पसमांदा आंदोलनः अन्याय के खिलाफ संघर्ष

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] • 10 Months ago
पसमांदा आंदोलनः अन्याय के खिलाफ संघर्ष
पसमांदा आंदोलनः अन्याय के खिलाफ संघर्ष

 

अदनान कमर

मध्यकाल के दौरान, आदिवासी, अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों के मूल निवासी बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म से इस्लाम में परिवर्तित हो गए. वे कुल मुस्लिम आबादी का 75प्रतिशत भाग हैं.

केवल 3-4 प्रतिशत मुसलमान विदेशी हैं और लगभग 15-20प्रतिशत उच्च जाति के धर्मान्तरित लोग हैं. इसलिए बहुसंख्यक मुसलमान भारतीय मूल के हैं और वे ही पीछे छूट गए हैं, उन्हें ‘पसमांदा’ या ‘उत्पीड़ित’ कहा जाता है. 

आज, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों में, मुस्लिम समुदायों के कई उदाहरण हैं, जिनमें विभिन्न जातियों के व्यक्ति शामिल हैं. जातियाँ हैं शेख, पटेल, अच्चुकत्तलवंदलु, अत्तर सैबुलु, नव मुस्लिम, लद्दाफ, दूदेकला, कुरैशी कसाब आदि.

वर्तमान में, पसमांदा मुसलमानों के पास शिक्षा, नौकरी, महत्वपूर्ण पदों, उद्योग, भूमि आदि तक पहुंच नहीं है. दुर्भाग्य से, 75प्रतिशम मुस्लिम आबादी के पास संगठित क्षेत्र में किसी विशेष प्रकार का व्यवसाय या किसी प्रकार का रोजगार नहीं है.

सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाएँ संभालने के बाद, अशराफ नेताओं और धार्मिक मौलवियों ने एक अखंड मुस्लिम पहचान की वैचारिकी चलाई, जिससे पसमांदा मुसलमानों को अपने जाति आधारित व्यवसायों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

पसमांदा मुसलमानों की दुर्दशा समय के साथ बिगड़ने लगी. जैसे-जैसे उनकी गरीबी और निरक्षरता बढ़ती गई, उन्हें अंततः अपनी महंगी संपत्ति बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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कुछ मुस्लिम चरमपंथी शिक्षाओं ने सैयद जाति के वर्चस्व का प्रचार किया और उन्हें धार्मिक मामलों, वक्फ संपत्तियों और अल्पसंख्यक संस्थानों को नियंत्रित करने की अनुमति दी, जिसके परिणामस्वरूप पसमांदा मुसलमानों के बीच भयानक सामाजिक भेदभाव, अत्यधिक गरीबी, उपेक्षा और अशिक्षा हुई. वे वकालत करते हैं कि सैयद का सम्मान करना पैगंबर मोहम्मद के परिवार का सम्मान करने के बराबर है और सैयद का अपमान करने पर अल्लाह के क्रोध को आमंत्रित किया जाएगा. अशराफ नेताओं ने कभी नहीं चाहा कि पसमांदा आगे बढ़ें. उन्होंने हिंदू-मुस्लिम विवादों में पसमांदा को शामिल किया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताया. फिर भी, वास्तव में, उन्होंने ही किसी और की तुलना में पूरे मुस्लिम समुदाय को अधिक नुकसान पहुँचाया है.

चौंकाने वाली बात यह है कि एक एनजीओ के हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि हैदराबाद में पसमांदा समुदाय की 37प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं अपने परिवारों में अकेली कमाने वाली हैं. उनमें से 43प्रतिशत विधवा हैं, 22प्रतिशत तलाकशुदा हैं, और 37प्रतिशत अकेली महिलाएं हैं, जिन्हें उनके पति ने छोड़ दिया है. ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें गरीब पसमांदा परिवारों की कई युवा लड़कियों को पश्चिम एशिया के शेखों के साथ अनुबंध विवाह करने के लिए मजबूर किया गया है.

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अशराफ का पसमांदा महिलाओं के प्रति खराब रवैया रहा है. महिलाओं को मस्जिदों में जाने की इजाजत नहीं देना अशराफों द्वारा महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का प्रमुख सबूत है. वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं का विरोध करते हैं.

इस कारण से मुस्लिम समुदाय में शैक्षिक संस्थानों से महिलाओं की पढ़ाई छोड़ने की दर सबसे अधिक है.

12वीं सदी से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मुसलमानों की उपस्तिथि रही है. दोनों राज्यों में इनकी कुल आबादी 80लाख से अधिक है. आश्चर्यजनक रूप से, देश की आजादी के बाद से इस क्षेत्र में कभी भी हिंदुत्व विचारधारा का प्रभाव नहीं रहा, लेकिन पसमांदा समुदाय जो कुल मुस्लिम जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत हैं, वो राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहा है. छद्म धर्मनिरपेक्ष-क्षेत्रीय-भाषा के समर्थकों ने मुस्लिम समुदाय में अशराफ जैसे मुट्ठी भर कुलीन नेताओं के साथ गठबंधन करके लगभग सभी संसाधनों पर नियंत्रण कर लिया.

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सभी क्षेत्रों में सबसे निचले स्तर वाले अधिकांश पसमांदा मुसलमान गरीबी से पीड़ित हैं और सभी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पीछे खड़े हैं. कई दशकों तक, कांग्रेस, तेलुगु देशमपार्टी (टीडीपी) और भारत राष्ट्रिय समिथि (बीआरएस) की सत्ताधारी सरकारें पसमांदाओं की जमीनी हकीकत पर ध्यान केंद्रित किए बिना कुलीन नेताओं और धार्मिक मौलवियों के माध्यम से मुस्लिम समुदाय से अपील करती रहीं. इसका लाभ केवल अशराफ परिवारों को मिला और पसमांदाओं की कोई भागीदारी नहीं रही.

पासमांदा मुस्लिमों की समस्याओं को हल करने के लिए, समाज को उनकी समस्याओं को समझना और उनके साथ सहयोग करना होगा. उपेक्षा से पीड़ित पासमांदा मुस्लिमों को बेहतर बनाने के लिए एक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक संकल्प की आज आवश्यकता है. पसमांदा महिलाओं को हमें जागरूक बनाना होगा. उन्हें संबंधित विषयों पर शिक्षा और जागरूकता प्रदान करनी चाहिए. इसके लिए, हमें समाज के अनुभवी लोगों को जोड़ने और संबंधित महिला संस्थाओं का उपयोग करना चाहिए.

(अदनान कमर एक सामाजिक कार्यकर्ता, वक्ता, चुनाव रणनीतिकार और कानून के छात्र हैं, जो दक्षिण भारत में पसमांदा मुसलमानों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं.)