नफरत की जिद्द और मुहब्बत की प्रार्थना

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 07-07-2025
The persistence of hatred and the prayer of love
The persistence of hatred and the prayer of love

 

ha हरजिंदर

नफरत जब सिर चढ़ कर बोलती है तो इसका सबसे पहला शिकार वे सभी चीजें होती हैं जिन्हें हमने प्यार-मुहब्बत के लिए तैयार किया था.इस बात को समझने के लिए हमें राजस्थान में कोटा के एक बच्चों के स्कूल में जाना होगा. वहां हालांकि कुछ अनोखा नहीं है. यह लगभग वैसा ही है जैसे हमारे शहरों-कस्बों के स्कूल होते हैं. शहर के बोरखेड़ा इलाके का बख्शी स्प्रिंगडेल स्कूल उसी धारणा और भावना से चलता है जो हमारे समाज में बरसों से या शायद सदियों से ही रही है.

बच्चों के हर स्कूल की तरह यहां भी दिन की शुरुआत प्रार्थना से होती है. इस स्कूल ने अपनी प्रार्थना को नाम दिया है ‘सर्वधर्म प्रार्थना‘. इसकी शुरुआत ‘गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु...‘ से होती है.

इसके आगे गायत्री मंत्र आता है. इस प्रार्थना में सिखों के जपुजी साहिब की पहली कुछ पंक्तियां भी हैं. इसमें कुछ लाइने इस्लाम धर्म से भी ली गई हैं . कुछ ईसाई धर्म से भी. मकसद है बच्चों में सभी धर्मों के लिए सम्मान का भाव पैदा किया जाए.

ऐसा भी नहीं है कि यह कोई नई शुरुआत है. बरसों से यही हो रहा है. कभी किसी ने भी, यहां तक कि बच्चों के अभिभावकों ने भी इसकी आलोचना नहीं की.
यह बहुत कुछ महात्मा गांधी की उस सोच पर चल रहा है जो कहती है- ‘ईश्वर अल्लाह तेरो ही नाम, सबको सम्मति दे भगवान.‘

लेकिन कम से कम आज के दौर का सच यह है कि सबको सम्मति नहीं मिलती. अब कोटा के कुछ कट्टरपंथियों ने इस प्रार्थना का विरोध शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि उनके धर्म के बच्चों को दूसरे धर्म की पंक्तियां रोज दोहराने को क्यों कहा जा रहा है ?

आजकल इस तरह के विरोध सिर्फ शब्दों तक ही सीमित नहीं रहते. वे सड़कों पर उतरते हैं. प्रदर्शनों में बदलते हैं जो उग्र भी हो सकते हैं. अगर ये सब न भी हो तो भी वे डर तो पैदा ही करते हैं. मामला जब छोटे बच्चों का हो तो यह डर और भी बड़ा हो जाता है.

डर यह भी है कि अगर बात बढ़ी तो हो सकता है कि अभिभावक कुछ दिनों के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजना ही न बंद कर दें. वे अभिभावक जिन्हें इस प्रार्थना में कुछ भी गलत नहीं लगता. वे भी जिन्हें इस तरह की प्रार्थना अच्छी और जरूरी लगती है.

यह भी कहा जा रहा है कि मामला बढ़ा तो स्कूल को यह प्रार्थना बदलनी भी पड़ सकती है. ऐसा हुआ तो एक और अच्छी चीज नफरत के इस दौर की भेंट चढ़ जाएगी. बदकिस्मती से हमारे पर ऐसी मजबूत सामाजिक ताकते नहीं हैं जो ऐसी चीजों को बचाने के लिए ढाल बन कर खड़ी हो सकें.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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