भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947-48 के नायक और ‘नौशेरा के रक्षक’ के रूप में प्रसिद्ध वीर सपूत ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, एमवीसी की पुण्यतिथि के अवसर पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) के कब्रिस्तान में एक भावुक और गरिमामयी समारोह का आयोजन किया गया. इस अवसर पर भारतीय सेना के प्रतिष्ठित पैराशूट रेजीमेंट के अधिकारी, विश्वविद्यालय प्रशासन, पूर्व सैन्य अधिकारी और छात्रों ने एकजुट होकर अपने इस गैलेंट हीरो को श्रद्धा के फूल अर्पित किए.
समारोह का आयोजन विशेष रूप से 50वीं पैरा ब्रिगेड और 10वीं डोगरा रेजिमेंट द्वारा किया गया था, जिसमें वीरता और देशभक्ति की मिसाल बने ब्रिगेडियर उस्मान को नमन किया गया.
जेएमआई के कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ और रजिस्ट्रार प्रोफेसर मोहम्मद महताब आलम रिज़वी ने ब्रिगेडियर उस्मान की समाधि पर पुष्प अर्पित किए और उनके बलिदान को याद करते हुए कहा कि ऐसे सैनिक भारत की आत्मा हैं, जिनकी निस्वार्थ सेवा और वीरता की गाथाएं आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करेंगी.
इस मौके पर विश्वविद्यालय की ओर से प्रोफेसर इक्तिदार मोहम्मद खान और अन्य वरिष्ठ शिक्षकगण एवं अधिकारीगण भी मौजूद थे. समारोह में सेना के कुल 25 वरिष्ठ अधिकारी एवं भूतपूर्व सैनिक शामिल हुए, जिन्होंने ब्रिगेडियर उस्मान की देशसेवा को नम आंखों से याद किया.
समारोह में लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेंद्र सिंह, पीवीएसएम, एवीएसएम, वीएसएम, पैराशूट रेजीमेंट के कर्नल के रूप में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे.
इसके अलावा समारोह में सम्मिलित होने वाले अन्य सम्माननीय अधिकारियों में लेफ्टिनेंट जनरल गुरबीर पाल सिंह (डीजी एनसीसी), लेफ्टिनेंट जनरल निर्भय शर्मा (सेवानिवृत्त, पूर्व राज्यपाल), मेजर जनरल जयचंद्रन, मेजर जनरल आहूजा, ब्रिगेडियर डबास (डिप्टी ब्रिगेड कमांडर), ब्रिगेडियर सिन्हा (सेवानिवृत्त), कर्नल गोपाल सिंह, वीएसएम (वेटरन), कर्नल विवेक पंडित (सेवानिवृत्त) और कर्नल यश श्रीवास्तव (सेवानिवृत्त) सहित कई प्रमुख नाम शामिल थे.
ब्रिगेडियर उस्मान की शहादत की स्मृति में आयोजित यह श्रद्धांजलि समारोह न केवल एक सैन्य नायक को सम्मान देने का क्षण था, बल्कि यह अवसर उस राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता की भावना को भी दोहराने का था, जिसे ब्रिगेडियर उस्मान ने अपनी जान देकर जीवित रखा.
उल्लेखनीय है कि ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भारत के उन चुनिंदा मुस्लिम अधिकारियों में से एक थे, जिन्होंने 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया था और भारतीय सेना में रहते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. वे भारत के पहले उच्चतम सैन्य सम्मान यानी महा वीर चक्र (MVC) से सम्मानित होने वाले प्रथम उच्च पदस्थ मुस्लिम सैन्य अधिकारी थे.
उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने नौशेरा की रक्षा करते हुए पाकिस्तानी कबायली हमलावरों को मुंहतोड़ जवाब दिया था और झंगर पर फिर से कब्ज़ा कर लिया था. यह वही समय था जब भारतीय सेना के पास संसाधनों की कमी थी और दुश्मन की ताकत कहीं अधिक थी.
बावजूद इसके ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने अदम्य साहस से मोर्चे पर न केवल सैनिकों का मनोबल ऊँचा रखा, बल्कि इतिहास के पन्नों में अपना नाम ‘नौशेरा के रक्षक’ के रूप में अमर कर लिया.
3 जुलाई 1948 को नौशेरा में युद्ध के दौरान दुश्मन के गोले के निकट गिरने से वह शहीद हो गए. उनके इस सर्वोच्च बलिदान ने भारतीय सेना के आदर्शों को एक नई ऊंचाई दी और उन्हें स्वतंत्र भारत के पहले उच्चतम रैंकिंग सैन्य शहीद के रूप में भी जाना जाता है.
आज, जब देश विविध चुनौतियों का सामना कर रहा है, ब्रिगेडियर उस्मान जैसे आदर्श और उनके जीवन मूल्य भारत की युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बन सकते हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया द्वारा आयोजित यह श्रद्धांजलि न केवल उनकी स्मृति को जीवंत रखने का प्रयास है, बल्कि यह भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और राष्ट्रभक्ति की परंपरा को भी सशक्त करता है.
ब्रिगेडियर उस्मान की शहादत आज भी हमें यह सिखाती है कि मजहब से ऊपर उठकर देश की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है.