कनबाई शिवजी हिराणी: 1971 भारत-पाक युद्ध में भारतीय वायुसेना की गुमनाम नायिका

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 06-05-2025
Kanbai Shivji Hirani: This is how she helped the Indian Air Force in the 1971 Indo-Pak war
Kanbai Shivji Hirani: This is how she helped the Indian Air Force in the 1971 Indo-Pak war

 

आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली 
 
8 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान, दुश्मन के विमानों के एक स्क्वाड्रन ने भारतीय वायुसेना की पट्टी पर 14 नेपलम बम गिराए. इस प्रभाव से रनवे क्षतिग्रस्त हो गया और लड़ाकू विमान उड़ान नहीं भर सके. समय बीतने के साथ, सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने इसे ठीक करने के लिए कदम बढ़ाया, लेकिन उनके पास मज़दूरों की कमी थी. इस समय, भुज के माधापुर गाँव से 300 लोग, जिनमें मुख्य रूप से महिलाएँ थीं, अपने देश की सेवा के लिए आगे आईं.

महिलाओं ने अपने आस-पास के माहौल से बचने के लिए हल्के हरे रंग की साड़ियाँ पहनीं और दिन-रात हवाई पट्टी की मरम्मत में जुट गईं. जब भी IAF को दुश्मन के हमले का आभास होता, तो अलार्म बज जाता और सभी तुरंत झाड़ियों के नीचे छिप जाते. चौथे दिन, हवाई पट्टी आखिरकार चालू हो गई और IAF के लड़ाकू विमान ने उड़ान भरी.
 
इन बहादुर महिलाओं में से एक, वलबाई सेघानी ने बाद में अपने अनुभव को याद करते हुए कहा, "हम यह सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ थे कि हमारे पायलट यहाँ से उड़ान भरें. अगर हम मरते भी, तो यह एक सम्मानजनक मौत होती."
 
8 दिसंबर 1971 भारतीय वायुसेना के लिए एक ऐसा दिन था, जब पाकिस्तान के विमानों ने भारत पर हमला किया और भुज स्थित एयरबेस पर नेपलम बम गिराए. इस हमले का उद्देश्य भारतीय वायुसेना के रनवे को नष्ट करना था ताकि हमारे लड़ाकू विमानों की उड़ान को रोका जा सके. बमबारी में रनवे का एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया, और भारतीय वायुसेना के विमान उड़ान नहीं भर सके. इस स्थिति ने हमारे रक्षा बलों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी.

लेकिन, जैसे ही समय बीतने लगा, भारत के सैनिकों और अधिकारियों ने यह महसूस किया कि यह समस्या जल्दी हल नहीं होने वाली. सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने रनवे को फिर से बनवाने के लिए काम शुरू किया, लेकिन इस दौरान मज़दूरों की भारी कमी हो गई. तब एक अप्रत्याशित लेकिन साहसिक कदम उठाया गया, और वो कदम था माधापुर गाँव की महिलाओं का.

माधापुर गाँव की महिलाएँ: वीरता का प्रतीक

माधापुर गाँव, जो भुज से कुछ किलोमीटर दूर स्थित है, ने भारतीय वायुसेना के लिए एक अविस्मरणीय योगदान दिया. 1971के युद्ध के दौरान, जब पाकिस्तान के हमले के बाद रनवे को ठीक करने के लिए मज़दूरों की आवश्यकता थी, तो गाँव की महिलाएँ बिना किसी हिचकिचाहट के इस कार्य में जुट गईं. इन महिलाओं ने न केवल अपने गांव से निकलकर इस कार्य में हाथ बटाया, बल्कि अपनी जान की परवाह किए बिना भारतीय वायुसेना के लिए अमूल्य मदद की.

महिलाओं की साहसिकता

जिन्हें आमतौर पर युद्ध के मैदान से दूर माना जाता है, उन्होंने यह साबित कर दिया कि उनके साहस और समर्पण में कोई कमी नहीं. माधापुर गाँव की करीब 300महिलाओं ने जुटकर रनवे की मरम्मत की और एयरबेस को फिर से चालू कर दिया. उन्होंने पत्थर उठाए, कंक्रीट डाला, और इस कठिन काम को बिना थके पूरा किया. उनका योगदान ना केवल प्रेरणादायक था, बल्कि यह भारत की उस समय की महिला शक्ति और देशभक्ति का जीवंत उदाहरण था.

उड़ान के लिए तैयार वायुसेना

गांव की महिलाओं के प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारतीय वायुसेना के विमान फिर से उड़ान भरने के लिए तैयार हो गए. उनकी मदद से भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान की वायुसेना को मजबूती से जवाब दिया और युद्ध की दिशा को मोड़ दिया.

कनबाई और माधापुर की महिलाएँ: अमूल्य योगदान

इस घटना के बाद, भुज के माधापुर गाँव की महिलाएँ भारतीय इतिहास में एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में जीवित हैं. उनका साहस और देशभक्ति युद्ध के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज हो गया है. उनकी वीरता ने यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी संकट के समय, यदि हिम्मत हो, तो महिलाएँ भी राष्ट्र के लिए वही योगदान दे सकती हैं जो एक सैनिक दे सकता है.

इन वीर महिलाओं को हमेशा याद किया जाएगा, जिन्होंने 1971के युद्ध के दौरान, अपने हाथों से केवल रनवे नहीं ठीक किया, बल्कि भारतीय वायुसेना की सफलता की नींव भी रखी.

आज, जब हम भारत की स्वतंत्रता और सुरक्षा की बात करते हैं, तो माधापुर की इन साहसी महिलाओं का योगदान हमेशा एक प्रेरणा के रूप में सामने आता है.