होलिका दहन, धुलेंडी, रंगपंचमी कब है? जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 04-03-2023
होलिका दहन, धुलेंडी, रंगपंचमी कब है? जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
होलिका दहन, धुलेंडी, रंगपंचमी कब है? जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

 

राकेश चौरासिया

फागुन को मधुमास भी कहा जाता है. सरसों के पीले फूल जैसे ही खिलना शुरू होते हैं, वैसे ही वातावरण में मस्ती सी घुलने लगती है. इस मनभावन मौसम में ही आता है होली का त्यौहार. इस रंग-रंगीले पर्व का जितना महत्व आध्यात्मिक है, उतना ही आनंद इस त्योहार से जुड़े रीति-रिवाजों को मनाने और उनका रसास्वादन करने में आता है. हम विस्तार से बता रहे हैं कि वर्ष 2023में होली पर्व के विभिन्न मुहूर्त और पूजन विधि क्या है.

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हिंदू धर्म में दिवाली के बाद होली सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. यूं तो फाल्गुन मास लगते ही गांवों में शाम को फगवा गायन शुरू हो जाता है. इस बार दो मार्च को रंग एकादशी मनाई गई. बनारस में खासतौर से बाबा विश्वनाथ अपनी ससुराल पहुंचे और मैया गौरी की विदा करवाई. साथ ही विभिन्न अंचलों में होली के रंगारंग कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है.

होलिका दहन 

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होलिका दहन का मुहूर्त इस बार 7 मार्च को होगा. इसे छोटी होली भी कहा जाता है. रात को होलिका दहन किया जाएगा. इस दौरान भद्रा मुख को त्याग करके रात के समय होलिका दहन करना शुभ होता है. होलिका दहन पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में की जाए, तो सबसे शुभ माना जाता है.

होलिका दहन के दिन महिलाएं घर में सुख शांति के लिए पूजा करती हैं और दोपहर को दहन स्थल पर जाकर भी पूजा करती हैं. होलिका दहन का यह दिन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है.

धुलेंडी 

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अगले दिन 8 मार्च को यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है. 08मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 07 बजकर 42 मिनट तक है. यूं तो, सुबह से ही रंग वाली ‘हो-हो होरी है’ वाली होली खिलनी शुरू हो जाएगी.

विधान है कि सबसे पहले स्नान-ध्यान करके घर के मंदिर में प्रभु संग खेली जाए, उसके बाद ही स्वजनों, मित्रजनों और इष्टजनों संग होली खेली जाए. मगर अक्सर हो जाता है कि कई लोग बिस्तर से भी नहीं उठ पाते हैं और हुरियारे पहुंच जाते हैं रंग लगाने. होली बिस्तर पर ही हो जाती है. यह भी चलता है. यही रंगों के त्योहार होली की मस्ती है. लोग एक दूसरे को रंग, अबीर, गुलाल लगाते हैं और बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं.

रंग पंचमी

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रंग खेलने वाली 8 मार्च की धुलेंडी होली की तरह रंग पंचमी का भी बहुत महत्व है, जो 12 मार्च को है. पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 11 मार्च 2023 को रात 10 बजकर 05 मिनट पर शुरू होगी और पंचमी तिथि की समाप्ति 12 मार्च 2023 को रात 10 बजकर 01 मिनट पर होगी. उदयातिथि के अनुसार रंग पंचंमी का त्योहार 12 मार्च को मान्य रहेगा.

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पौराणिक मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता अपने भक्तों संग होली खेलने पृथ्वी पर आते हैं. इसलिए रंग पंचमी के इस पर्व को देव पंचमी भी कहा जाता है. इस दिन हुरियारे हवा में गुलाल उड़ाते हैं. माना जाता है कि रंग पंचमी के दिन वातावरण में गुलाल उड़ाना शुभ होता है. धार्मिक मान्यता है कि रंग पंचमी पर देवी-देवताओं को गुलाल अर्पित करने से वह सुख-समृद्धि और वैभव का आशीर्वाद देते है, घर में श्री अर्थात धन समृद्धि की वृद्धि होती है. कहते हैं गुलाल जब हवा में उड़ता है और जो इसके संपर्क में आता है उसमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है. तमोगुण और रजोगुण का नाश होता है और सतोगुण में वृद्धि होती है.

मुहूर्त

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पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट पर होगी और इसका समापन 07 मार्च को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर होगा. इसलिए, उदया तिथि के अनुसार, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा. भद्रा काल का समय 06 मार्च को शाम 04 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगा और 07 मार्च को सुबह 05 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगा. इस दिन होलिका दहन का कुल समय 02 घंटे 27 मिनट तक है. इस समय में होलिका पूजा होगी और फिर होलिका में आग लगाई जाएगी.

होलिका दहन के दिन होली की पूजा के बाद जल अर्पित करें. इसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार अपने घर के किसी बड़े बुजुर्ग व्यक्ति से होलिका की अग्नि प्रज्वलित करवाएं. सार्वजनिक होलिका दहन पंडित और आचार्य से करवाना चाहिए. होलिका की अग्नि में फसलों सेंके और मुमकिन हो, तो इसे अगले दिन सपरिवार ग्रहण अवश्य करें. कहा जाता है होलिका दहन के दिन किया जाने वाला यह उपाय जीवन में निराशा और दुख नहीं आने देता. ऐसे व्यक्ति के परिवार के सभी लोग हमेशा रोगों से मुक्त स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीते हैं

होलिका दहन की सामग्री

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होलिका दहन की पूजा में कुछ विशेष चीजों की आवश्यकता होती है. इसलिए पूजा से पहले ही इन चीजों की व्यवस्था अवश्य कर लें. इसमें एक कटोरी पानी, गोबर के उपलों से बनी मालाएं, जिन्हें बुरकली भी कहा जाता है, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, फल-फूल, मिठाई, कलावा, हल्दी के टुकड़े, मूंग दाल, बताशा, रंग, गुलाल पाउडर, नारियल साबुत, अनाज आदि शाामिल हैं.

होलिका दहन का महत्व 

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घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए होलिका दहन के दिन महिलाएं होली की पूजा करती हैं. होलिका दहन के लिए बहुत दिनों पहले से ही लोग लकड़ियां इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं. इन लकड़ियों को इकट्ठा करके एक गट्ठर के रूप में रखा जाता है और फिर होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में इसे जलाया जाता है.

होलिका दहन का पौराणिक महत्व

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पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता एवं दानवराज हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया. होलिका के पास एक चादर थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था. इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई. भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर मर गई. इस वजह से हर साल होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है. होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है.