नाज़िया ख़ानः एक डॉक्टर जिसकी कलम में है नश्तर जैसी तेजी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 15-12-2023
लेखिका नाज़िया खान
लेखिका नाज़िया खान

 

मंजीत ठाकुर

“नहीं ब्रो, बस कविता न लिख पाने की 'अक्षमता' तुम्हें अल्फा मेल नहीं बना देती.

वैसे भी कविता, नज़्म, शायरी लिखना सबके वश का है भी नहीं. नफ़ीस, ज़हीन, सॉफिस्टिकेटेड माइंड्स का काम है. इमोशंस सब में होते हैं. पर इनको कंट्रोल में कर पाने की क्षमता ही इवोल्यूशन की वह स्टेज थी, जहाँ इंसान बाक़ी जानवरों से अलग होना शुरु हुआ था. अपनी भावनाओं पर क़ाबू पाना और उन्हें शब्दों में ढालकर अभिव्यक्त कर पाना बौद्धिकता की निशानी है.”

फेसबुक पर कोई 32 हजार फॉलोअर वाली लेखिका नाज़िया खान जब एक पोस्ट लिखती हैं तो वह मौजूदा पीढ़ी को एक संदेश दे रही होती हैं. वह भी तब, जब फिल्म एनिमल के बहाने अल्फा मेल और ऐसे ही कथित मर्दानगी के तत्वों पर चर्चा आम हो.

नाजिया खान आज के महिला रचनाकारों में ऐसा नाम हैं जो गल्प (फिक्शन) के साथ कथेतर (नॉन-फिक्शन) भी कमाल का लिख रही हैं. नाजिया ने अपनी बहुत-सी किताबें जीवनोपयोगी लिखी हैं.

वह कहती हैं, “पढ़ना मेरी हॉबी नहीं, पैशन रहा बचपन से. लिखती भी बचपन से आ रही थी, बाल-पत्रिकाओं और अख़बारों में प्रकाशित भी होती आई थी.”

लेकिन जब बात तालीम की आई तो लिखना कुछ वक्त के लिए हाशिए पर गया. खासतौर पर मेडिकल की पढ़ाई के बीच वक्त निकालना मुश्किल हुआ करता था. 2013 में नाजिया ने शासकीय मेडिकल ऑफिसर की अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया क्योंकि नवजात बेटे और दो साल की बेटी के साथ नौकरी परेशानी का सबब बन रही थी.

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लेकिन इस परेशानी से उन्हें लेखन का विषय मिला. नाजिया कहती हैं, “मैंने पाया कि मुझ जैसी कितनी ही महिलाएं हैं, नई माँ, जो न्यूक्लियर फैमिली में रहती हैं, जिनको गर्भावस्था और पैरेंटिंग में बहुत सारी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है और इनसे सम्बंधित किताबें ज़्यादातर विदेशी लेखकों की हैं. तब लगा इन दोनों विषयों पर किताबें लिखना चाहिए. बतौर फ़िज़िशियन हम उन्हीं लोगों को परामर्श दे पाते हैं, जो हमारे पास आते हैं. अगर किताब लिख दी तो एक ही समय में कितने ही लोगों तक पहुँच पाएगी बात.”

इसके बाद नाजिया ने 'गर्भावस्था और शिशु देखभाल' और 'परवरिश-सीखने सिखाने की रोमांचक यात्रा'दो किताबें लिख डालीं. लिखने के बाद उन्होंने गंभीरता से साहित्य पढ़ना शुरू किया और खासतौर पर विश्व साहित्य को समझा.

वह कहती हैं, “महिलाएँ विशेषकर, अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता में सबसे निचली पायदान पर रखती हैं. हमारी कंडीशनिंग ही ऐसी है कि अपना ख़याल रखना, अपने लिये समय निकालना, अपने ऊपर ख़र्च करना, मी-टाइम, मी-स्पेस, हमें स्वार्थी होना लगता है. लगता है, जैसे कुछ ग़लत कर रहे या समय नष्ट कर रहे. दिन-रात सबके लिये खटते रहने को हम परिवार के प्रति प्रेम, त्याग और समर्पण समझते हैं, जब तक बिस्तर से लगने की नौबत न आ जाए, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य चौपट न हो जाए, रूटीन बिगड़ न जाए, न हम ध्यान देते हैं ख़ुद पर, न कोई और.”

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नाजिया जोर देती है, “पेरेंटिंग ऐसा विषय है, जिसे सीखने की ज़रूरत है, ऐसा हम मानते ही नहीं. शादी हुई है तो बच्चे होंगे ही. हुए हैं तो बड़े हो ही जाएंगे, हमारे पेरेंट्स ने कौनसा कोर्स किया था या किताब पढ़ी थी, यही सोच है लोगों की. इसलिये इन विषयों पर लिखना मुझे ज़रूरी लगता है.”

नाजिया अब खुद का प्रैक्टिस करती हैं. लिखने का रोजाना का नियम है इससे उनका लेखन चलता रहता है.

नाजिया कसकर पढ़ती हैं पर पसंदीदा लेखक या शायर के बारे में कहती हैं, “किसी एक दो या दस का भी नाम नहीं दे पाऊँगी. सबकी अपनी विशेषताएं हैं और किसी भी भाषा या शैली का हो, साहित्य हमेशा हमें समृद्ध ही करता है. मुझे तो फिक्शन से भी गुरेज़ नहीं है और लोकप्रिय साहित्य को लुगदी या पल्प फिक्शन भी नहीं मानती.”

नाजिया अपना एक प्रकाशन संस्थान भी चलाती हैं. नाम भी दिलचस्प है मेंड्रेक पब्लिकेशंस. इस साल नाजिया ने अपने संस्थान से इस साल महान शायरों के काम को प्रकाशित किया है. जिनमें मिर्ज़ा ग़ालिब, मीर तकी मीर, इब्राहिम ज़ौक़, बहादुर शाह ज़फ़र, दाग़ देहलवी, हसरत मोहानी, जिगर मुरादाबादी जैसे दस शायरों की ग़ज़ल सीरीज़ है.

नाजिया ने साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद भी काफी किया है. वह कहती हैं, “अनुवादकों को उनकी मेहनत के लिये वह सम्मान नहीं मिलता, जिसके हक़दार हैं. मुखपृष्ठ पर भी नाम देने का रिवाज नहीं था पहले तो.”

वह कहती हैं कि अनुवाद को किसी साहित्य की दोबारा रचना कहनाअतिशयोक्ति है. लेकिन यह बात भी बिल्कुल सही है कि एक औसत या बुरा अनुवाद, मूल कृति की आत्मा को मार सकता है, सार नष्ट कर सकता है, कभी तो अर्थ का अनर्थ भी कर सकता है.

जिसे पढ़ते समय महसूस ही न हो कि मूल नहीं अनुवाद पढ़ रहे हैं, हर शब्द जस का तस रखकर बस शब्दों का निर्जीव ढेर न लगा दिया गया हो, न ही क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर मूल से हट ही गए हों, ऑथेंटिसिटी बरक़रार हो,  भाषा सुगम्य, सुबोध, सुग्राही और सुप्रवाही हो, वही अनुवाद सार्थक है. कभी-कभी मूल कृति से बेहतर अनुवाद हो जाता है.

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आज कल के अनुवाद के स्तर को लेकर नाजिया कहती हैं, “गूगल ट्रांसलेट और एआइ टूल्स की मदद से बने अनुवादकों ने तबाही ला ही रखी है.”वह चेताती हैं, “जिन भाषाओं का आपको ज्ञान नहीं, उनकी कृतियों का अनुवाद नहीं करना चाहिये. कई बार स्थानीय भाषा और बोली में शाब्दिक अर्थ से हटकर कोई मतलब होता है, जिससे वाक्य का मतलब ही बदल जाता है. ख़ासकर कहावतें और मुहावरे. अगर आप लोकल डायलेक्ट, संस्कृति, परम्पराओं से परिचित नहीं हैं तो अर्थ का अनर्थ कर देंगे.”

नाजिया तीन साल तक स्वर्णवाणी मासिक हिन्दी साहित्यिक पत्रिका की सम्पादक रही. स्वर्णवाणी एकमात्र ऐसी पत्रिका थी, जो तीन हज़ार पाठकों तक प्रतिमाह निःशुल्क पहुंचती थी. डाक खर्च भी नहीं लिया जाता था. लेकिन कोविड के दौर में यह पत्रिका बन्द हुई. वह बताती हैं कि तभी अपना पब्लिकेशन हाउस शुरू करने का विचार आया था.

नाजिया के शौहर डॉ. अबरार मुल्तानी वर्षों से लेखन में सक्रिय हैं, चौदह किताबें विभिन्न प्रकाशन समूहों से आ चुकी हैं. 2020 में मेंड्रेक प्रकाशन अस्तित्व में आया और तीन साल के भीतर स्थापित लेखकों, नए लेखकों से लेकर विश्व के कल्ट क्लासिक लिट्रेचर को मिलाकर अब तक 103 टाइटल्स इस प्रकाशन से प्रकाशित हो चुके हैं.

इन दिनों 'कई चाँद थे सर-ए-आसमान और 'द म्युजियम ऑफ इन्नोसेंस'पढ़ रहीं नाजिया का एक कहानी संग्रह 'मी अमोर' आ चुका है और दो संग्रहो का काम लगभग पूरा हो चुका है.

चिकित्सा और लेखन के साथ-साथ नाजिया समाजसेवा में भी सक्रिय हैं और स्माइलिंग हार्ट्स नाम के स्वयंसेवी संगठन की सचिव हैं. वह बताती हैं, “हमलोग शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सेवाएं देते हैं.

अभी कहीं से अनुदान आदि नहीं प्राप्त होता है. निःशुल्क परामर्श, कोविड के समय खाद्य सामग्री एवं दवाई वितरण, ज़रुरतमन्दों की पढ़ाई और इलाज में मदद, सर्दियों में गर्म कपड़ों का वितरण, चिकित्सा कैम्प आदि अपने से ही जितना हो सकता है, करते हैं.”

चिकित्सा, साहित्य और स्माइलिंग हार्ट्स के जरिए नाजिया खान दिल जीतने के लिए काफी हैं. और फेसबुक पर उनके चुटीले और तंजिया लहजे वाली पोस्ट देखेंगे तो आपके चेहरे पर भी मुस्कान आ ही जाएगी.