त्वरित टिप्पणी: 'ऑपरेशन सिंदूर' ने भारत के कठोर-रुख को रेखांकित किया

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 11-05-2025
Quick Comment: 'Operation Sindoor' underlines India's tough stance
Quick Comment: 'Operation Sindoor' underlines India's tough stance

 

प्रमोद जोशी

लड़ाइयाँ इंसानियत के लिए अच्छी नहीं होतीं, पर वे अक्सर इसलिए होती हैं, क्योंकि दूसरा रास्ता नहीं होता. भविष्य की बड़ी लड़ाइयों को रोकने के लिए भी युद्ध होते हैं. यूरोप को दो विश्वयुद्ध देखने के बाद अकल आई कि लड़ाइयाँ निरर्थक होती हैं. 

'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत तीन दिन चली लड़ाई के दीर्घकालीन निहितार्थ बाद में समझ में आएँगे, पर पहला निहितार्थ है कि एक लंबे अरसे बाद दोनों देशों में 12 मई को बात होगी, भले ही वह डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस के स्तर पर हो.  

बेशक यह बात सैनिक-गतिविधियों तक सीमित रहेगी, पर संभव है कि इसके भीतर से भविष्य के वार्तालाप का कोई सूत्र निकल आए. ऐसा न भी हो, तब भी पहली संभावना है कि नियंत्रण रेखा पर 2021 से चल रहे युद्धविराम को जारी रखने का फैसला होगा. 

भारत ने इस दौरान सिंधु जल-संधि को निष्क्रिय करने की जो घोषणा की है, उसके भी बड़े निहितार्थ हैं. भारत ने कहा है कि पाकिस्तान के साथ फिलहाल केवल युद्धविराम की प्रक्रिया से जुड़े मसलों पर ही बात होगी. शेष किसी भी विषय पर वार्ता नहीं होगी. लगता है कि भारत सिंधु जल-संधि की शर्तों में बदलाव पर जोर देगा. 

इसमें दो राय नहीं कि यह युद्धविराम अमेरिका के प्रयास से हुआ है, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत किसी देश की मध्यस्थता को स्वीकार कर लेगा. 1999 में करगिल-युद्ध के दौरान भी अमेरिका ने हस्तक्षेप किया था. 

आतंकी चेहरा

इसबार भी पाकिस्तान का आतंकी चेहरा बेनकाब हुआ है. भारत ने अमेरिका के सामने सप्रमाण साबित किया कि लड़ाई के दौरान पाकिस्तान ने नागरिक उड़ानों को अपनी ढाल बनाया, जो भारी अपराध था. इसबार जो ठोकर लगी है, वह पाकिस्तान को अपने आतंकी-प्रतिष्ठान को लेकर गंभीरता से सोचने को मजबूर करेगी.  

भारत के इसबार के ‘सर्जिकल-स्ट्राइक’ का लेवल 2016 और 2019 के मुकाबले ज्यादा बड़ा था, जो भारत की प्रतिक्रियाओं में क्रमशः आती कठोरता का संकेतक है. इसबार की लड़ाई में भारत ने सहन करने की सीमा की लाल रेखा को और गाढ़ा कर दिया. 

इस लड़ाई का रुकना हर हाल में सकारात्मक गतिविधि है. हमें इसे रोकने में कोई दिक्कत भी नहीं थी, क्योंकि हमने इसे चलाने पर ज़ोर नहीं दिया था. चूँकि पाकिस्तानी सेना ने 7 मई के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ को स्वीकार नहीं किया और जवाब देने की घोषणा कर दी, तो हमारे पास जवाब देने के अलावा कोई चारा नहीं था.  

पाकिस्तानी नासमझी

भारत सरकार समझती थी 6-7 मई की रात में भारत ने पाकिस्तान के नौ आतंकी केंद्रों पर जो कार्रवाई की थी, उससे सबक लेकर पाकिस्तान ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिससे झगड़ा बढ़े. 

ऐसा हुआ नहीं और उसने 7-8 मई की रात भारत के कुछ शहरों पर मिसाइलों से हमले किए. भारतीय सेनाएँ इसका सामना करने के लिए भी तैयार थीं और उन्होंने इन हमलों को न सिर्फ नाकाम किया, बल्कि 8 मई को सुबह से लेकर शाम तक जवाबी हमले किए. 

पाकिस्तानी सेना को लगता था कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जवाब नहीं देंगे, तो नाक कटेगी. फिलहाल लगता है कि उन्होंने नाक कटवा कर युद्धविराम को स्वीकार किया है. इससे उनकी स्थिति पहले की तुलना में कमज़ोर हो गई है. 

संयत-प्रतिक्रिया

‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर 7 मई को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान, भारत ने अपनी प्रतिक्रिया को केंद्रित, संयत और गैर भड़काऊ बताया था. इसमें पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना नहीं बनाने का खासतौर से उल्लेख किया गया था. 

भारत ने साथ में यह भी कह दिया था कि भारत में सैन्य ठिकानों पर हमले करने की कोशिश की गई, तो फिर उसका उचित उत्तर दिया जाएगा. साथ ही यह भी कहा कि हमारा इरादा लड़ाई को भड़काना (एस्केलेशन) नहीं है. 

विशेष ब्रीफिंग के दौरान विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, पहलगाम हमला पहला एस्केलेशन था, जिसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान पर आती थी. उन्होंने पाकिस्तान के इस सुझाव की भी पोल खोली कि पहलगाम मामले की निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय जाँच  कराई जाए. 

उन्होंने कहा कि 26/11 और 2016 के पठानकोट हमलों के मामलों में हमने पाकिस्तान के साथ सहयोग करने का सुझाव दिया था, पर पाकिस्तान ने हाथ खींच लिया. जब भारत ने ऑपरेशन रूम से वॉयस रिकॉर्डिंग का मिलान हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी जैसे हिरासत में मौजूद लोगों से करने की कोशिश की, तो पाकिस्तान ने हाथ खड़े कर दिए. 

हत्यारों की पहचान

उन्होंने कहा कि पहलगाम के हमलावरों की पहचान भी हुई है. हमारी इंटेलिजेंस ने हमले में शामिल लोगों से जुड़ी जानकारी जुटा ली है. इस हमले का कनेक्शन पाकिस्तान से है. सबसे बड़ी बात यह है कि हमले की जिम्मेदारी द रेज़िस्टेंस फोरम (टीआरएफ) ने एक बार नहीं दो बार ले ली थी. 

इस संगठन के बारे में भारत पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी देता रहा है. सुरक्षा परिषद के वक्तव्य से इस संगठन के नाम को हटाए जाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

भारत ने 7 मई को नौ स्थानों पर हमले करने के बाद स्पष्ट कर दिया था कि हमारा इरादा और किसी जगह पर हमला करने का नहीं है. हमारा उद्देश्य केवल आतंकी गतिविधियों का संचालन करने वालों को सजा देना है. 

पाँच आतंकवादी

शनिवार को भारत ने उन पाँच बड़े आतंकवादियों की सूची जारी की, जो 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान मारे गए. बहावलपुर और मुरीद्के में मारे गए इन लोगों के अंतिम संस्कार में जिस तरह से वहाँ के सेनाध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे.

अंतिम संस्कार की तस्वीरों को देखने पर केवल वर्दी से फर्क का पता लगता है, अन्यथा बताना मुश्किल था कि कौन सैनिक है और कौन आतंकवादी. वस्तुतः सबूत पाकिस्तान को पेश करने हैं कि जिस टीआरएफ ने पहलगाम हिंसा की जिम्मेदारी ली है,

उसका लश्करे तैयबा के साथ कोई रिश्ता नहीं है. और यह भी साबित करना है कि लश्कर के अलावा जैशे मुहम्मद और हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के कैंप भी उसके देश में संचालित नहीं होते थे. 

दुष्प्रचार

लश्करे तैयबा के पिट्ठू संगठन रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने जब पहलगाम की हिंसा की ज़िम्मेदारी खुद ली, तो पाकिस्तानी नेतृत्व को इस बात की गंभीरता का पता लग गया. उन्होंने कहना शुरू किया कि भारत सबूत पेश करे और यह भारत का ‘फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन’ है. 

पाकिस्तान के इशारे पर अगले ही दिन टीआरएफ ने अपनी बात वापस ले ली और कहा कि हमारे सोशल मीडिया हैंडल को किसी ने हैक कर लिया था. यह बात टीआरएफ को तभी पता लगी, जब पाकिस्तान के रक्षामंत्री ने कहा कि पहलगाम की घटना में हमारा हाथ नहीं है. हैरत की बात है कि पाकिस्तान ने आज तक पहलगाम हत्याकांड की भर्त्सना नहीं की है. 

तुर्की-ब-तुर्की

इस ऑपरेशन के दौरान भारतीय सेना ने लगातार कहा कि हम अब पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई का उसी जगह और उसी गति से जवाब देंगे. शनिवार को भारत ने यह बात भी सिद्धांततः घोषित कर दी कि भविष्य में किसी भी आतंकी कार्रवाई को हम  भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा मानेंगे. 

बहरहाल देखना होगा कि तहत तीन दिन चली लड़ाई का पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति पर क्या असर होगा. उससे भी बड़ा सवाल जनरल आसिम मुनीर के भविष्य का है. खबरें हैं कि पाकिस्तान की सेना के भीतर उनका विरोध हो रहा है. दूसरी तरफ इमरान खान के समर्थक दबाव में आ नहीं रहे हैं.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)

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