राजेंद्र शर्मा
उस्ताद अमीर खां साहब के जन्म के ठीक ग्यारह साल बाद साल 1923 में संकट मोचन संगीत समारोह का आयोजन प्रराम्भ हुआ और देखते ही देखते संकट मोचन संगीत समारोह की धूम पूरे देश में गूंजने लगी.
उधर उस्ताद अमीर खां देश भर में छाये हुए थे . उस्ताद अमीर खां की बड़ी इच्छा कि काश वह भी संकट मोचन के दरबार में अपनी हाज़िरी लगा पाते .उस समय तक मुस्लिम कलाकारों के लिये संकट मोचन संगीत समारोह में हाज़िरी लगाने की मनाही थी.
इस स्थिति में उस्ताद अमीर खां साहब मन मोस कर रह जाते किंतु उन्हें उम्मीद थी कि एक दिन वह संकट मोचन के दरबार में अपनी हाज़िरी ज़रूर लगा सकेगें.
1962 में यानि 40वें आयोजन में वाराणसी के बाहर के कलाकारों की आमद शुरू हुई तो उस्ताद साहब की उम्मीदें और बढ़ी . उन्हें यक़ीन था कि देर सबेर मुस्लिम कलाकारों के लिये भी संकट मोचन के दरवाज़े खुल ही जायेगें . खां साहब का यह यक़ीन
हक़ीक़त में परिवर्तित हुआ साल 2006 में लेकिन तब तक बहुत कुछ ख़त्म हो चुका था . भारतीय शास्त्रीय संगीत के नायाब कोहिनूर उस्ताद अमीर खां साहब संकट मोचन में अपनी हाज़िरी लगाने के स्वप्न के साथ ही 13 फरवरी 1974 को एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुए और इस फानी दुनिया को अलविदा कह गये.
संकट मोचन मंदिर के महंत वीरभद्र मिश्र ग़ज़ब जिजीविषा के महंत थे. उस समय के जानकार बताते हैं कि महंत वीरभद्र जैसी शख़्सियत सदी में एक दो ही होती है .
उस्ताद अमीर खां साहब की संकट मोचन में हाज़िरी लगाने की इच्छा को महंत वीरभद्र मिश्र जानते थे लेकिन उस्ताद के असमय निधन के बाद क्या किया जा सकता था . कुछ भी तो नहीं लेकिन महंत वीरभद्र मिश्र इस “ कुछ भी तो नही “ के बीच में से ही मंज़िल का रास्ता निकालने के माहिर थे.
साल 1978 तक संकट मोचन संगीत समारोह में महिलाओं कलाकारों की प्रस्तुति की मनाही थी .उस साल महंत वीरभद्र मिश्र ने एकाएक चौंकाने वाला निर्णय लेते हुए कंकना बनर्जी को मंच प्रदान किया.
उस्ताद अमीर खां संकट मोचन संगीत समारोह में नहीं गा सकें, कंकना बनर्जी तो उनकी ही शिष्या है।जिस मंच पर गाने की हसरत लिये उस्ताद अमीर खां साहब इस दुनिया से रूखसत हो गये, उसी मंच पर उनकी शिष्या गायें तो ज़ाहिर है उस्ताद साहब जहां भी होगें खुश ही होगें.
विदुषी कंकना बनर्जी तब से अनवरत संकट मोचन संगीत समारोह में अपनी हाज़िरी लगा रही है .इस तरह उस्ताद अमीर खां स्वयं जिस मंच पर अपनी प्रस्तुति की हसरत लिये इस दुनिया से असमय चले गये, उन्हीं की परम्परा का परचम 1978 से उनकी शिष्या कंकना बनर्जी फहराये हुए है.
मैं बराबर कहता रहा हूँ कि संकट मोचन संगीत समारोह संगीत को सुनने सुनाने भर का मंच भर नहीं है,यह परिकल्पना, प्रतिबद्धता का ऐसा मंच है जहां हर बार बड़ी और नयी लकीरें खींचने के संस्कार है.
उस्ताद अमीर खां साहब को इस फानी दुनिया से गये लगभग 52 साल बीत चुके है. दुनिया को कोई दूसरा मंच ऐसा है जो 52 साल बीतने के बाद इस तरह उस्ताद अमीर खां साहब को याद करें जिस तरह वर्ष 2025 में संकट मोचन संगीत समारोह के 102वें आयोजन में उस्ताद को याद किया गया .
महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने उस्ताद अमीर खां साहब के पुत्र शाहबाद खां जो फ़िल्म अभिनेता है से सम्पर्क करते हुए कहा कि उस्ताद अमीर खां साहब का अंश हैं आप . इस बार के संकट मोचन संगीत समारोह में आइयेगा.
महंत जी थोड़ा प्रेम, थोड़ा ग़ुस्सा, थोड़े आदेश की चाशनी में अपनी बात इस तरह से कहते हैं कि सामने वाला की हिम्मत नहीं कि उनकी बात को सम्मान न दें.
संकट मोचन संगीत समारोह की अंतिम निशाँ में शाहबाज़ खान आयें.
मंहत विशम्भर नाथ मिश्र ने कहा कि उस्ताद अमीर खां इस मंच पर आने की हसरत पूरी नहीं हो सकी,
लेकिन शाहबाज़ उन्हीं के अंश है,हम शाहबाज के रूप में उस्ताद अमीर खां साहब का अभिनंदन करते है.
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शाहबाज़ खान और विदुषी कंकना बनर्जी की आँखें छलछला गयी .
पंडित जसराज संकट मोचन संगीत समारोह के बारे में ठीक ही कहा करते थे कि दुनिया के सारे आकर्षण से बाहर संकट मोचन संगीत समारोह ही है .