लाइब्रेरी विलेज अरागाम: सरहद पर पुस्तक क्रांति

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 04-03-2023
लाइब्रेरी विलेज आरागांव: सरहद पर पुस्तक क्रांति
लाइब्रेरी विलेज आरागांव: सरहद पर पुस्तक क्रांति

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

कहावत है ज्ञान से बदलाव संभव है. इस सूत्र को अपनाकर अलगाववादी गतिविधियों के कारण बदनाम हो चुकी कश्मीर घाटी के कुछ लोग ‘पुस्कत क्रांति’ के जरिए तस्वीर बदलने की कोशिश में हैं. इसके लिए पुणे के सरहद फाउंडेशन के सिराजुद्दीन खान जहां पूरी कश्मीर घाटी को ‘नाॅलेज वैली’ और अपने अरागाम ( ARAGAM) को ‘लाइब्रेरी विलेज’ में तब्दील करने के अभियान में जुटे हैं, वहीं कुपवाड़ा के 26 वर्षीय मुबशिर मुश्ताक ने ‘हर गांव में लाइब्रेरी’ आंदोलन छेड़ रखा है. मजे की बात है कि दोनों शख्स के अभियान ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है और परिवर्तन की हलकी-हलकी हवा बहने भी लगी है.

दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में ‘सरहद फाउंडेशन’ के स्टॉल पर मुलाकात होने के बाद आवाज द वाॅयस से बातचीत में सिराजुद्दीन खान कहते हैं, ‘‘ पुस्तकें ही आपकी आंखें खोलती हैं. इल्म से आपको पता चलता है कि आप कहां खड़े हैं और आप क्या कर सकते हैं.’’
 
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सरहद फाउंडेशन की छत्रछाया में बचपन से जवानी की दहलीज पर पहुंचे तथा इतिहास में पीएचडी कर रहे सिराजुद्दीन बताते हैं कि उन्हें ‘लाइब्रेरी विलेज’ का ख्याल इंग्लैंड के एक गांव से आया. इसके लिए जब कोशिश शुरू की तो इसी बीच कोविड महामारी शुरू हो गई.
 
स्थिति जब थोड़ी सुधरी तब पता चला कि महाराष्ट्र के बेल्लार गांव में प्रदेश सरकार की मदद से  ‘गांव पुस्तकालय’ खोला गया है. वहां से जानकारी इकट्ठी करने के बाद उनका कन्सेप्ट और क्लीयर हो गया.
 
इस दिशा में अब सिराजुद्दीन की गतिविधियां तेज हो चुकी हैं. अभियान को सिरे चढ़ाने के लिए उन्हें नेशनल बुक ट्रस्ट आॅफ इंडिया ( NBT ) और जम्मू-कश्मीर शासन, प्रशासन से भी सहयोग मिल रहा है. इसके कारण वह पिछले दो महीने में बांदीपोरा

 जिले के अपने मूल गांव अरागाम के 22 से अधिक घरों में छोटे-छोटे पुस्तकालय स्थापित कर दिए हैं. इस गांव की आबादी करीब 500 लोगों की है तथा 100 के करीब घर हैं.
 
‘हर घर लाइब्रेरी’ के पीछे सिराजुद्दीन की मंशा है कि प्रत्येक घर की लाइब्रेरी किसी खास विशषय के पुस्तकांें की हो ताकि उस विषय के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए सभी  सभी आयु वर्ग के लोग एक दूसरे के यहां आ-जा चकें.’’ वह बताते हैं, इससे आपसी भाईचारा तो बढ़ेगा ही भारत-पाकिस्तान की सीमा के करीब इस गांव में अपनी समस्याओं के खिलाफ एकजुटता दिखाने में भी मदद मिलेगी.
 
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एलओसी के करीब के गांव कभी अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियां उनकी समस्याओं से जूझते रहे हैं. मगर सिराजुद्दीन के अभियान की बदौलत न केवल इलाके की सोच और माहौल में बदलाव आया है,  यहां का युवा वर्ग अब अपने भविष्य को लेकर भी चिंतित दिखता है.
 
सिराजुद्दीन बताते हैं कि मौजूदा दौर में सरकार सभी को नौकरी देने की स्थिति में नहीं हैं. इसलिए सेल्फ-हेल्फ को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरहद फाउंडेशन की मदद से उन्होंने  भी इस मंत्र को अपनाया है और ‘नाॅलेज आॅफ वैली’ अभियान को बढ़ाने के लिए हाल में ही उन्होंने एलओसी के करीब के गांव की 25 लड़कियों को पुणे स्थित फाउंडेशन के मुख्यालय में अंग्रेजी,कंप्यूटर आदि की शिक्षा दिलाई है. इन लड़कियांे की मदद से अन्य को भी प्रशिक्षित किया जाएगा.
 
‘अरागाम बुक विलेज’ का  काम पूरा होने के बाद इसी तर्ज पर अन्य गांव टेकओवर किए जाएंगे. साथ ही ‘वैली आॅफ नाॅलेज’ अभियान को आगे बढ़ाने के लिए घाटी के स्कूल-काॅलेज और सार्वजनिक दीवारों पर जम्मू-कश्मीर सहित देश की नामवर शख्सियतांे की रंग-बिरंगी तस्वीरें बनाई जाएंगी, जिनके बारे में संक्षित जानरी भी दी जाएगी.
 
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सिराजुद्दीन की तरह ही 26 वर्षीय मुबशिर मुश्ताक ने भी कुपवाड़ा के हेलमतपोरा गांव में ‘अरागाम में एक पुस्तकालय’ अभियान शुरू किया है. उन्हें इसका आइडिया कोविड 19 के पहले लॉकडाउन के समय तब आया जब वह गांव में एक पत्रिका पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. नहीं मिलने पर तब उन्हें श्रीनगर आना पड़ा था.
 
तभी उन्होंने गांव में लाइब्रेरी स्थापित करने की ठान ली. इसके लिए दोस्तों की मदद से करीब 2000 पुस्तकें इकट्ठी की और घर के ही एक हिस्से में 14 गुण 10 मीटर की एक लाइब्रेरी खोल दी. इस पुस्तकालय में यूपीएससी, एनईईटी सहित प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में मदद करने वाली पत्रिकाओं के अलावा फिक्शन और सेल्फ-हेल्प से संबंधित पुस्तके भी हैं.
 
मुबशिर के मुताबिक, उन्होंने जब पहली बार अपने परिवार से घर में पुस्तकालय खोलने की बात की तो सभी उन पर हंसने लगे, पर अब सभी उनके संघर्ष के साथी हैं. सुबह-शाम उनके घर पर पुस्तकांे के चाहने वालों की भीड़ लगती है. मुबशिर मुश्ताक ने श्रीनगर के एसपी कॉलेज से बायो-केमेस्ट्री में बीएससी की है. 
उन्होंने  अपने घर की पुस्तकालय को नाम दिया है-‘लेट्स टाॅक लाइब्रेरी.’ वह बताते हैं के यहां आने वाले ज्यादातर युवा ‘रिच डैडी पुअर डैली’ पढ़ना पसंद करते हैं. यह दरअसल, सेल्फ-हेल्फ पर बेहतरीन पुस्तक है.
 
मुबशिर बताते हैं कि एनईईटी, जेआरएफ और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आवश्यक महंगी किताबें का दान करने के इच्छुक लोगों से मिलने के लिए उन्होंने तकरीबन पूरे कश्मीर घाटी की यात्रा की है. इसी दौरान उन्हांेने सीमांत कुपवाड़ा जिले के गांवों में छोटे-छोटे पुस्तकालय स्थापित करने की अवधारणा को समझा और अब इसी दिशा में काम कर रहे हैं.
 
 
रिच डैड पुअर डैड, एनिमल फार्म और जॉर्ज ऑरवेल की किताब के बारे में कश्मीर के पुस्तक विक्रेताओं का कहना है कि ये पुस्तकें यहां के युवा खूब पसंद करते हैं. रिच डैड पुअर डैड सबसे लोकप्रिय स्व-सहायता पुस्तकों में से एक है.
 
प्रसिद्ध निवेशक रॉबर्ट कियोसाकी द्वारा लिखित यह पुस्तक बताती है कि कैसे लोग पैसे की चिंता किए बिना ज्ञान प्राप्त कर जीवन सुधार सकते हैं. घाटी के प्रमुख पुस्तक विक्रेता ”गुलशन बुक्स के मालिक शेख एजाज अहमद कहते हैं, ‘‘इन पुस्तकों के अधिकांश ग्राहक कॉलेज के छात्र और स्कूली बच्चे हैं.’’ 
 
सिराजुद्दीन खान और मुबशिर मुश्ताक, दोनों का माना है कि जैसे-जैसे घाटी की युवा पीढ़ी की किताबों के प्रति दिलचस्पी बढ़ रही है. उनके विचारों में व्यापक बदलाव देखा जा रहा है. इस लिए उन्हें अपने अभियान को गति देने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है.