हिंदुस्तान के हुनरमंद-3: सहारनपुर की काष्ठ कला को नए आयाम दे रहे दानिश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] • 1 Years ago
सहारनपुर की काष्ठ कला को नए आयाम दे रहे दानिश
सहारनपुर की काष्ठ कला को नए आयाम दे रहे दानिश

 

अर्चना 

यूपी के सहारनपुर निवासी दानिश के पूर्वज जमींदार थे. करीब 20 बीघा जमीन थी. इनके दादा मो. इस्लाम खेतीबाड़ी किया करते थे. सरकार को अनाज का गोदाम बनाने के लिए जगह की जरूरत पड़ी, तो जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया. जब कमाई का कोई जरिया नहीं बचा, तो पिता अल्ताफ ने फर्नीचर का कारोबार शुरू किया. पहले तख्त, मेज, कुर्सी आदि बनाकर बेचा करते थे. लेकिन अपेक्षा के अनुरूप आमदनी नहीं हो पाती थी.

घर का खर्च मुश्किल से चलता था. उसमें भी कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगा रहता था, क्योंकि अधिग्रहण की गई जमीन का मुआवजा लिया नहीं था. मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है. पिता को मेहनत करते देखा, तो दानिश ने भी 14 साल की उम्र मंे फर्नीचर का सामान बनाना सीखना शुरू किया.

शुरूआत में तैयार माल की बिक्री भी मुश्किल से होती थी, लेकिन हार नहीं मानी. करीब 28-30 बाद के संघर्ष के बाद आज दानिश ने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया. अब महीने में 55 से 60 हजार रुपए तक की आमदनी हो रही है.

15 लोगों को दिया रोजगार

एक मुलाकात में कारोबारी दानिश का कहना है कि शुरूआत के दिनों में अपने पिता के साथ मिलकर मेहनत करते रहे. फर्नीचर घर पर ही तैयार कर उसे बाजारों में बेचते थे. घर का खर्च चलाने के लिए 4-5 साल तक दूसरों के यहां काम किया.

महीने भर काम करने के बाद 1500 से दो हजार मिलते थे. पैसे एकत्र करके छोटा का कारखाना खोला. वहां विभिन्न प्रकार के नक्काशीदार फर्नीचर बनाने शुरू किए. काम बढ़ा, तो आसपास के लोगों को प्रशिक्षण देकर उन्हें काम पर रख लिया. आज 15 लोग कारखाने में काम करते हैं.

देश के विभिन्न राज्यों में जाता है फर्नीचर

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दानिश बताते हैं कि अब वह अपने बनाए हुए फर्नीचर को लेकर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, जम्मू एंड कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि तक लेकर जाते हैं. इन राज्यों में लगने वाले बड़े मेले और प्रर्दशनी में शामिल होते हैं. कारखाने में काम करने वाले कर्मचारियों का मेहनताना निकालने के बाद महीने मंे 55 से 60 हजार रुपए तक कमा लेते हैं. इसमें पूरा परिवार साथ दे रहा है.

कारोबार का पूरा जिम्मा दानिश पर

दसवीं तक पढ़ाई करने वाले 40 वर्षीय दानिश बताते हैं कि फर्नीचर कारोबार का पूरा जिम्मा उनके ही ऊपर है. सामान लेकर कहां जाना है, कौन से आइटम ले जाने हैं, उन सभी को वह खुद तय करतेे हैं. यूपी सरकार की ओर से भी बराबर सहयोग मिलता है. बड़े-बड़े मेले और प्रदर्शनी में शामिल होने के लिए उन्हें भेजा जाता है. आज ये 20 हजार से लेकर पौने दो लाख रूपए तक के फर्नीचर बनाते हैं.

उन्हांेने बताया कि इस काम में उनके भाई सूफियान भी मदद करते हैं.

ऑन डिमांड शादी का फर्नीचर 

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दानिश कहते हैं कि यूपी का सहारनपुर फर्नीचर का हब माना जाता है. यहां के बने फर्नीचर पूरी यूपी समेत अन्य राज्यों में सप्लाई की जाती है. उन्होंने बताया कि शादी में ऑन डिमांड फर्नीचर तैयार करके न केवल सहारनुपर, बल्कि आसपास के जिलों में भी सामान भेजते हैं. उन्होंने बताया कि अब फर्नीचर ही उनके परिवार के लिए रोजगार का माध्यम बन गया है. जिले के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वह फर्नीचर में होनी वाली नक्काशी का प्रशिक्षण भी देते हैं.

फैशनेबल नक्काशी

दानिश का कहना है कि समय के साथ नए-नए फैशन बदलते रहते हैं. प्रचलित फैशन के अनुसार ही फर्नीचर पर नक्काशी करके उसे आकर्षक बनाते हैं. ज्यादातर डिजाइन अपनी सोच के अनुसार बनाते हैं. कई बार बड़े-बड़े महानगरों में फर्नीचर के फैशन को देखकर डिजाइन तैयार करनी पड़ती है. अब तो फर्नीचर को नया लुक देने के लिए पीतल का भी प्रयोग होने लगा है.

उत्तराखंड व आसाम से मंगाते हैं लकड़ी

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उन्होंने बताया कि फर्नीचर बनाने में शीशम, सागवान और आसाम टीक का प्रयोग करते हैं. शीशम की लकड़ी को अपने प्रदेश में यूपी से ही मिल जाती है. जबकि सांगवान के लिए उत्तराखंड और आसाम टीक के लिए आसाम से लकड़ी मंगानी पड़ती है. इन लकड़ियों से सोफा, बेड, डाइनिंग टेबल, वाकिंग चेयर, झूला आदि सामान बनाते हैं.

ग्राहकों की डिजाइन का सामान

उन्होंने बताया कि कई बार ग्राहक अपने हिसाब से डिजाइन दिखाकर फर्नीचर की डिमांड करते हैं. फिर वह ग्राहकों की डिमांड के बताए हुए डिजाइन के अनुसार फर्नीचर तैयार करते हैं. उनका है कि आज के 28-30 साल पहले जो परेशानी झेली थी, अब वह नहीं है. उनका कारोबार पूरे साल चलता है.

उनकी कलाकारी को देखकर ही सरकार इन्हें लखनऊ महोत्सव में भी बुलाती है. इनकी इच्छा है कि सरकार हुनर हॉट जरूर लगाए, ताकि शिल्पकारों को अपनी हुनर दिखाने का मौका मिले. साथ ही एक ऐसा प्लेटफार्म तैयार किया जाए, ताकि शिल्पकारों के बनाए फर्नीचर विदेशों तक पहुंच सके.

 

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