से तनाव को कम करने में सहायता की अपील करते हैं. साथ ही देशवासियों से आग्रह किया जाता है कि वे संयम और एकता बनाए रखें.”
यह बयान केवल आर्थिक संकट की तस्वीर पेश नहीं करता, बल्कि यह भी साफ कर देता है कि पाकिस्तान अब पूरी तरह से बाहरी देशों की दया पर निर्भर हो गया है.
हालांकि, पाकिस्तान की यह स्थिति नई नहीं है. कई वर्षों से उसकी अर्थव्यवस्था चीन, अमेरिका, तुर्की और खाड़ी देशों की मदद पर टिकी हुई है. फिर भी, भारत से युद्ध छेड़ने का दुस्साहस पाकिस्तान दिखा रहा था, लेकिन उसे अच्छी तरह से मालूम था कि युद्ध की केवल एक आहट भी उसकी पहले से टूटी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर देगी.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की तरफ से दी गई सख्त सैन्य प्रतिक्रिया और सीमित समय में हुए नुकसान ने पाकिस्तान को कटोरा उठाने पर मजबूर कर दिया. वह अब युद्ध की आड़ में भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहानुभूति और आर्थिक मदद की उम्मीद कर रहा है.
गौरतलब है कि पाकिस्तान पर पहले से ही कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं, जिनकी वजह आतंकियों को पनाह देना, धनशोधन और उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार है. FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के बावजूद पाकिस्तान को अब भी वैश्विक समुदाय पर भरोसा नहीं है, और यह भरोसा भी शायद एकतरफा ही है.
आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान की स्थिति ‘कृत्रिम सांसों’ पर टिकी है. इमरान खान की सरकार हो या मौजूदा नेतृत्व—सभी ने आर्थिक सुधार की बजाय विदेशों से मदद लेने को ही प्राथमिकता दी है.
भारत की नीति अब स्पष्ट हो चुकी है—आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस। पाकिस्तान द्वारा भेजे गए आतंकियों की घुसपैठ के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर ने यह दिखा दिया कि भारत अब सिर्फ कड़ी निंदा या डोज़ियर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ज़मीन पर ठोस कार्रवाई करेगा.
अब जबकि पाकिस्तान खुद अपने हालात की गंभीरता को मान चुका है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर मदद की गुहार लगा रहा है, सवाल यह है कि क्या आतंकवाद की नीति और झूठे राष्ट्रवाद के नाम पर उकसाई गई युद्ध की राजनीति आखिर पाकिस्तान को कहां ले जाएगी?
भारत के खिलाफ जंग की बातें करने वाला यह पड़ोसी देश अब उसी जंग की आहट से कांप रहा है, और मजबूर होकर हाथ फैलाए खड़ा है. ये हालात न सिर्फ पाकिस्तान के लिए चेतावनी हैं, बल्कि उन तमाम मुल्कों के लिए भी सबक हैं जो आतंकवाद को विदेश नीति का हथियार मानते हैं.