जब एक नवजात शिशु इस संसार में पहली बार आँखें खोलता है, तो उसे जो सबसे पहला सुरक्षा का एहसास मिलता है, वह होता है अपनी माँ की गोद और पिता की छांव. माँ जहां स्नेह और ममता की प्रतिमूर्ति होती है, वहीं पिता वह स्तंभ है जो अपने परिवार की नींव को स्थिरता, साहस और दिशा देता है.
भारत की दो प्रमुख धार्मिक परंपराएँ—सनातन धर्म और इस्लाम—पिता की भूमिका को केवल सामाजिक या आर्थिक दायित्व तक सीमित नहीं रखतीं, बल्कि उसे आध्यात्मिक उन्नयन और जीवन की नैतिक दिशा का मार्गदर्शक मानती हैं.
इस्लामी दृष्टिकोण में पिता की महत्ता
इस्लाम में पिता को वह स्थान प्राप्त है जो जन्नत के द्वारों में से एक माना गया है. क़ुरआन और हदीस में बार-बार यह स्मरण कराया गया है कि माता-पिता, विशेष रूप से पिता की सेवा और उनका सम्मान, किसी इबादत से कम नहीं है.
कुरआन की आयतें न केवल यह आदेश देती हैं कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक न किया जाए, बल्कि उसी breath में यह भी कहती हैं कि माता-पिता के साथ भलाई की जाए.
कुरआन की एक आयत (2:83) कहती है: “अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो, और माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो. यह बताता है कि माता-पिता की सेवा केवल सामाजिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि ईश्वरीय आदेश है। यह सेवा तौहीद (एकेश्वरवाद) के मूल सिद्धांत के समकक्ष मानी गई है.
पैग़म्बर मोहम्मद (सल्ल.) ने हदीस में फरमाया: “पिता जन्नत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है, चाहे तो उसे बचा लो या खो दो।” यह कथन पिता के महत्व को ऐसे दर्शाता है जैसे वह स्वर्ग का दरवाज़ा स्वयं हो, जिसकी रक्षा करना ही जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में एक है.
इमाम अली (अ.स) ने खुद को उम्मत का पिता कहा, यह संकेत देता है कि पिता केवल जन्म देने वाला नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, चिंतक और सुरक्षा कवच भी है. इमाम सादिक (अ.स) के साथी इब्राहीम का ज़िक्र आता है, जो अपने वृद्ध पिता को कंधों पर उठाकर सेवा करते थे. इस पर इमाम ने उनकी इस सेवा को जहन्नुम की आग से बचने का सबसे बड़ा जरिया बताया.
इन शिक्षाओं से यह स्पष्ट होता है कि इस्लाम में पिता की सेवा केवल सांसारिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति और अल्लाह की रज़ा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है.
सनातन धर्म में पिता की आध्यात्मिक भूमिका
सनातन परंपरा में पिता केवल पालनकर्ता नहीं होता, वह उस बीज की तरह होता है जिससे जीवन की पूरी यात्रा अंकुरित होती है. हिन्दू शास्त्रों में मनुष्य जन्म को सबसे दुर्लभ और मूल्यवान माना गया है क्योंकि केवल इसी जीवन में आत्मिक विकास और मुक्ति संभव है. इसलिए उस जीवन को जन्म देने वाले माता-पिता के प्रति गहन कृतज्ञता और ऋणभाव का उल्लेख वेदों और उपनिषदों में विस्तार से मिलता है.
हिंदू धर्म में पितृत्व के कई रूपों का उल्लेख मिलता है—जैविक पिता, गुरु, ऋषि, राजा और यहां तक कि बैल तक को पिता के रूप में देखा गया है. जैविक पिता वह होता है जो हमें जन्म देता है और इस संसार में आध्यात्मिक यात्रा के लिए अवसर प्रदान करता है.
ऐसे पिता जो अपने बच्चों को निःस्वार्थ प्रेम, नैतिक शिक्षा और धर्म के मार्ग पर चलना सिखाते हैं, वे समाज और धर्म दोनों के संरक्षक माने जाते हैं.
गुरु को "आध्यात्मिक पिता" कहा गया है. वह जो अपने शिष्यों को न केवल शास्त्रों का ज्ञान देता है, बल्कि जीवन के सही मूल्य भी सिखाता है. गुरुकुल परंपरा में बच्चे गुरु के पास रहकर धर्म, संयम और आत्मज्ञान की शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरु की छाया में शिष्य केवल विद्वान नहीं बनता, बल्कि एक सच्चा इंसान बनता है.
ऋषि—जैसे वेदव्यास, वशिष्ठ, अगस्त्य—वे समाज के "दार्शनिक पिता" थे. उन्होंने धर्म की नींव को शब्दों और कर्मों से मजबूत किया. वेदों का संकलन, पुराणों की रचना और कलियुग जैसी अधोगामी प्रवृत्तियों का सामना करने के लिए यज्ञों का आयोजन—इन सभी प्रयासों में उनका लक्ष्य केवल एक था: मानवता को धर्म के पथ पर चलाए रखना.
राजा को "संरक्षक पिता" कहा गया है. वह जो अपने प्रजा की सुरक्षा, न्याय और धर्म की रक्षा करता है. जैसे भगवान राम को "राजा" नहीं बल्कि "मर्यादा पुरुषोत्तम" के रूप में पूजा जाता है, वैसे ही हर आदर्श शासक का कर्तव्य यह था कि वह अपने प्रजा को आत्मिक उन्नति की राह पर आगे बढ़ने दे.
सबसे दिलचस्प रूप में, हिन्दू समाज ने बैल को भी पिता माना. क्योंकि यह प्राणी अन्न उत्पादन के लिए आवश्यक होता था और समाज की आर्थिक रीढ़ था। बैल को धर्म का प्रतीक माना गया, और इस आधार पर समाज की नैतिकता को मापा गया कि वे अपने बैलों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं. यह दृष्टिकोण पितृत्व की अवधारणा को जैविक सीमाओं से बाहर ले जाकर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयाम देता है.
फादर्स डे: धर्म की राह में पिता का सम्मान
आज जब हम पश्चिमी शैली में "फादर्स डे" मनाते हैं, तब हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों में पिता को एक अत्यंत उच्च स्थान प्राप्त है.इस्लाम हमें सिखाता है कि पिता की रज़ा जन्नत का दरवाज़ा है, वहीं सनातन धर्म हमें दिखाता है कि पिता वह प्रथम गुरु है जो हमें जीवन के शिखर तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है.
पिता वह वृक्ष है जिसकी छाया में हम शीतलता पाते हैं, वह दीपक है जो अपने को जलाकर हमारे लिए प्रकाश करता है, और वह स्तंभ है जो कभी न झुकते हुए हमें जीवन की आंधियों से सुरक्षित रखता है.
इस फादर्स डे पर अगर हम सचमुच अपने पिता को सम्मान देना चाहते हैं, तो हमें उनकी सेवा, आज्ञा और मार्गदर्शन को केवल एक दिन के इमोशनल सेलिब्रेशन तक सीमित न करके, उसे अपने जीवन की सतत साधना बना लेना चाहिए. क्योंकि पिता केवल जन्मदाता नहीं, वह धर्म, दया, त्याग और तपस्या का जीता-जागता रूप है—और उसकी सेवा, दोनों धर्मों की नजर में, जन्नत की कुंजी है.