इमाम अब्दुल-रहमान अल-सुदैस कौन हैं, जो रखेंगे धन्नीपुर मस्जिद की नींव

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 17-12-2023
Abdul-Rahman Al-Sudais
Abdul-Rahman Al-Sudais

 

राकेश चौरासिया

इधर राम मंदिर बनकर राज्याभिषेक के लिए तैयार हो रहा है और उधर धन्नीपुर मस्जिद की तामीरात की तैयारियां शुरू हो गई हैं. देश ही नहीं, दुनिया की इस विशाल एवं भव्य मस्जिद की नींव मक्का के इमाम-ए-हरम जनबा अब्दुल-रहमान अल-सुदैस रखेंगे. यह महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक घटना होगी, जिसमें मक्का के इतने बड़े आलिम और इमाम इस घटनाक्रम का गवाह बनेंगे.

2019 में श्री राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सरकार को मुस्लिम पक्ष का मस्जिद के लिए जमीन देने का निर्देश दिया गया था. इसलिए अयोध्या से लगभग 25 किमी दूर धन्नीपुर में इस आलीशान मस्जिद का निर्माण किया जाएगा. पिछले मुंबई में भारत की मस्जिदों के संगठन ऑल इंडिया राब्ता-ए-मस्जिद के मौलवियों की एक बैठक में निर्णय लिया गया था कि इस मस्जिद का नाम पैगंबर मुहम्मद के नाम पर रखा जाएगा, जो ‘मोहम्मद बिन अब्दुल्ला मस्जिद’ होगा. मस्जिद के लिए सरकार द्वारा धन्नीपुर गांव में भूमि आवंटित की गई है और इसके निर्माण के लिए इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट का गठन किया गया है. यह ट्रस्ट प्राचीन इस्लामी वास्तुकला के आधार पर बने डिजायन के अनुरूप मस्जिद का निर्माण करवाएगा, जिसका नेतृत्व पुणे के वास्तुकार इमरान शेख करेंगे. इस मस्जिद में 21 फीट ऊंची और 36 फीट चौड़ी दुनिया की सबसे बड़ी कुरान भी स्थापित की जाएगी. मस्जिद में उपासनालय के अतिरिक्त एक सार्वजनिक अस्पताल, रसोईघर और पुस्तकालय भी बनाया जाएगा. इसके निर्माण पर लगभग 300 करोड़ रुपए की लागत आएगी. मस्जिद के लिए धन संग्रह का अभियान पहले ही शुरू हो चुका है.

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भारत के खाड़ी देशों से सदियों पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, वाणिज्यिक और रणनीतिक संबंध हैं. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्वकाल में भारत को और खाड़ी देशों के बीच संबंधों ने नई ऊंचाईयों को छुआ है. इसकी रोषनी में जहां खाड़ी देशों से भारत के व्यापारिक संबंधों में इजाफा हुआ, वहां आपसी प्रेम और विश्वास के प्रतीक के तौर पर यूएई में एक विशाल हिंदू मंदिर का भी निर्माण किया जा रहा है.

सऊदी अरब भी भारत का बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. दुनिया में उदारवादी इस्लाम का प्रमुख चेहरा तथा सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री एवं आलिम डॉक्टर मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा ने भी पिछले दिनों भारत का दौरा किया था. वे एनएसए अजीत डोभाल का विशिष्ट स्नेह निमंत्रण स्वीकार करके भारत में एक सप्ताह के दौरे पर आए थे. डॉ. अल-इस्सा नई दिल्ली स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर के बीएस अब्दुर रहमान ऑडिटोरियम में आयोजित ‘पीस कान्फ्रेंस’ को संबोधित किया था. उन्होंने कहा था कि भारतीय ज्ञान ने मानवता के लिए बहुत कुछ किया है. भारत पूरे विश्व के लिए सह-अस्तित्व का एक महान मॉडल है. भारत अपनी विविधता के साथ, ‘सह-अस्तित्व के लिए एक महान मॉडल’ है. उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की. विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में प्रतिष्ठित धर्म गुरुओं से संवाद किया. उन्होंने अक्षरधाम मंदिर का दौरा किया और दिल्ली की जामा मस्जिद में जुम्मे की नमाज में खुतबा दिया.

हिंदुस्तान और सऊदी अरब के रिश्तों की आपसी समझ और विश्वास को उस समय नया आयाम मिलेगा, जब धन्नीपुर मस्जिद की नींव मक्का के इमाम अब्दुल-रहमान अल-सुदैस के हाथों रखी जाएगी. अब्दुल-रहमान अल-सुदैस के इस प्रस्तावित कार्यक्रम के फलीभूत होने से न केवल विश्व में भारत के सहिष्णु संस्कृति और बहुलतावाद के फलक का विस्तार होगा, बल्कि भारत-सऊदी के द्विपक्षीय रिश्तों में गरमाइश का जमजम बहेगा.

कौन हैं अब्दुल-रहमान अल-सुदैस ?

अब्दुल रहमान इब्न अब्दुल अजीज अल-सुदैस को संक्षिप्त में अब्दुल-रहमान अल-सुदैस के नाम से जाना जाता है. प्रसिद्ध कारी (कुरान का वाचक) अब्दुल रहमान अल-सुदैस सऊदी अरब की दो पवित्र मस्जिदों, मक्का स्थित ग्रैंड मस्जिद और मस्जिद अल-हरम की जनरल प्रेसीडेंसी के अध्यक्ष हैं. उन्होंने 2016 के हज के दौरान अराफात में एकत्रित बड़ी संख्या में जायरीनों को खुतबा दिया था. 

अल-सुदैस ‘विस्फोट और आतंकवाद’ की बुराई के विरोधी के तौर पर जाने जाते हैं. वे शांतिपूर्ण अंतर-धार्मिक संवाद पर जोर देते रहे हैं. हालांकि उन्होंने इजरायली निवासियों और इजरायल राज्य द्वारा फिलिस्तीनियों के साथ किए जा रहे व्यवहार की निंदा की है.

अल-सुदैस का जन्म 1961 में कासिम शहर में हुआ था और वह अनजाह कबीले से ताल्लुक रखते हैं. उनकी परवरिश रियाद में हुई है. अब्दुल रहमान अल-सुदैस ने अल मुथाना बिन हरिथ एलीमेंट्री स्कूल और रियाद साइंटिफिक इंस्टीट्यूशन में अध्ययन किया है, जहां से उन्होंने 1979 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने 1983 में रियाद विश्वविद्यालय से शरिया में डिग्री प्राप्त की, 1987 में इमाम मुहम्मद बिन सऊद इस्लामिक विश्वविद्यालय के शरिया कॉलेज से इस्लामी बुनियादी सिद्धांतों में मास्टर डिग्री की और पीएचडी की. रियाद विश्वविद्यालय में बतौर सहायक प्रोफेसर काम करते हुए उन्होंने 1995 में उम्म अल-कुरा विश्वविद्यालय से इस्लामिक शरिया में स्नातक किया.

सुदैस ने 1984 में महज 24 साल की उम्र में अपनी इमामत संभाली और जुलाई 1984 में मस्जिद अल-हरम में अपना पहला उपदेश दिया, इसके अलावा शेख सऊद अल-शुराईम - 1994 से 2006 तक और फिर 2014, 2019 और 2020 में तरावीह नमाज में साथी रहे. उन्हें ‘ट्विन्स ऑफ द हरम’ शीर्षक दिया गया. 2005-2020 में, शेख अब्दुल्ला अवद अल जुहानी और मस्जिद अल-हरम के अन्य इमाम जैसे शेख यासिर अल-दोसारी और शेख बंदर बलीला ने खतम अल कुरान  के पहले रकअत के इमाम के रूप में अल-शुरैम का पद संभाला.

2005 में, अल-सुदैस को कुरान और इस्लाम के प्रति उनकी भक्ति की मान्यता में दुबई इंटरनेशनल होली कुरान अवार्ड (डीआईएचक्यूए) आयोजन समिति द्वारा अपने 9वें वार्षिक ‘इस्लामिक पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर’ के रूप में नामित किया गया था. दुबई में अपना पुरस्कार स्वीकार करते समय उन्होंने कहा था, ‘‘इस्लाम और मुसलमानों का संदेश विनम्रता, निष्पक्षता, सुरक्षा, स्थिरता, सहानुभूति, सद्भाव और दयालुता है.’’

2010 से 2012 तक उन्होंने भारत, पाकिस्तान, मलेशिया और ब्रिटेन का दौरा किया. उनकी गतिविधियों में 2011 में मलेशिया में हायर इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड इस्लामिक स्टडीज में एक सेमिनार की मेजबानी करना शामिल है, जहां उन्होंने आधुनिक चुनौतियों की पृष्ठभूमि में इस्लामी सभ्यता के बारे में बात की थी.

8 मई 2012 को शाही आदेश द्वारा उन्हें ‘मंत्री स्तर का दो पवित्र मस्जिदों के लिए प्रेसीडेंसी’ का प्रमुख नियुक्त किया गया था. वह मक्का में अरबी भाषा अकादमी के सदस्य भी हैं.

2017 में, अल-सुदैस ने फिल्म वन डे इन द हरम का पर्यवेक्षण किया, जो मक्का में हरम के बारे में एक फिल्म थी, जो श्रमिकों की आंखों के माध्यम से बताई गई थी.

अल-सुदैस अपनी उदारवादी विचारधारा के कारण कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं. 2003 में, अल-सुदैस ने कहा कि उनका मानना है कि युवाओं को इस्लामी कानून सिखाया जाना चाहिए, जिसमें खुद को मारने पर प्रतिबंध और इस्लामी देशों में रहने वाले गैर-मुसलमानों पर हमला करने पर प्रतिबंध शामिल है. सुदैस ने यह भी कहा है कि इस्लामी युवाओं को ‘अंधाधुंध नास्तिकता का लेबल नहीं उछालना चाहिए और वैध जिहाद और...शांतिपूर्ण लोगों को आतंकित करने के बीच भ्रमित नहीं होना चाहिए.’

सुदैस ने कहा है कि इस्लाम में अतिवाद और सांप्रदायिकता के लिए कोई जगह नहीं है और इस्लाम उदारवादी रास्ता सिखाता है. उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन, सोमालिया, इराक,यमन और अफगानिस्तान में मुसलमानों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनका समाधान इस्लाम की शिक्षाओं का अक्षरशः पालन करने में निहित है. उन्होंने इन विवादों को सुलझाने से प्राप्त होने वाले सामाजिक और आर्थिक लाभों को ध्यान में रखते हुए बातचीत और वार्ता के माध्यम से संघर्षों के समाधान का आह्वान किया.

सुदैस ने 2007 में इस्लामाबाद, पाकिस्तान में लाल मस्जिद संकट के दौरान लाल मस्जिद प्रशासन की भी आलोचना की. उन्होंने उग्रवादियों और सरकार से बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान पर सहमत होने का आग्रह किया और दोनों पक्षों से शांति की रक्षा करने का आग्रह किया.

सुदैस को उनके उपदेशों के लिए भी जाना जाता है, जिसमें विश्वासियों से युद्धग्रस्त क्षेत्रों में अन्य मुसलमानों की मदद करने का आह्वान किया गया है. उन्होंने इजरायली निवासियों और इजरायल राज्य द्वारा फिलिस्तीनियों के उत्पीड़न के खिलाफ सक्रिय रूप से बात की है और फिलिस्तीनियों को चिकित्सा आपूर्ति और भोजन भेजने की अपील की है.

जून 2004 में, सुदैस ने लंदन में अंतर-धार्मिक शांति और सद्भाव के लिए प्रार्थना में 10,000 लोगों का नेतृत्व किया. नस्लीय समानता मंत्री फियोना मैक्टागार्ट ने पूर्वी लंदन मस्जिद में सुडाइस के उपदेश में भाग लिया. प्रिंस चार्ल्स, जो वाशिंगटन में थे, ने एक पूर्व-रिकॉर्डेड संदेश द्वारा भाग लिया. ब्रिटेन के प्रमुख रब्बी, जोनाथन सैक्स ने समर्थन का संदेश भेजा.

 

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