हिंदुस्तान के हुनरमंद 9 : अनंतनाग के आईटी प्रोफेशनल हुमायूं खान ने एंब्राइडरी का पुश्तैनी काम संभाला, 250 कारीगरों को दिया रोजगार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-03-2023
एंब्राइडरी का पुश्तैनी काम संभाला, 250 कारीगरों को दिया रोजगार
एंब्राइडरी का पुश्तैनी काम संभाला, 250 कारीगरों को दिया रोजगार

 

अर्चना

 

कश्मीर के अनंतनाग के रहने वाले चेनस्टिच एंड केवल एंब्राइडरी के शिल्पकार हुमायूं खान ने बीटीए आईटी में डिप्लोमा किया. नौकरी की तलाश करते रहे, लेकिन कहीं सफलता हाथ नहीं लगी. इसके बाद उन्होंने अपने पिता मोहम्मद असरफखान के पुश्तैनी काम में हाथ आजमाया. शिक्षित होने के कारण नक्काशी के नए-नए डिजाइन तैयार किए और मेहनत रंग लाई. अब इस कला के जरिए हुमायूं की मंथली इनकम 70-80 हजार रुपए तक पहुंच गयी है.
 
यही नहीं, उन्होंने अपने पिता का काम बढ़ाकर करीब 250 लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है. इंटीरियर डेकोरेशन के कई सामान बनाने वाले हुमायूं खान अपने काम को दुनिया के आधा दर्जन से अधिक देशों तक ले जा चुके हैं.
 
अब कारोबार को ऑनलाइन मीडियम से भी आगे बढ़ाने में जुटे हैं. पांच साल पहले अपने पिता का हाथ बंटाने वाले हुमायूं एक सफल शिल्पकार बनकर उभरे हैं. उनका पूरा परिवार अब इसी काम मे जुट गया है.

एक मुलाकात में हुमायूं ने बताया कि उनके पिता मोहम्मद असफर खान दसवीं तक पढ़े हैं. कश्मीर में एंब्राइडरी का काम होता है. शुरू के दिनों में परिवार की आय कोई पुख्ता जरिया नहीं था. थोड़ी खेती थी, लेकिन उससे काम नहीं चल पाता था.

पैसों के अभाव में पिता पढ़ाई छोड़कर पेंटिंग का काम करने लगे. चूंकि आसपास के कई लोग इस काम में लगे थे. उन्हें देखकर दो-तीन साल तक कपड़ों पर पेंटिंग करना सीखा. इसके बाद उन कपड़ों में डिजाइन तैयार करने लगे. काम सीखने के बाद दूसरों के लिए काम करना शुरू किया.

महज 60-70 रुपए दिहाड़ी

 

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/167835870501_Indian_craftmen_IT_Professional_Humayun_Khan_took_up_the_ancestral_work_of_embroidery,_gave_employment_to_250_artists_2.jpg

 

हुमायूं बताते हैं कि उनके पिता जब दूसरों के लिए काम करते थे, तो दिन भर में महज 60-70 रुपए तक दिहाड़ी मिलती थी. ये बात करीब 30-32 साल पहले की है. कुछ दिनों तक संघर्ष करने के बाद थोड़े पैसे एकत्र किए.

अपना काम शुरू करने का फैसला किया, लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि तैयार माल कहां बिकता है. पड़ोसियों से पूछा, तो कोई सच बताने को तैयार नहीं था. फिर एक दिन वह श्रीनगर गए. वहां देखा कि एंब्राइडरी किए गए कपड़ों की बिक्री हो रही है. बड़े-बड़े व्यापारी यहां आते थे और शिल्पकारों के सामान खरीदकर ले जाते थे.

कम रेट पर सामान बेचा

हुमायूं बताते हैं कि उनके पिता ने जब अपना काम शुरू किया, तो तैयार माल साइकिल पर लेकर अनंतनाग से करीब 58 किलोमीटर दूर श्रीनगर के बाजार जाते थे. वहां व्यापारी माल खरीदने के लिए खूब मोलभाव करते थे.

कई बार तो कुछ भी माल नहीं बिकता था. साल भर से अधिक समय तक ये सिलिसला चलता रहा. मार्केट में अपनी पैठ बनाने के लिए मो. असरफ खान ने कम मार्जिंन में ही सामान देना शुरू कर दिया. हुमायूं हैं कि उनके वालिद जब दस व्यापारियों से संपर्क करते थे, तो उनमें से एक माल खरीदने के लिए तैयार होता था. 5-6 साल तक ये सिलसिला चलता रहा.

कई उत्पादों का निर्माण

हुमायूं बताया कि उनके पुश्तैनी काम में वाल हैंगिंग, टेबल रनर, पर्दे, बेड कवर, हैंड बैग, बिछाने के लिए रग, शूट आदि बनाते हैं. शूट में एंब्राइडरी करते हैं. काटन के कपड़े का माल तैयार करते हैं. सबसे पहले काटन के कपड़े में डिजाइन बनाते हैं, फिर उसमंे छपाई करते हैं.

उस छपाई पर धागे से विभिन्न रंगों से कढ़ाई की जाती है. उसमें आरी से एंब्राइडरी की जाती है. फिर उसकी धुलाई कराई जाती है. प्रेस आदि करने के बाद टेलर से सिलाई करवाकर प्रोडक्ट को आकार दिया जाता है.

2019 में हुमायूं ने संभाला काम

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शिल्पकार हुमायूं ने बताया कि आईटी का डिप्लोमा करने के बाद जब सरकारी नौकरी नहीं मिली, तो अपने पुश्तैनी काम में हाथ अजमाया. चूंकि घर में काम होने के कारण पढ़ाई के दौरान ही उन्होेंने भी एंब्राइडरी का काम सीखना शुरू कर दिया था.

वह बताते हैं कि जम्मू कश्मीर में प्राइवेट कंपनियां भी बहुत कम हैं, जो हैं भी, उनमेें इतनी सैलरी भी नहीं मिल पाती. यह सब देखकर पिता के साथ हाथ बंटाने का निर्णय लिया. आईटी की अच्छी जानकारी होने के कारण वे अपने काम में तकनीक का प्रयोग करने लगे. वह देश दुनिया मंे प्रचलित और ट्रेंड मंे चलने वाली डिजाईनों को खोजना शुरू किया. फिर उसी तरह माल बनाने शुरू किया.

देश-दुनिया में ऑनलाइन ट्रेडिंग

हुमायूं बताते हैं कि वे अपने प्रोडक्ट को दुबई, मलेशिया, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी आदि देशों में पहुंचा चुके हैं. ऑनलाइन अपना सामान  दुनिया भर में पहुंचाते हैं. उन्होंने बताया कि पहले सामान पर चिनार के पत्ते और फूल आदि बनाते थे.

लेकिन अब मॉर्डन आर्ट से नया लुक देने का काम किया जा रहा है. आज उनके प्रोडक्ट की डिमांड इतनी है कि ऑर्डर को पूरा करने के लिए करीब ढाई सौ लोगों से काम करवाना पड़ता है. सरकार से भी खूब सहयोग मिल रहा है. देश-दुनिया में लगने लगे मेला प्रदर्शनी में भेजा जाता है. सरकार जहां भी भेजती है, वहां रहने और खाने की व्यवस्था सरकार करती है.