सायरा बानो ने दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच भाई-बहन के रिश्ते को याद किया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 30-08-2023
A file photo of Dilip Kumar and Lata Mangeshkar
A file photo of Dilip Kumar and Lata Mangeshkar

 

मुंबई . रक्षा बंधन के अवसर पर, अनुभवी अभिनेत्री सायरा बानो ने एक लंबा और हार्दिक नोट पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने लता मंगेशकर का अपने पति दिलीप कुमार के लिए बहन जैसा प्यार बताया गया, जो दशकों तक चला .

दोनों दिग्गजों के बीच का यह बंधन कोई रहस्य नहीं है, और बुढ़ापे के आने के लंबे समय बाद भी, दोनों बॉलीवुड में अपने शुरुआती दिनों से साझा किए गए संबंध को कभी नहीं भूले, और अपने अंतिम वर्षों तक करीब रहे .

अभिनेत्री ने इंस्टाग्राम पर दोनों के बुढ़ापे की कई तस्वीरें पोस्ट कीं और बताया कि कैसे उनका रिश्ता जीवन भर बना रहा . उन्होंने पोस्ट को एक लंबी कहानी के साथ कैप्शन दिया, जिसमें भाई और बहन के रूप में उनके आजीवन बंधन के इतिहास का विवरण दिया गया .

पोस्ट में लिखा था, ‘‘भारतीय सिनेमा के कोहिनूर दिलीप साहब और भारतीय संगीत उद्योग की स्वर कोकिला लता मंगेशकर के बीच उनके शानदार स्टारडम की चकाचौंध से परे एक संबंध था . उन्होंने भाई-बहन का रिश्ता साझा किया .’’

‘‘उन सुनहरे शांत बीते दिनों में इस महान युगल को अपने घरों से अपने कार्यस्थलों तक लोकल ट्रेनों में यात्रा करना आरामदायक लगता था, जिन्हें इस अद्भुत शहर मुंबई की जीवन-रेखा भी कहा जाता है .’’

यह बताते हुए कि उनका बंधन कैसे बना और कैसे दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर को महान गायिका बनने में मदद की, सायरा बानो ने कहा, ‘‘इस यात्रा के दौरान उन्होंने अपने विचार, अनुभव साझा किए और एक-दूसरे से सलाह मांगी . ऐसी ही एक यात्रा के दौरान साहब ने लताजी को मार्गदर्शन दिया कि उर्दू का हृदय उसके त्रुटिहीन उच्चारण में कितना निहित है और कैसे नुक्ता जैसी सरल चीज शब्दों में एक सुंदर जोड़ जोड़ती है .;;

“साहब ने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्ति को बोली जाने वाली भाषाओं पर महारत हासिल होनी चाहिए . लता जी, जो हर तरह से एक आज्ञाकारी बहन थीं, ने उनकी सलाह पर काम किया और एक उर्दू ट्यूटर से उर्दू सीखी .’’ ‘‘तब से, दुनिया उनके गीतों में उनके त्रुटिहीन उच्चारण की गवाह बनी .’’

उस समय से, दोनों के बीच एक अटूट बंधन बन गया, जिसे वे हमेशा राखी के माध्यम से मनाते थे, चाहे वे कितने भी व्यस्त क्यों न हों . उन्होंने कहा, “काम या यात्रा या किसी व्यक्तिगत प्रतिबद्धताओं में व्यस्त होने के बावजूद, वे दोनों मिलने का रास्ता ढूंढ लेते थे . रक्षाबंधन पर लताजी साहब के हाथ पर पवित्र राखी बांधती थीं .”

‘‘मेरी ख़ुशी की बात है कि वे दोनों साल-दर-साल इस अनुष्ठान का पालन करते रहे और मैंने, इस खूबसूरत भाव के बदले में, हर बार उनकी पसंद के अनुसार उन्हें एक ब्रोकेड साड़ी भेजी!’’

दरअसल, दिलीप कुमार हमेशा लता मंगेशकर को अपनी छोटी बहन मानते थे और पूरी दुनिया के सामने उनका परिचय इसी तरह कराते थे, “दिलीप साहब ने उन्हें लंदन के प्रतिष्ठित रॉयल अल्बर्ट हॉल में पेश होने का सम्मान दिया, जहां पहले भारतीय संगीत कार्यक्रम की गूंज सुनाई देती थी .”

“अत्यंत सादगी के साथ, उन्होंने उन्हें मंच पर बुलाया . ये मेरी छोटी सी बहन बोहत मुख्तसर सी, मैं इनका परिचय कराने आया हूं .’’ दर्शकों ने सराहना से गर्जना की . इसी समारोह में लंबे समय तक चलने वाले हजारों रिकॉर्ड बनाए गए और जनता को बेचे गए . कई साल बाद, उन्होंने उसे फिर से लंदन पैलेडियम में पेश किया .

उन्होंने कहा, “बीमारी और स्वास्थ्य में भाई-बहन का यह बंधन अंत तक बना रहा . वह अक्सर साहब से मिलने हमारे घर आती थीं और वे दोपहर का भोजन या रात का खाना एक साथ खाते थे .”

“पिछली बार जब वह यहां आई थीं, तो उन्हों ने उन्हें प्यार से अपने हाथों से खाना खिलाया था और उन्होंने मिलकर इतनी प्यारी तस्वीर बनाई थी . ऐसा प्यार था जो उन्होंने साझा किया...स्मारकीय!”

दिलीप कुमार और लता मंगेशकर दो ऐसे दिग्गज हैं, जिन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है, और उनका रिश्ता 1948 में उनकी पहली मुलाकात के बाद से सात दशकों से अधिक समय तक चला, क्योंकि दोनों की मुलाकात मुंबई की लोकल ट्रेन में हुई थी . दोनों ने कुछ सबसे प्रतिष्ठित भारतीय फिल्मों में सहयोग किया, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण ‘मुगल-ए-आजम’ है .

 


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