बिहार का बीथोशरीफ: 595 वर्ष पुरानी दरगाह में पांच दिवसीय उर्स, दे रहा हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 03-03-2023
बिहार का बीथोशरीफ दरगाह: पांच दिवसीय उर्स पर दे रहा हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश
बिहार का बीथोशरीफ दरगाह: पांच दिवसीय उर्स पर दे रहा हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश

 

सेराज अनवर/पटना

बिहार में कई ऐसे मज़ार हैं,जहां प्राचीन काल से ही सूफी संत, ऋषि-मुनि, साधु,दरवेश,फकीर साधना करते आ रहे हैं.मान्यता है कि जहां ज़ियारत करने से हर परेशानियों का हल निकल आता है. ऐसे ही गया शहर से पांच किलोमीटर उत्तर गया- पटना रोड फल्गु तट पर बिहार की तीसरी व मगध की सबसे बड़ी व पुरानी दरगाह बीथोशरीफ है.स्थानीय लोगों का दावा है कि यहां आए लोग कभी निराश हो कर वापस नहीं जाते.जिन्हें दवा से आराम नहीं मिलता उनका दुआ से काम बन जाता है.

बीथो शरीफ दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का केंद्र है.हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह के दरगाह पर हिन्दू और मुस्लिम एक साथ इबादत करते हैं.बीथोशरीफ दरगाह में हजरत मखदुम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ रहमतुल्लाह अलैहे का 542 वां उर्स चल रहा है.

जुमा की शब पांच दिवसीय उर्स की शुरूआत बाबा के मजार पर गुस्लशरीफ व संदल से हुई.रात्रि 11:30 बजे गुलाब जल से मखदूम बाबा के मजार का स्नान कराया गया.इसके बाद चंदन का लेप लगाया गया,फिर दरगाह के सज्जादानशीं ने चादरपोशी की.ये सारे कार्यक्रम एकांत में हुए.

bithosharif

595 वर्ष पुराना है बीथोशरीफ खानकाह

बीथोशरीफ की खानकाह 595 वर्ष पुराना है.इसकी स्थापना 847 हिजरी में हुई थी. वहीं मखदूम साहब की मृत्यु 902 हिजरी में हुई थी. इसके बाद बीशरीफ में इनकी दरगाह बनी,जो 540 वर्ष पुरानी है. यह दरगाह मगध की सबसे बड़ी दरगाह है. पौने छह सौ साल पहले मखदुम बाबा इस शहर में आए.यह क्षेत्र अज्ञानता में डूबा हुआ था.

उन्होंने यहां आकर ज्ञान का प्रकाश फैलाया. ऊंच-नीच का भेद-भाव मिटाकर मानवता का पाठ पढ़ाया. हर साल बाबा का उर्स भव्य तरीके से मनाया जाता है.देश के अलावे विदेशों से भी अकीदतमंद उर्स में शामिल होते हैं. बीथो शरीफ गांव के लोगों की मानें तो दरगाह पर भूत-प्रेत, जिन्न, जादू-टोना और लाइलाज बीमारी से पीड़ित लोग अपनी फरियाद लेकर यहां आते हैं.

यहां आकर उनकी सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं.मान्यता है कि यहां आने पर लाइलाज बीमारी भी ठीक हो जाती है .स्थानीय लोगों ने बताया कि हर विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मज़ार पर चादरपोशी करते हैं.अगर किसी वजह से मुख्यमंत्री नहीं आ पाते हैं तो उनके नाम पर उनके समर्थक मज़ार पर चादर चढाते हैं.

गांव के बुज़ुर्गों ने बताया कि ईरान देश से हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह यहां आए थे.तीन बार पैदल हज करने वाले बुजुर्ग की दुआओं से यहां के राजा की इकलौती पागल बेटी ठीक हुई थी. दरगाह शरीफ में बाबा के मजार के साथ उनके परिजनों का भी मजार है.

बीथो शरीफ से जाना जाने वाले इस गांव का नाम पहले बैतहू शरीफ था. शाम 5 बजे के बाद बाबा के मज़ार पर हाज़िरी लगाने का वक्त होता है.लाइलाज बीमारियों और शैतानी ताकतों से पीड़ित लोग कई दिनों तक दरगाह पर रहकर इलाज करवाते हैं. लोगों का मानना है कि यहां आने के बाद कोई भी मायूस नहीं लौटता है.

सैंकड़ों वर्ष से जल रहा चिराग़

इस दरगाह में हजरत मखदूम सुल्तान अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह किछौछा का प्रदान किया हुआ चिराग आज भी दरबार में सुरक्षित रखा गया है. प्रति संध्या शमादान में पाबंदी से जलता है.इसका दर्शन कर मरीजों का अंधकार में डूबा भविष्य उज्जवल होता है.

इस दरगाह में विशाल और भव्य इमारत शमाखाना है.जहां उर्स के समय सूफियाना कव्वाली, कुरानखानी तथा तक़रीर का आयोजन होता है.दरगाह से पूरब फल्गु नदी के तट पर स्थित है मज़ार शरीफ. इसी के अंदर हजरत मखदूम साहब व उनकी पत्नी हजरत बीबी जान मलक की मजार है.इसके अलावा हजारत मखदूम साहब के परिवार वाले तथा अन्य सज्जादानशी की मजार भी इसी जगह है.

उत्तर पश्चिम की ओर एक बड़ा ही शांतिपूर्ण स्थान है इमली दरगाह.यह एक बड़ा कब्रिस्तान है.इसके एक और ऊंची हाते में कई गद्दीनशी की भी मजार है. हजरत मखदूम गुलाम मुस्तफा, हजरत गुलाम रसूल और हजरत मौलाना नवाजिश रसूल अशरफ की यहां मज़ार है.सभी अपने-अपने समय में सूफी-संत गुज़रे हैं.

dargah

उर्स का पूरा कार्यक्रम इस तरह है

उर्स के मौक़े पर गया जिले के कंडी पंचायत स्थित बीथोशरीफ दरगाह में सभी धर्मों के लोगों का सौहार्द एक साथ देखने को  मिल रहा है. 6 मार्च तक बिथो शरीफ दरगाह में हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्गेश अशरफ रहमतुल्ला अल्लैह का 542 वां उर्स चलेगा

इस दौरान लोगों को मखदूम बाबा की पगड़ी, खिरका और बधी का भी दीदार करने को मिलेगा.वहीं सूफियाना कव्वाली का भी आयोजन किया जाएगा.दरगाह के सज्जादानशीं  हजरत सैयद शाह अरबाब अशरफ  के मुताबिक़ आज यानी जुमा बाद दोपहर बीथोशरीफ दरगाह से एक काफिला निकलेगा,जो गन्नू बीघा स्थित हजरत सैयद शाह मोबारक अशरफ‌ एवं इमली दरगाह शरीफ पहुंचेगा.

यहां दोनों दरगाह पर जियारत, हाजरी, क़ुल व चादरपोशी की जाएगी.इसके बाद तीन दिनों तक लगातार बीथोशरीफ दरगाह में कार्यक्रम होगा. चार मार्च को मगरीब की नमाज के बाद महफिले समां अजान ईशा तक होगी.रात्रि 10:00बजे हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ का क़ुल शरीफ व खिरकापोशी होगी.

इस दिन मखदुम बाबा के खिरका (वस्त्र), पगड़ी व बधी का अकीदतमंद दर्शन करेंगे. हजरत अली की तसबी (माला) की भी जियारत होगी.जियारत के बाद चादरपोशी की जाएगी. क़ुल के बाद महफिले समां की कव्वाली सुबह तक होगी.स्टेज की कव्वाली मेला मैदान में होगी.दरगाह आने वाले अकीदतमंद इस जगह पर सुफियाना कव्वाली का आनंद उठा सकेंगे.

देश के कई बड़े कव्वालों के भी आने की संभावना है.उन्होंने बताया कि छह मार्च को ज़ोहर की नमाज के बाद महफिले समां होगी. मगरीब की नमाज के बाद हजरत मखदुम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ और हजरत मखदुम सैयद शाह मोहम्मद अशरफ उर्फ शाह चांद अशरफ के उर्स का अंतिम क़ुल शरीफ, चादरपोशी और दुआओं की मजलिस के साथ वार्षिक उर्स समाप्त होगा.उन्होंने बताया कि दो से छह मार्च तक फ़जर की नमाज के बाद क़ुरानखानी होगी. चार से छह मार्च तक लंगर बंटेगा.