पीरियड्स में इन मेन्स्ट्रुअल हाइजीन टिप्स को ना करें नजरअंदाज: डॉ. दीप्ति शर्मा

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari • 10 Months ago
पीरियड्स में इन मेन्स्ट्रुअल हाइजीन टिप्स को ना करें नजरअंदाज: डॉ. दीप्ति शर्मा
पीरियड्स में इन मेन्स्ट्रुअल हाइजीन टिप्स को ना करें नजरअंदाज: डॉ. दीप्ति शर्मा

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
पीरियड्स या मासिक धर्म महिलाओं के बॉडी का एक नेचुरल प्रॉसेस है और जीवन का मुख्य हिस्सा है. इसे हर महीने होना ही है. कोई भी महिला इससे बच नहीं सकती बशर्ते कि कोई समस्या ना हो.

कोई समस्या होने पर कई बार पीरियड्स लेट भी होता है या दो महीने के बाद होता है. पीरियड्स होने पर हाइजीन का खास ख्याल रखना चाहिए. इस पर विस्तृत जानकारी के लिए हमने अमृता हॉस्पिटल की प्रोफेसर और वरिष्ठ सलाहकार गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. दीप्ति शर्मा से बातचीत की. 
 
 
मेंस्ट्रूअल हाइजीन क्या है?
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि मासिक धर्म यानी पीरियड्स के दौरान अपने आप को साफ़ सुथरा रखना ही मेंस्ट्रूअल हाइजीन है. महिलाओं को सही मासिक धर्म स्वच्छता नियमों के बारे में पता होना चाहिए और इसके बारे में शर्मिंदा या शर्मनाक महसूस नहीं करना चाहिए.
 
मेंस्ट्रूअल हाइजीन के लिए क्या करना चाहिए?
मेंस्ट्रूअल हाइजीन के लिए सबसे पहली जरूरी है कि आप अपने कल्चरल बैकग्राउंडस और टेबुस को छोड़कर अपनी स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करें और फिर अपनी उपयुक्तता के हसाब से अपने मासिक धर्म में स्वछ रखें. 
 
मेंस्ट्रुअल हाइजीन या पीरियड हाइजीन मेंटेन करने के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है. सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखें कि हाथों को ठीक तरह से साफ करने के बाद ही नया पैड लगाएं या हटाएं.
 
पैड (Pad) या टैंपोन जिस चीज का भी आप इस्तेमाल कर रही हैं उसे नियमित तौर पर बदलें. पैड को 3 से 4  घंटे में बदल लें. बहुत लंबे समय तक पैड ना बदलने पर इंफेक्शंस का खतरा बढ़ जाता है. स्किन को साफ करते हैं. दिन में कम से कम 2 से 3 बार जब भी आप बाथरूम जाएं पानी से अपनी वल्वा को साफ करें. स्किन पर गंदगी और चिपचिपाहट ना रहे इस बात का ध्यान रखें. 
 
बाजारी हाइजीन प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करना कितना ठीक है ?
 
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि बाजार में हाइजीन के कई प्रोडक्ट्स मिलते हैं उनके झांसे में ना आएं. वजाइनल स्किन को साफ करने के लिए पानी ही काफी होता है.
आपको किसी तरह के साबुन या लिक्विड सोप को इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है. स्किन को साफ करते समय इस बात का ध्यान रहे कि आप आगे से पीछे की तरफ वजाइना स्किन साफ करें ना कि पीछे से आगे की तरफ. यह छोटी सी टिप ही बड़े इंफेक्शंस से आपको बचाएगी. 
 
पीरियड्स के दौरान कैसे कपड़ें पहनें?
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि पीरियड्स के दौरान आप बहुत ज्यादा टाइट या फिर सिंथेटिक कपड़े ना पहनें. आपकी स्किन को इस दौरान सांस लेने की बेहद जरूरत होती है. थोड़े ढीले और कॉटन के कपड़ों को पहनें जिससे आपको कंफर्टेबल और फ्रेश फील हो.
 
टैम्पोन, प्लास्टिक पैड, बांस पैड, मासिक धर्म कप या सूती कपड़े के पैड में से क्या इस्तेमाल करना चाहिए?
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि यह महिला की अपनी पसंद और कम्फर्ट का सवाल है, जो उसको ज्यादा सुरक्षित और अच्छा महसूस कराता है उसको वहीँ इस्तेमाल करना चाहिए.
 
उन्होनें बताया कि सौख्यम पैड में 9 ग्राम बनाना फाइबर होता है. इन पैड्स को धोना और सुखाना बहुत आसान है. इन पैड्स की ठीक से देखभाल की जाए तो यह 4-5 साल चलते हैं.
हमे हर महीने बाजार से पैड्स खरीदने में पैसे नहीं खर्च करने पड़ते. लेकिन अगर किसी महिला को यह सूट ही नहीं करता तो उसे वो त्यागने का पूर्ण अधिकार है. 
 
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि चाहें आप कुछ भी इस्तेमाल करें आपको अपने पर्यावरण के बारे में सोचना चाहिए कि आप सैनिटरी पैड को ठीक तरह से फेंक रही हैं या नहीं. पैड्स को अखबार में लपेटकर कूड़ेदान में फेंके.
 
इन्हें फ्लश करने या फिर मिट्टी में गाड़ने की कोशिश ना करें. और सबसे जरूरी बात यह है कि किसी भी मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट का चुनाव करने से पूर्व उसके वास्ते मैनजमेंट के बारे में भी ध्यान दें. और इसपर भी कि वो आपके पॉकेट फ्रेंडली हों. 
 
मेंस्ट्रूअल हाइजीन पर ध्यान नहीं दिया तो क्या बीमारियां हो सकतीं हैं?
 
गर्मी के दिनों में पीरियड्स होने पर हाइजीन का खास ख्याल रखना चाहिए. इस मौसम में मेंस्ट्रुअल हाइजीन को बनाए रखन के लिए सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करें. पीरियड्स होने पर एक ही पैड का अधिक देर तक यूज ना करें. प्रत्येक चार घंटे पर पैड बदलती रहें। यदि हेवी ब्लीडिंग होती है, तो पैड जल्दी बदल लें. आजकल कुछ महिलाएं सैनिटरी पैड की जगह मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करती हैं. वैसे ये भी सुरक्षित होता है, क्योंकि इससे हाइजीन को बनाए रखना ज्यादा आसान होता है.
 
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि “मासिक धर्म की अच्छी स्वच्छता बनाए रखना समय की आवश्यकता है. ऐसा करने से एक महिला को एलर्जी और प्रजनन पथ के संक्रमण (आरटीआई) से दूर रहने में मदद मिल सकती है.”
 
“समय-समय पर सैनिटरी नैपकिन और टैम्पोन नहीं बदलना या गंदे सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करने से भी फंगल संक्रमण हो सकता है.
 
योनि क्षेत्र के पीएच में बदलाव और खराब मासिक धर्म स्वच्छता बनाए रखने से यूटीआई हो सकता है.
 
अगर आप पीरियड्स के दौरान करीब 8-10 घंटे तक एक ही पैड पहनती हैं तो बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.”  इसके अलावा, यदि आप यौन रूप से सक्रिय हैं, गर्भवती हैं, या आपने आईयूडी (अंतर्गर्भाशयी डिवाइस) लगवाई है, तो आपको बैक्टीरियल वेजिनोसिस होने की संभावना अधिक होती है.
 
यदि आप अस्वास्थ्यकर मासिक धर्म स्वच्छता आदतों का पालन कर रही हैं, तो यह स्थिति और खराब हो सकती है. आपको यीस्ट इन्फेक्शन हो सकता है.
 
मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर रूरल और अर्बन एरिया में क्या अंतर है?
 
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि अर्बन एरिया में लोगों के पास इंटरनेट है और वो खुद ही अपनी आधी समस्याओं का समाधान कर लेतीं हैं. उनको मासिक धर्म में दर्द होता है तो वो खुद ही दवाई लेकर अपने आप को शांत कर लेती हैं लेकिन रूरल यानी की गांव में ऐसा नहीं है वहां मासिक धर्म की जागरूकता बहुत काम है.
 
महिलाओं को क्या करना चाहिए क्या नहीं इस बारे में ज्यादा पता नहीं होता है. वहां महिलाओं और लड़कियों को कपड़ा भी इस्तेमाल करना पड़ता है क्योंकि उनको शायद यह  की इसके अलावा और भी विकल्प हैं या फिर पता भी हों तो बेचारी क्या करें टैम्पोन, प्लास्टिक पैड और मेंस्ट्रूअल कप को जुटाना उनके बीएस की बात नहीं.
 
मासिक धर्म यानी पीरियड्स मातृत्व क्षमता का सूचक है लेकिन गांव में इसको एक बीमारी की तरह ही देखा जाता है जिसकी चर्चा करने से भी हर कोई बचता है  गुपचुप में होता है.
 
इस बात में कोई संदेह नहीं कि अगर पति को ही न मालूम हो की उसकी बेटी को भी बड़ी हो गई है उसको पीरियड्स होते हैं या उसकी बीवी का मासिक धर्म
जारी है.
 
हालांकि अब इसको दशर्न के लिए सरकार कदम उठा रहीं हैं. पीरियड्स या मासिक धर्म के दौरान गांव में बच्चियां स्कूल जाती ही नहीं हैं क्योंकि उनको पानी बाथरूम सब कुछ वहां मिल जाए यह संभव नहीं लेकिन अब हर सरकारी स्कूल में बाथरूम  है जोकि एक लड़की के लिए गांव में वरदान जैसा है.
 
स्कूल में ज्यादातर ड्रेस सफेद होती है दाग लगने के दर से लड़कियां स्कूल नहीं जाती जिससे उनका शिक्षा हासिल करने में काफी नुकसान होता है. 
 
मासिक धर्म में जब बच्चियों की शुरुआत होती है तो उन्हें किस तरीके से इसके बारे में समझाना चाहिए?
 
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि मासिक धर्म में जब बच्चियों की शुरुआत होती है तो सबसे पहले उन्हें इस चीज़ की विस्तृत जानकारी मिलना जरूरी जिसे वो घबराए नहीं.
और साथ ही उन्हें सोशल टेबुस से दूर रखकर उनकी हेल्थ के बारे में जानकारी देनी चाहिए. मासिक धर्म के दौरान क्या करना अच्छा है और क्या नहीं करना चाहिए यह बताना जरूरी है.
 
मासिक धर्म में रूढ़ीवाद सोच जरूरी या महिला का आराम?
 
पहले के जमाने में मासिक धर्म के दौरान औरतों को आचार नहीं छूने, एक ही कमरे में रहने, रसोई में नहीं प्रवेश दिया जाता था जिसका एक मात्र कारण उनको आराम देना ही था लेकिन धीरे धीरे इसे रूढ़ीवाद सोच ने कड़वा दिया और न जाने क्या क्या इसमें जोड़ दिया जोकि गलत है.
 
ऐसे समय में महिला का आराम सबसे जरूरी है क्योंकि वह कमजोर होती है रक्तपात होता है. इसके अलावा ऐसी कोई भी चीज़ जो महिला यह महसूस कराए कि वह कमजोर है या उसकी सीमा तय की जाती है तो वह गलत है. अगर उसको भूख लगी है तो वह खाना पका सकती है रसोई में अगर कोई और नहीं है तो.
 
स्कूली स्तर पर छात्रों को मासिक धर्म के बारे में शिक्षित करना कितना आवश्यक है?
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि स्कूली स्तर पर छात्रों को मासिक धर्म के बारे में शिक्षित करना बहुत जरूरी है क्योंकि हम महिला और पुरुष एक ही समाज में साथ रहते हैं तो जाहिर है उनको पता होना चाहिए की माह के 7 दिन पुरषों को महिला की परेशानी का पता होना चाहिए.
 
चिकित्सक होने के नाते आप इस बात से कितनी सहमत हैं कि पुरुषों को भी मासिक धर्म की जानकारी और समझ होनी चाहिए ?
 
डॉ. दीप्ति शर्मा ने कहा कि मासिक धर्म में चल रही पत्नी अपने शोहर या भाई को बता सकती है की राशन के बाकी सामान के साथ भी पैड लाया जा सकता है इसमें उसको शर्म नहीं आनी चाहिए.
 
मासिक धर्म में लड़कियों कोई इबादत या पूजा नहीं कर सकती यह बात की जानकारी घर में पुरषों को भी होनी चाहिए कि कोई ऐसा माहौल न बनाए कि युवती या महिला को असुविधाजनक लगे.
 
सिर्फ माता की बेटी को मासिक धर्म के बारे में बताएगी यह जरूरी नहीं है. एक पिता या बड़ा भाई भी उसको समझा सकता है. इसमें किसी को कोई शर्म नहीं होनी चाहिए.
 
कई महिलाएं पीरियड्स के दिनों में पेट और कमर दर्द से काफी परेशान रहती हैं. ऐसे में वे सारा दिन लेटी रहती हैं. कोई काम नहीं करना चाहतीं, मूड भी काफी खराब होता है. खीझ, गुस्सा भी आता है. ये साड़ी बातें पुरषों को समझनी चाहिए. 
 
मॉडर्न मासिक धर्म से आप क्या समझती हैं?
 
मॉडर्न मासिक धर्म या मॉडर्न पीरियड से हम यह समझते हैं कि मॉडर्न पीरियड यानी अब लड़कियां यह समझ गई हैं कि यह उनकी जिंदगी का एक खूबसूरत हिस्सा है जिसे वो खुलकर जीतीं हैं और साथ अपनी माता या बड़ी दीदी को भी शिक्षित करती है नए प्रोडस्कट्स के बारे में बताती है.
 
उनका मासिक धर्म का सफर और आसान बनाती है कभी कभी हॉर्मोन चेंज के कारण कुछ और खाने का मन करता है तो उसे दबती नहीं छुपाती नहीं खुलकर जीती है.