Aftab Iqbal created history in NEET 2025: Topped in the first attempt
अर्सला खान/नई दिल्ली
NEET-UG 2025 के नतीजों ने कई प्रतिभाओं को देशभर में पहचान दिलाई, लेकिन जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले से आने वाले आफताब इक़बाल की सफलता की कहानी सबसे अलग और प्रेरणादायक है. आफताब ने अपने पहले ही प्रयास में 622 अंक हासिल किए, और ऑल इंडिया रैंक (AIR) 423 लाकर जम्मू-कश्मीर में टॉप किया. उन्होंने 99.98 पर्सेंटाइल के साथ यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की.
दो साल की कठिन मेहनत और आत्म-विश्वास
आफताब इक़बाल ने यह सफर दो साल की गहरी और समर्पित मेहनत के बाद तय किया. उनका मानना है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता और निरंतरता (Consistency) ही असली कुंजी है. उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने कभी कोचिंग इंस्टीट्यूट्स या महंगे संसाधनों पर निर्भर नहीं किया, बल्कि NCERT की किताबों को पूरी गहराई से पढ़ा और समझा, वहीं नियमित रूप से मॉक टेस्ट देकर अपनी तैयारी को जांचते रहे.
जब वह नौवीं और दसवीं कक्षा में थे, तभी उन्हें बायोलॉजी, खासकर जेनेटिक्स (Genetics) विषय में रुचि हो गई थी. तभी उन्होंने ठान लिया था कि वे डॉक्टर बनेंगे और उसी दिशा में कदम बढ़ा दिए.
सफलता का मंत्र – सादगी, अनुशासन और फोकस
आफताब का मानना है कि यदि कोई छात्र सही तरीके से NCERT पर ध्यान दे, नियमित अभ्यास करे और खुद पर विश्वास बनाए रखे, तो कोई भी परीक्षा कठिन नहीं होती. उन्होंने कहा कि'कंसिस्टेंसी ही सफलता की कुंजी है. मॉक टेस्ट आत्मविश्वास बढ़ाते हैं और NCERT के कॉन्सेप्ट तैयारी में बहुत जरूरी होते हैं.'
उन्होंने इस सफलता का श्रेय अपने शिक्षकों को भी दिया, जिन्होंने हर चरण पर उनका मार्गदर्शन किया. उन्होंने कहा कि अगर टीचर्स का सहयोग और सही मार्गदर्शन न होता, तो यह उपलब्धि मुमकिन नहीं होती.
आफताब ने गवर्नमेंट हाई स्कूल, खड़ी (रंबन) से अपनी स्कूली पढ़ाई की है, जहां अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बड़े शहरों और महंगे कोचिंग संस्थानों की बात होती है, आफताब की सफलता इस सोच को बदलती है. उनके पिता ने बताया कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने उनके बेटे को एक उत्कृष्ट शैक्षिक माहौल दिया, जिससे उसकी नींव मजबूत हुई. उन्होंने कहा कि “बेटे को कभी दबाव में नहीं डाला, बस उसका साथ दिया. हर मां-बाप को अपने बच्चों के सपनों में उनका साथ देना चाहिए.
माता-पिता का समर्थन – सफलता की रीढ़
जब NEET 2025 का परिणाम आया, तो आफताब को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्हें उम्मीद थी कि उनके करीब 618 अंक आएंगे, लेकिन जब उन्होंने 622 अंक और टॉप-500 में ऑल इंडिया रैंक देखी, तो सबसे पहले अल्लाह का शुक्रिया अदा किया. जम्मू-कश्मीर टॉपर बनना उनके लिए सपना जैसा था, जो पहले प्रयास में ही साकार हो गया.
आफताब की सफलता के पीछे उनके माता-पिता का भरपूर सहयोग रहा. उनके पिता ने बताया कि उन्होंने कभी आफताब को डॉक्टर बनने के लिए मजबूर नहीं किया, बल्कि उसका सपना अपनाया और हर कदम पर उसका साथ दिया. मां-बाप के समर्थन, शिक्षक के मार्गदर्शन और खुद की मेहनत ने मिलकर आफताब को आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया.
आज जब प्रतियोगिता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, तो आफताब इक़बाल जैसे छात्र उन लाखों विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा हैं, जो सीमित संसाधनों, ग्रामीण पृष्ठभूमि या आर्थिक चुनौतियों के बावजूद बड़े सपने देखते हैं. उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि अगर लक्ष्य स्पष्ट हो और मेहनत में कोई कमी न हो, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं.
आफताब इक़बाल की कहानी केवल एक छात्र की सफलता नहीं है, यह उन हजारों छात्रों के लिए रोशनी की किरण है जो बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. उनका संघर्ष, समर्पण, अनुशासन और आत्मविश्वास यह दर्शाता है कि बिना किसी शॉर्टकट के भी सफलता हासिल की जा सकती है. रामबन जैसे छोटे जिले से निकलकर पूरे जम्मू-कश्मीर में टॉप करना सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि प्रदेश के युवाओं के लिए आशा और प्रेरणा की कहानी है.