द रिलक्टेंट मदर की लेखिका ज़हरा नकवी बोलीं - मातृत्व के बारे में रूढ़िवादिता की जांच जरूरी

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari • 1 Years ago
पत्रकारऔर पुस्तक द रिलक्टेंट मदर की लेखिका ज़हरा नकवी
पत्रकारऔर पुस्तक द रिलक्टेंट मदर की लेखिका ज़हरा नकवी

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

ज़हरा नकवी पुस्तक द रिलक्टेंट मदर: ए स्टोरी नो वन वांट्स टू टेल (हे हाउस) की लेखक हैं. समाचार पत्र उद्योग में काम करने के साथ  स्तंभकार भी हैं. इनसे बातचीत करने पर उन्होनें जानकारी दी कि वे लिंग, साहित्य, सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों, अर्थशास्त्र, दर्शन, जलवायु, संस्कृति और पालन-पोषण सहित विषयों के एक स्पेक्ट्रम पर एक दशक से  उनका  लेखन जारी है. 

ज़हरा नकवी के लेख, कॉलम और ऑप-एड नामी मीडिया हाउसेस इंडियन एक्सप्रेस, रीडर्स डाइजेस्ट, आउटलुक, द वायर, द हिंदू, द क्विंट, फाइनेंशियल क्रॉनिकल, वीमेंस वेब एंड चाइल्ड मैगज़ीन में प्रकाशित किए गए हैं. 
 
उत्तर प्रदेश के ट्रेलब्लेज़र पर एक राज्यसभा टीवी वृत्तचित्र में और उत्तर प्रदेश की शीर्ष 100 प्रेरक मुस्लिम महिलाओं की आरबीटीसी सूची में विशेष रुप से उन्होनें अपनी बात रखी है. लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय पर बोलते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रेडियो पर भी उन्होनें अपनी आवाज बुलंद की है.
 
 
 
 
 
सवाल: आपको क्यों लगता है कि मातृत्व के बारे में बात करने की ज़रूरत है?

ज़हरा नकवी ने बताया कि समाज में हमने माताओं को एक आसन पर रखा है, उन्हें देवी के रूप में महिमामंडित किया है, उन्हें बच्चा होने के लिए आभारी होने का आदेश दिया जाता है क्योंकि दुनिया में कई निःसंतान दंपत्ति हैं. लेकिन पीड़ा में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती; दर्द को मापने के लिए कोई इकाई नहीं है. पीड़ा, चाहे कितनी ही छोटी क्यों न हो, अथाह और अतुलनीय है और इसलिए एक व्यक्ति के संघर्षों को उनके संघर्षों को कम करने का कारण नहीं बनाया जा सकता है.
 
मातृत्व के बारे में हम जो रूढ़िवादिता रखते हैं, उसकी फिर से जांच करना बेहद जरूरी है- क्योंकि मां अंत में इंसान हैं, और उन्हें किसी भी अन्य इंसान की तरह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए. जैसा कि शशि देशपांडे ने राइटिंग फ्रॉम द मार्जिन एंड अदर एसेज़ में लिखा है: 'जब मैं माँ बनी, तो मुझे बताया गया था कि माताओं को कैसा महसूस होता है, और मुझे वास्तव में क्या महसूस हुआ, के बीच मुझे इस तरह की विसंगति मिली कि मैं बहुत परेशान थी.' तथ्य यह है कि मातृत्व एक अस्थिर अनुभव है, जो अभूतपूर्व उतार-चढ़ाव से भरा है. यह मिश्रित भावनाओं और आंतरिक संघर्ष से भरा है.
 
 
सवाल: महिला सशक्तीकरण प्रगती पर है मगर कहीं किसी कोने में अब भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं ?
ज़हरा नकवी ने कहा कि महिलाओं के उथान के लिए जरूरी ये भी है कि वो ये ख्याल अपने जहन से निकाल दें कि कोइ उनके बारे में सोच रहा है जब तक महिला खुद अपने बारे में उथान के बारे में नहीं सोचेंगी समाज में उनका स्तर ऊंचा नहीं हो सकता. उन्होनें बताया कि वे अलीगढ़ से हैं और दिल्ली 2009 में आईं हर जगह नारी उथान के लिए कार्य किए जा रहें हैं वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ीं जहाँ उन्होनें युवाओं को अपने विचार साझा करते हुए देखा है उन्होनें यह भी कहा कि अब युवा खुद ही रूढ़ीवादी सोच को छोड़कर आगे निकल चुके हैं जिससे घर में महिला का सम्मान बढ़ा है. 
 
सवाल: क्वालिटी एजुकेशन को महिलाओं तक कैसे पहुंचें ?
ज़हरा नकवी ने कहा कि सरकार को महिलाओं की शिक्षा पर जोर देने की जरुरत है ताकि वो अपनी जिंदगी में अपना महत्व जानें और पुरानी सोच, बलिदान से आगे भी दूसरों से पहले खुद का सोचें. अपने जीवन को खूबसूरत बनाए जानें कि वो भी एक इंसान है और उनको भी खुले तरीके से अपना जीवन जीना चाहिए. 
 
नकवी ने कहा कि महिलाओं की शिक्षा अत्यधिक जरूरी है क्योंकि जब एक महिला शिक्षित होती है तो पूरा समाज शिक्षित होता है अभी भी समाज में ऐसी महिलाएं हैं और ऐसे लोग हैं जिनकी सोच पुरानी है रूढ़िवादी है जिसे सुधारने के लिए एकमात्र उपचार शिक्षा है जब तक महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जानेंगे नहीं अपने जीवन को जीने में किसी और की मदद यह साला की आस छोड़ देंगे तभी एक नारी सशक्त हो सकती है और हमारा समाज इस बात पर मोहर लगा पाएगा कि महिलाएं ही समाज के उत्थान के लिए सूत्र है.