आतिर खान
जब पूरी दुनिया में वहाबी विचारधारा से प्रेरित आतंकवादी नेटवर्कों का सफाया हो चुका है — जिनमें उनके गढ़ सऊदी अरब जैसे देश भी शामिल हैं — तब भी पाकिस्तान में तीन प्रमुख आतंकवादी ठिकाने खुल्लमखुल्ला सक्रिय थे: बहावलपुर, मुरिदके और सियालकोट.
इन स्थानों को लंबे समय से उग्रवाद के केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है और पाहलगाम हमले के बाद भारत के लिए ये वैध सैन्य लक्ष्य बन गए.भारत की प्रतिक्रिया तेज़, सटीक और एक स्पष्ट रणनीतिक सिद्धांत पर आधारित थी. यह सिद्धांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें तीन प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
भारतीय भूमि पर हुए किसी भी आतंकवादी हमले का त्वरित और निर्णायक जवाब,
परमाणु हथियारों के नाम पर डराने-धमकाने की राजनीति का अंत,
और आतंकवादियों व उनके समर्थकों को बिना किसी भेदभाव के निशाना बनाना — चाहे वे सीमा के इस पार हों या उस पार.
राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने दोहराया कि "यह युद्ध का युग नहीं है", लेकिन यह भी कि "यह आतंकवाद का युग भी नहीं हो सकता." उनका वाक्य — "रक्त और जल एक साथ नहीं बह सकते" — भारत की सीमा-पार खतरों के प्रति बदली हुई सोच को दर्शाता है.
भारत का बहावलपुर, मुरिदके और सियालकोट पर हमला न केवल सैन्य दृष्टि से चतुर था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसकी वैधता भी बनी रही. आतंकवाद से पीड़ित कई देशों ने भारत की इस कार्रवाई को उचित और समझदारी भरा माना.
यह कुछ हद तक उन कार्रवाइयों से मेल खाता है, जैसे ईरान ने पाकिस्तान-आधारित आतंकवादियों पर हमले किए, सऊदी अरब ने हूती विद्रोहियों पर कार्रवाई की, और अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान की ज़मीन पर मार गिराया.
भारत ने पाकिस्तान की मुख्य भूमि में घुसकर उन आतंकी अड्डों को नष्ट किया जो लंबे समय से दण्डमुक्ति का आनंद ले रहे थे। इस ऑपरेशन की रणनीति राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने तैयार की थी, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने मंज़ूरी दी. उन्होंने इन आतंकवादी संस्थानों को "आतंकवाद के वैश्विक विश्वविद्यालय" करार दिया.
जहां पाकिस्तान एक पारंपरिक युद्ध की आशंका में सीमा पर केंद्रित था, भारत ने मिथ्या संचालन (operational misdirection) की रणनीति अपनाई और उसे चौंका दिया.
6 मई की रात भारत ने सटीक हमले किए, जिनमें रिपोर्ट के अनुसार 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए. ये हमले किसी आम नागरिक या सैन्य ठिकाने पर नहीं किए गए, बल्कि उन आतंकवादी केंद्रों पर केंद्रित थे जिन्हें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्टों में नामित किया गया है.
बहावलपुर, मुरिदके और सियालकोट लंबे समय से लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, और हिज़्बुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों से जुड़े रहे हैं — ये सभी संगठन यूएन द्वारा प्रतिबंधित हैं.
मुरिदके का परिसर लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय है और इसे ओसामा बिन लादेन और 2008 मुंबई हमलों से जोड़ा गया है. लगभग 82 एकड़ में फैले इस परिसर में मदरसा, रिहायशी परिसर, व्यवसायिक क्षेत्र, प्रशिक्षण मैदान, और यहां तक कि एक मछली फार्म भी शामिल है — जो सभी कथित रूप से कट्टरपंथ और सैन्य प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.
भारत में हुए कई आतंकी हमलों की जांच और आरोपपत्र इन स्थानों तक पहुंच बनाते हैं, जो सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने में इनकी भूमिका साबित करते हैं.
इसलिए भारत की प्रतिक्रिया केवल आत्मरक्षा ही नहीं थी, बल्कि यह वैश्विक उदाहरण भी थी. यह दिखाया गया कि एक संप्रभु राष्ट्र को न केवल अधिकार है, बल्कि यह उसका कर्तव्य भी है कि जब मेज़बान राष्ट्र कार्रवाई करने से इनकार करे, तो वह आतंकवादी ढांचे को नष्ट करे.
इसके जवाब में पाकिस्तान ने ड्रोन हमलों के ज़रिए संघर्ष को बढ़ाया, जिनका निशाना नागरिक संरचनाएं थीं — श्रीनगर से लेकर भुज तक स्कूल, धार्मिक स्थल और सार्वजनिक स्थान.
इसके बाद भारत ने अपनी कार्रवाई तीन चरणों में तेज़ की:
आतंकवादी अड्डों को नष्ट करना,
लाहौर जैसे शहरी केंद्रों पर हमला करना,
और रणनीतिक वायु ठिकानों को निष्क्रिय करना.
इससे पाकिस्तान पर मनोवैज्ञानिक और सैन्य असर पड़ा.
फिर भी, भारत ने संयम बरता। हालात एक दीर्घकालीन युद्ध की ओर नहीं बढ़े। अंततः सीज़फायर स्थापित हुआ और भारत ने अपने प्रमुख रणनीतिक लक्ष्य हासिल कर लिए. अब भी भारत के पास सिंधु जल संधि और अंतरराष्ट्रीय उड़ान समझौते जैसे राजनयिक दबाव के साधन हैं, जो इस्लामाबाद पर दवाब बनाए रखने के लिए पर्याप्त हैं.
यह अभियान भारत की परिपक्व और संतुलित राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को दर्शाता है — जो वैध ख़तरों के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई को प्राथमिकता देती है, साथ ही राजनयिक विश्वसनीयता और आर्थिक स्थिरता को भी बनाए रखती है..संदेश स्पष्ट है: आतंकवाद का सामना भारत पूरी दृढ़ता, वैधता, सटीकता और रणनीतिक स्पष्टता के साथ करेगा..