-फ़िरदौस ख़ान
ईद उल अज़हा पर क़ुर्बानी की जाती है. क़ुर्बानी दीन का एक अर्कान है, जो हमें तमाम तरह की बुराइयों से बचने और अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्यारी चीज़ क़ुर्बान करने का पैग़ाम देता है. क़ुर्बानी का मतलब सिर्फ़ चौपायों को ज़िब्ह करना ही नहीं है, बल्कि ये एक ऐसी ज़िन्दगी जीने के लिए रहनुमाई करती है, जिससे अपने साथ-साथ दूसरों का भी भला हो. अगर कोई इंसान किसी दूसरे के साथ भलाई करता है, तो वह सबसे पहले अपना ही भला करता है, यानी वह अपनी दुनिया संवारने के साथ-साथ अपनी आख़िरत भी संवार लेता है.
अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में बार-बार नेकी करने का हुक्म दिया है. अल्लाह तआला फ़रमाता है- “जिसने नेकी कमाई, तो अपने फ़ायदे के लिए ही कमाई.” (क़ुरआन 2:286)
“और तुम में से एक उम्मत ऐसी ज़रूर होनी चाहिए, जो लोगों को भलाई की तरफ़ बुलाए और अच्छे काम करने का हुक्म दे और बुराई से रोके और यही वे लोग हैं, जो कामयाबी पाएंगे. (क़ुरआन 3:104)
“ऐ मुसलमानो ! तुम बेहतरीन उम्मत हो, जो सब लोगों की रहनुमाई के लिए ज़ाहिर की गई है. तुम अच्छे काम करने का हुक्म देते हो और बुरे कामों से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो.” (क़ुरआन 3:110)
“और तुम्हारा फ़र्ज़ यह है कि नेकी और परहेज़गारी के कामों में एक दूसरे की मदद किया करो.” (क़ुरआन 5:2)
“क़यामत के दिन जो शख़्स एक नेकी लाएगा, तो उसके लिए दस नेकियां हैं.” (क़ुरआन 6:160)
“बेशक अल्लाह नेकी करने वालों का अज्र ज़ाया नहीं करता है.” (क़ुरआन 9:120)
“और बेशक अल्लाह उन लोगों के साथ है, जो परहेज़गार हैं और दूसरों पर अहसान करते हैं.” (क़ुरआन 16:128)
बेशक भलाई का बदला भलाई के सिवा कुछ भी नहीं है. भले ही इस्लाम में नमाज़ सिर्फ़ पांच वक़्त की ही फ़र्ज़ है, जबकि अख़लाक चौबीस घंटे फ़र्ज़ किया गया है. इसलिए इस्लाम सबके साथ भलाई करने हुक्म देता है.
इंसान को क़दम-क़दम पर नेकी करने के मौक़े मिलते हैं. वही इंसान नेकी करने में आगे रहता है, जिसमें क़ुर्बानी का जज़्बा हो. मिसाल के तौर पर आपके पास दो रोटियां हैं और किसी भूखे ने आपसे खाना मांगा, तो आप उसे उसमें से एक रोटी दे दें या फिर दोनों ही रोटियां उसे देकर ख़ुशी महसूस करें कि चलो किसी का तो पेट भर गया.
आपके पास कोई ऐसी चीज़ है, जो आपको बहुत अज़ीज़ है. किसी रिश्तेदार या परिचित ने आपसे वह चीज़ मांग ली और आपने उसे वह चीज़ ख़ुशी-ख़ुशी दे दी, तो यही नेकी और सच्ची क़ुर्बानी है.
इंसाफ़ करना भी नेकी और क़ुर्बानी का ही एक हिस्सा है. आपके पास विषम संख्या में फल या कोई अन्य चीज़ है और आपको उसे किसी दूसरे के साथ बराबर बांटना है. आपने बांटते समय गिनती में बचा फल या चीज़ अपने पास न रखकर दूसरे के हिस्से में रख दी, तो यह भी नेकी और क़ुर्बानी ही है.
गर्मी के मौसम में बहुत से लोग सबील लगाकर राहगीरों को ठंडा पानी पिलाते हैं. बहुत से लोग भूखों को खाना खिलाते हैं. बहुत से लोग ज़रूरतमंदों में राशन और कपड़े बांटते हैं.
ये सब क़ुर्बानी ही है, क्योंकि इन कामों में वे अपने ख़ून पसीने की कमाई ख़र्च करते हैं. इसके साथ-साथ वे अपना वक़्त भी ख़र्च करते हैं. वक़्त ज़िन्दगी का अटूट हिस्सा है. इन्हीं लम्हों से मिलकर तो उम्र बनती है.
किसी भी क्षेत्र में आपका कोई शागिर्द यानी शिष्य है. आप उसे अपना हुनर सिखा रहे हैं और यह चाहते हैं कि वह आपसे भी ज़्यादा हुनरमंद और कामयाब बने. आप काम में उसकी पूरी मदद करते हैं और अपनी मेहनत का भी सारा श्रेय उसे ही देते हैं, तो यह भी क़ुर्बानी ही है.
आप बस, रेल या मैट्रो में सफ़र कर रहे हैं. किसी ज़रूरतमंद को देखते ही उसे अपनी सीट दे देते हैं, तो यह भी क़ुर्बानी ही है, क्योंकि आपने अपना आराम गंवाकर किसी को राहत पहुंचाई है.
इसी तरह किसी अस्पताल में आप क़तार में लगे हैं, और आपके पीछे कोई गंभीर मरीज़ है और आप उसे अपनी जगह दे देते हैं, तो यह भी नेकी और क़ुर्बानी ही है. ऐसी बहुत सी मिसालें हैं. दरअसल, दूसरों की मदद करना इंसानियत का तक़ाज़ा भी है.
क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “और तुम अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ और वालिदैन के साथ हुस्ने-सुलूक करो और रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और नज़दीकी पड़ौसियों और अजनबी पड़ौसियों और साथ उठने बैठने वालों और मुसाफ़िरों और अपने गु़लामों से अच्छा बर्ताव करो.” (क़ुरआन 4:36)
“फिर तुम अपने रिश्तेदारों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों को उनका हक़ देते रहो. ये उन लोगों के हक़ में बेहतर है, जो अल्लाह की ख़ुशनूदी चाहते हैं. और वही लोग कामयाबी पाने वाले हैं.” (क़ुरआन 30:38)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है- “मानवाधिकार की सबसे बड़ी बात ये है कि इंसान दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करे.” (मुस्लिम)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने की बार-बार ताक़ीद की. एक हदीस के मुताबिक़ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर तुम किसी की मदद करने के क़ाबिल न हो, तो किसी और से उसकी सिफ़ारिश कर दिया करो.
एक अन्य हदीस के मुताबिक़ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो आदमी अपने किसी भाई को जिसके जिस्म पर ज़रूरत के मुताबिक़ कपड़े न हों, उसे कपड़े पहनाएगा या देगा, तो अल्लाह उसे जन्नत का हर जोड़ा पहनाएगा.
और जो किसी भूखे को खाना खिलाएगा, तो अल्लाह उसे जन्नत के मेवे खिलाएगा. जो किसी प्यासे को पानी पिलाएगा, तो अल्लाह उसे जन्नत का शर्बत पिलाएगा.
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है- “रहमान यानी अल्लाह की इबादत करो और खाना खिलाया करो और सलाम को आम करो, चाहे उससे जान पहचान हो या न हो.” (तिर्मिज़ी)
अबूज़र ग़फ़्फ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें नसीहत दी कि अबूज़र शोरबा पकाओ, तो उसमें पानी बढ़ा दिया करो और उससे अपने हमसायों यानी पड़ौसियों की ख़बरगिरी करते रहो यानी उसमें से अपने हमसाये को भी कुछ दे दिया करो. (सही मुस्लिम)
असल क़ुर्बानी अपने वजूद से किसी को तकलीफ़ न पहुंचाना भी है. इंसान को दूसरों के लिए ज़हमत नहीं, बल्कि रहमत का ज़रिया होना चाहिए. यही ईद उल अज़हा का पैग़ाम है.
(लेखिका आलिमा हैं और उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)