जब मुग़ल राखी के बंधन से बंधे, और की अपनी हिंदू बहन की हिफ़ाज़त

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  [email protected] | Date 30-08-2023
Raksha Bandhan is the festival of serious relationship between brother and sister.
Raksha Bandhan is the festival of serious relationship between brother and sister.

 

-ज़ाहिद ख़ान

रक्षाबंधन, भाई-बहन के पाकीज़ा रिश्ते से जुड़ा एक अहम त्यौहार है, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर, उसकी लंबी उम्र की दुआएं करती है, तो भाई भी अपनी बहन की हर मौक़े पर हिफ़ाज़त और उसकी मदद का क़ौल (वचन) लेता है. यह एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें मज़हब और जाति की कोई दीवार आड़े नहीं आती. आपसी मरासिम (संबंध) और जज़्बात सबसे अहम होते हैं.

 हमारे मुल्क में सदियों से यह त्यौहार बेहद ख़ुलूस और मुहब्बत से मनाया जाता रहा है. इस त्यौहार से जुड़े हुए कई क़िस्से प्रचलित हैं. इन क़िस्सों से हिंदू-मुस्लिम समुदाय की एकता और उनके बीच भाईचारे, सद्भावना का परिचय मिलता है. मुग़ल इतिहास को पढ़ें, तो उसमें भी रक्षाबंधन त्यौहार से जुड़े कई क़िस्से दर्ज हैं.
 
ऐसा ही एक अहम क़िस्सा, मुग़ल बादशाह हुमायूं और चित्तौड़गढ़ की बहादुर राजपूत रानी करनावती का है. जब बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया, तो वहां के राजा दिवंगत संग्राम सिंह की सबसे छोटी पत्नी रानी करनावती ने मुग़ल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर, उनसे मदद की गुहार की.
 
हुमायूं अपने जानिब रानी के इस यक़ीन के जज़्बे से बेहद मुतास्सिर हुआ. वह उस वक़्त बंगाल में एक जंग में मशगूल था. उसने रानी की इस इल्तिजा (विनती) पर फ़ौरन ध्यान दिया और अपनी सेना की एक टुकड़ी चित्तौड़गढ़ की ओर रवाना कर दी.
 
 ज़ाहिर है कि इस जंग में फ़तह का सेहरा हुमायूं की सेना के सिर बंधा। चित्तौड़गढ़ से उन्होंने बहादुरशाह की फ़ौजों को खदेड़कर, राजपूतों की सत्ता दोबारा बहाल कर दी. इस वाक़िए के बाद हुमायूं, रानी करनावती के राखीबंद भाई बन गए.
 
 जब भी रानी करनावती को कोई ज़रूरत पड़ी, उन्होंने अपनी बहन की हर मुमकिन मदद की. हुमायूं के उत्तराधिकारियों ने भी इस राखी का हमेशा सम्मान किया। राखी को जतन से संभालकर रखा। यहां तक कि मुग़ल मलिका नूरजहां बाद में इस राखी को शाही परिवार से जुड़े दीगर लोगों को बड़े ही इज़्ज़त और एहतिराम से दिखलाया करती थीं.
 
मुग़ल बादशाह अकबर के दौर में भी सभी हिंदू त्यौहार बिना किसी भेदभाव के ज़बर्दस्त उल्लास और उमंग के साथ मनाए जाते थे. यहां तक कि रक्षाबंधन के दिन दरबार के उच्च पदों पर बैठे लोग शहंशाह की कलाई पर राखी का रेशमी धागा बांधा करते थे. अकबर के बाद आने वाले मुगल बादशाहों ने अपने राज में यह रिवायत जारी रखी। रक्षाबंधन से जुड़ा एक और क़िस्सा है.
 
मुग़ल बादशाह शाहआलम ने भी एक हिंदू औरत को अपनी बहन बनाया था. शाहआलम उस औरत से काफ़ी मुतास्सिर था। वजह, शाहआलम के वालिद आलमगीर की जब जंग के मैदान में मौत हो गई, तब इस औरत ने उनकी लाश की सारी रात जागकर हिफ़ाज़त की थी.
 
शाहआलम, उस औरत की इस वफ़ादारी और तीमारदारी से काफ़ी प्रभावित हुआ। शाहआलम ने बाकायदा उस औरत को पहले दरबार-ए-आम में बुलाया और उसे बहन कहकर नवाज़ा। शाहआलम की यह मुंहबोली बहन हर साल रक्षाबंधन और भैया दूज के दिन दरबार आती और शाहआलम की कलाई पर मोतियों से जड़ी रेशमी राखी बांधती.
 
शाहआलम, अपनी इस बहन को तोहफ़ों से नवाज़ते. शाहआलम की मौत के बाद, उनके उत्तराधिकारी अकबर शाह और बहादुरशाह ज़फ़र ने भी उस औरत से आख़िर तक भाई का रिश्ता क़ायम रखा. वे राखी के मौक़े पर उसे नवाज़ने के अलावा महंगे तोहफ़े भी देते और उसका एहतिराम करते.
 
हिंदू-मुस्लिम भाई-बहनों के बीच राखी का यह त्यौहार आज भी बड़े साम्प्रदायिक सौहार्द से मनाया जाता है. हर साल रक्षाबंधन के दिन मीडिया में ऐसे क़िस्से ज़रूर जगह पाते हैं, जिसमें धर्म की पाबंदियों, रूढ़ियों से परे जाकर हिंदू बहन अपने मुस्लिम भाई को, तो मुस्लिम बहन अपने हिंदू भाई को राखी बांधकर, उसकी लंबी उम्र की दुआ करती है.
 
वे सगे भाई-बहन की तरह प्यार और विश्वास की डोरी से बंधे रहते हैं. यही प्यार, आपसी विश्वास और एक-दूसरे धर्म के बीच रिश्तों की महक, हमारे पूरे समाज को महकाती रहती है. रक्षाबंधन को मनाने के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं जो भी हों, लेकिन सबसे बड़ी मान्यता आपसी प्रेम, सद्भावना और विश्वास की है. जो एक-दूसरे को बरसों से बांधे हुए है.
 
ख़ून के रिश्तों से भी कहीं ज़्यादा, ये रिश्ते मायने रखते हैं. यही हिंदुस्तान की असली तस्वीर है, जो सदियों से देश के दो बड़े समुदायों को आपस में प्यार और भाईचारे से जोड़े हुए है.