प्लास्टिक का साया: जीवन पर मंडराता अदृश्य खतरा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-07-2025
Shadow of plastic: The invisible danger looming over life
Shadow of plastic: The invisible danger looming over life

 

 ffडॉ. प्रितम भि. गेडाम

दुनियाभर में जितने भी आविष्कार हुए, वो मानवजाती के विकास में सहयोग हेतु हुए, परंतु मानव ने अपनी आवश्यकताओं की सीमा को तोड़कर मनमानी शुरू कर दी और अपने साथ ही समस्त जीव सृष्टि के लिए विनाश का बिगुल फूंक दिया.ऐसा ही प्लास्टिक प्रदूषण आज हमारे पृथ्वी के लिए बड़ी समस्या बना है.धरती, आकाश, जल, हवा संपूर्ण वातावरण में प्लास्टिक प्रदूषण ने जीवन के लिए खतरा पैदा किया है और यह खतरा तेजी से घातक स्तर पर बढ़ रहा है.

फिर भी लोग समझने को तैयार नहीं है.हम अक्सर देखते हैं कि विशिष्ट प्लास्टिक बैग और अन्य प्लास्टिक सामग्री पर प्रतिबंध के बावजूद अवैध तरीके से धड़ल्ले से उपयोग की जाती है.प्लास्टिक प्रदूषण जीवन चक्र को बाधित करके नुकसान पहुंचा रहा है.

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इसी समस्या की गंभीरता को समझने के लिए हर साल 3जुलाई को "अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस" मनाया जाता है. इस वर्ष 2025की थीम “एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक बैग के उपयोग को कम करके उसके टिकाऊ विकल्पों को बढ़ावा देना” यह है.यह थीम डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग की समस्या को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर देता है और पुन: प्रयोज्य विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है.

अभियान का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और प्लास्टिक मुक्त भविष्य के लिए कार्रवाई को प्रेरित करना भी है.संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम अनुसार, हर साल 460 मिलियन मीट्रिक टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है.

प्लास्टिक का इस्तेमाल लगभग सभी औद्योगिक गतिविधियों में, निर्माण में, वाहनों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कृषि तक और सभी उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है.साल 2019में पर्यावरण में वैश्विक प्लास्टिक कचरे में से 88 प्रतिशत या लगभग 20 मिलियन मीट्रिक टन मैक्रोप्लास्टिक था, जो सभी पारिस्थितिकी तंत्रों को प्रदूषित करता है.

दुनिया का अधिकतर प्लास्टिक प्रदूषण बोतलों, कैप, शॉपिंग बैग, कप, स्ट्रॉ जैसे सिंगल-यूज़ उत्पादों से आता है.रोजाना दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में 2,000ट्रक प्लास्टिक कचरा डाला जाता है.यूएनईपी 2025 अनुसार, अब तक उत्पादित प्लास्टिक का केवल 9 फीसदी ही रीसाइकिल किया गया है.

शेष वातावरण में प्रदूषण के रूप में मौजूद है। ईएमएफ 2016अनुसार, साल 2050तक, समुद्र में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक हो सकता है.यूके सरकार 2018अनुसार, हर साल समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से 100,000से अधिक समुद्री स्तनधारी और दस लाख समुद्री पक्षी मारे जाते है.

सभी समुद्री कूड़े में प्लास्टिक 80 प्रतिशत है.प्लास्टिक हजार साल तक नष्ट न होनेवाला अपशिष्ट है, 1950 से अब तक दुनिया भर में 9.2 बिलियन टन से ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है, जिसमें से लगभग 7 बिलियन टन कचरे के रूप में गया है.

स्टेटिस्टा दर्शाता है कि, पिछले चार दशकों में वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन में सात गुना वृद्धि हुई है.एशिया वह क्षेत्र है जो सबसे अधिक अप्रबंधित प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, जो वैश्विक कुल का 65प्रतिशत है.

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प्लास्टिक प्रदूषण हमारे भोजन, पिने के पानी और हमारे द्वारा साँस ली जाने वाली ऑक्सीजन के माध्यम से भी हमारे शरीर में प्रवेश करता है.सौर विकिरण, हवा, धाराओं और अन्य प्राकृतिक कारकों के कारण, प्लास्टिक माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक में टूट जाता है.

नैनोप्लास्टिक शरीर में सहज प्रवेश करने में सक्षम है.माइक्रोप्लास्टिक हमारे दिल, फेफड़े, लीवर, तिल्ली, गुर्दे और दिमाग में भी पाए गए हैं, और हाल ही में किए गए एक अध्ययन में नवजात शिशुओं के प्लेसेंटा में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए.

प्लास्टिक से निकलनेवाले कम से कम 4,219 रसायन चिंता का विषय है.समुद्र में 24 ट्रिलियन माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े होने के कारण, समुद्री जीव अक्सर प्लास्टिक निगल लेते हैं.जब समुद्री जलचर को मनुष्य खाते हैं, तो वह प्लास्टिक मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है.शोधकर्ताओं का अनुमान है कि औसत व्यक्ति हर साल समुद्री भोजन से लगभग 53,864माइक्रोप्लास्टिक कण खाता है.

भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत बढ़कर प्रति वर्ष अनुमानित 11 किलोग्राम हो गई है और यह लगातार बढ़ेंगी.हर साल 5.8 मिलियन टन से अधिक कचरे को जला दिया जाता है, जिससे हवा में डाइऑक्सिन जैसे अनेक घातक प्रदूषक फैलते है और ये श्वसन संबंधी बीमारियों का कारण बनते है.

साथ ही कैंसर के जोखिम को बढ़ाते है.फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अनुसार, 2030तक बिना एकत्र किए गए प्लास्टिक कचरे से भारत को भौतिक मूल्य में 133बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान हो सकता है.

नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि भारत प्लास्टिक प्रदूषण में दुनिया का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया है, जो कुल वैश्विक प्लास्टिक कचरे का लगभग 20प्रतिशत है.भारत में प्रतिवर्ष 9.3मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण प्रदूषण के मामले में दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र से अधिक है.

भारत की आधिकारिक अपशिष्ट संग्रहण दर 95फीसदी है, जबकि शोध से पता चलता है कि वास्तविक दर लगभग 81 फीसदी है.हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में दैनिक प्लास्टिक कचरे का केवल 8-10 प्रतिशत ही पुनर्चक्रित किया जाता है, बाकी को जला दिया जाता है या लैंडफिल और जलमार्गों में फेंक दिया जाता है.

प्लास्टिक बैग पशु मृत्यु को बढ़ावा देता है, यह बायोडिग्रेडेबल नहीं होते, प्लास्टिक बैग पेट्रोलियम उत्पादों से बनाए जाते है. इसके निर्माण के दौरान जहरीले रसायन निकलते है.प्लास्टिक खाद्य भंडारण पैकेज में जहरीले रसायन होते है.प्लास्टिक बैग के बड़े जमाव से अक्सर जल निकासी व्यवस्था अवरुद्ध हो जाती है.

प्लास्टिक बैग बच्चों को फेफड़ों की जटिलताओं के जोखिम बढ़ाते है और महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते है. साथ ही प्लास्टिक पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है.प्लास्टिक बैग भूजल को प्रदूषित करते है, प्लास्टिक प्रदूषण प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला को बाधित करता है.प्लास्टिक बैग के उत्पादन में बहुत अधिक पानी का उपयोग किया जाता है.

अनभिज्ञता या लापरवाही कहें, लोग अक्सर गर्म खाद्यपदार्थों की पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक कैरीबैग का उपयोग सहजता से करते है.हम अपने आसपास देखते है कि गर्म पेय, चाय, कॉफी भी छोटी-छोटी कैरीबैग में लेकर जाते है.

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होटल, रेस्टोरेंट या सड़कों पर गर्मागर्म स्ट्रीट फ़ूड, नाश्ता, खाना भी प्लास्टिक प्लेट में खाते है या प्लास्टिक कैरीबैग में पार्सल के तौर पर उपयोग करते है, जो सेहत के लिए काफी घातक होता है.प्लास्टिक बैग में गर्म खाद्यपदार्थ या अन्न सामग्री का उपयोग जहर के समान है, क्योंकि गर्म खाद्यपदार्थ प्लास्टिक के संपर्क में आते ही रासायनिक प्रक्रिया शुरू करते है, प्लास्टिक गर्म होते ही उससे निकलनेवाले घातक रसायन खाद्य पदार्थों में समाविष्ट हो जाते है.

मनुष्य उस खाद्यपदार्थ का सेवन करके सीधे जानलेवा बीमारियों को आमंत्रित करता है.यह सब जानते हुए भी देश में बड़ी मात्रा में खाद्यपदार्थों के लिए प्लास्टिक का उपयोग बेख़ौफ़ तरीके से होता है.प्लास्टिक का उत्पादन उपभोक्ता की मांग को पूरा करने के लिए है, अगर हम उपभोक्ता ही प्लास्टिक से दुरी बना लें, तो समस्या काफी हद तक खत्म हो सकती है.

प्लास्टिक के अन्य पर्याय को अपनाना और जागरूकता एवं पर्यावरण के बचाव के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है.सबसे पहले अपना स्वार्थ और आलस छोड़ें, सरकारी नीतिनियमों का कड़ाई से पालन करें.फिर प्लास्टिक के संभवत पर्यायों का अवलंबन करें.उपयोग करो और फेंक दो जैसी वस्तुओं को ना कहें.

प्लास्टिक कैरीबैग को पूर्णत भूल जाएं, खाद्यपदार्थों के पैकेजिंग में प्लास्टिक का उपयोग टाले.प्लास्टिक आज सुविधा परंतु जीवनभर के लिए दुविधा है यह समझें.पर्यावरण हमें बेहतर जीवन देने के लिए है. अगर हम ही अपने पर्यावरण को बर्बाद करेंगे तो पर्यावरण भी हमें जीवन नहीं अपितु बर्बादी ही देगा, इस बात की गंभीरता को समझें और जागरूक नागरिक का फर्ज निभाएं.