ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 17 से 24 दिसंबर तक आयोजित किया गया है. जिसमें इस वर्ष पुरुषोत्तमपुरा बाग में निशार अहमद की टीम हरियाणवी संस्कृति को प्रदर्शीत कर रही है जो 1987 से तीन पीढि़यों से हरियाणवी संस्कृति को संजोने का कार्य कर रहे हैं. वहीँ इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में काफी मुस्लिम शिल्पकारों ने भी शिरकत की है जो राष्ट्रीय अवार्ड से भी सम्मानित हैं और पुश्तों से शिल्पकला को संजोए हुए हैं.
International Gita Mahotsav 2023
खराब लकड़ी से पोट बनाकर कारविंग की शिल्पकला करने पर मोहम्मद इमरान को राष्ट्रीय सम्मान मिला है. अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर सहारनपुर यूपी से आए मोहम्मद इमरान ने महोत्सव में दक्षिण दिशा की तरफ स्टॉल नंबर 471 पर अपनी शिल्पकला को रखा है.
वे अपने साथ लकड़ी का बना साज्जो-सजावट का सामान लेकर आए है. वे यह सारा सामान नीम, शीशम व टीक की लकड़ी से बनाते है तथा इसको बनाने में कम से कम 2 से 4 दिन का समय लगता है तथा इस कार्य के लिए उनके पास 50 कारीगर कार्य करते है जो कि अपनी हस्त शिल्पकला का प्रदर्शन अन्य राज्यों में भी करते है.
वे इस अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में हर वर्ष आते है तथा इस बार वे अपने साथ झूला, कॉफी सेट, टी सेट, रॉकिंग चेयर, रेस्ट चेयर, फ्लावर पोर्ट, कार्नर व स्टूल लेकर आए है. उन्होंने इनकी कीमत 1 हजार से 20 हजार तक रखी है.
Mohammad Imran carving pots from waste wood
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव पर इस अदभुत शिल्पकला ने एक अनोखी छाप छोड़ी है, महोत्सव में दूर दराज से आए शिल्पकारों की अनोखी शिल्पकला से ब्रह्मसरोवर का पावन तट सज चुका है. वर्ष 2022 के अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में पर्यटकों ने लाखों रुपए का समान खरीदा था.
इस बार भी अच्छा रुझान देखने को मिल रहा है. शिल्पकारों की हस्त की शिल्पकला को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ से यह उत्साह देखने को मिल रहा है तथा इन शिल्पकारों की शिल्पकला से बनी अनोखी वस्तुओं को पर्यटक जमकर खरीददारी कर रहे है. उनके इस कार्य में आसिफ भी अपना योगदान दे रहे है.
जम्मू कश्मीर के शिल्पकार निसार अहमद खान को उच्च गुणवत्ता की पसमीना कानी शाल को बनाने में 6 साल का समय लग जाता है. इस कानी शाल की कीमत लगभग 5 लाख रुपए के आस-पास तय की जाती है.
इस कानी शाल को वैरायटी के हिसाब से 5 या 6 माह में भी तैयार किया जा सकता है. इस कानी शाल को बनाने पर शिल्पकार निसार अहमद खान को इंडिया इंटरनेशनल फ्रेंडशिप सोसायटी की तरफ से वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के राष्ट्रीय गौरव अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.
मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत इस शिल्पकला से जुड़े शिल्पकार निसार का 36 साल का अनुभव हो चुका है. इस 36 साल में निसार को वर्ष 2015 में राष्ट्रीय गौरव, वर्ष 2012 में राष्ट्रीय अवार्ड प्रमाण पत्र, फ्रांस से जनवरी 2023 मेंं अंतर्राष्ट्रीय शिल्पकार प्रशंसा पत्र, हस्तकार अवार्ड सहित अनेकों शिल्पकला के क्षेत्र में अवार्ड हासिल कर चुके है. इस शिल्पकला को लेकर जम्मू सरकार की तरफ से उनका नाम पद्मश्री के लिए भी भेजा गया है.

Craftsman Nisar Ahmed Khan
शिल्पकार निसार अहमद खान के दादा, परदादा और वर्तमान में पूरा परिवार इस शिल्पकला में लगा हुआ है. इस कानी शिल्पकला के लिए उनके भाई शोहकत अहमद खान को वर्ष 2006 और उनके दूसरे भाई मुस्ताक अहमद खान को भी वर्ष 2012 में राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में शिल्पकार निसार अहमद खान को एनजैडसीसी की तरफ से स्टाल नम्बर 3 अलॉट किया है. इस स्टॉल पर शिल्पकार निजार अहमद खान ने कानी शाल, लोई, कम्बल, सूट, फैरन आदि उत्पादों को कुरुक्षेत्र और आस-पास के पर्यटकों के लिए रखा है.
इस महोत्सव में सालों से पर्यटकों की कानी शाल की पेशकस को पूरा करने का प्रयास कर रहे है. यहां महोत्सव में आने के लिए हमेशा उत्साहित रहते है. इस महोत्सव में पसमीना की कानी शाल जिसकी कीमत 1 हजार रुपए से लेकर 15 हजार रुपए तक है, लेकर आए है.
अगर सही मायने में पसमीना की कानी शाली की बात करे तो उच्च गुणवत्ता की पसमीना कानी शाल बनाने में 6 साल का समय लग जाता है. इस कानी शाल को डोगरा, सिख और मुगल काल में भी पसंद किया गया है. उस समय पसमीना का बडा शाल पहना जाता था और राजा महाराजा इस शाल को बडे ही शौंक के साथ पहनते थे.
इस शिल्पकला को बढ़ावा देेने के लिए सरकार की तरफ से भी मदद मिलती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के प्रोग्राम को भी आगे बढ़ाने का काम कर रहे है. उनके साथ कश्मीर में लगभग 250 लोग जुडे हुए है जिसमें 90 साल के बुर्जुग से लेकर 20 साल के नौजवान शामिल है.
फ्रांस और अन्य देशों में आने वाले 10 सालों को जेहन मेंं रखकर कलर कॉम्बिनेशन की कानी शॉल बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है.
Pashmina shawl embroidery (पश्मीना शॉल पर तिल्लियों से कढ़ाई)
इसी कड़ी में शामिल हैं जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से शिल्पकार शहजाद अहमद जिन्हें वर्ष 2011 में राष्ट्रीय अवार्ड भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय की तरफ से दिया गया.
शिल्पकार शहजाद अहमद ने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव-2023 में शिल्प मेले में स्टॉल नंबर 170 पर अपनी शिल्पकला को सजाया है. शिल्पकार शहजाद अहमद के परिवार के सभी सदस्य शॉल की कढ़ाई की शिल्पकला में तल्लीन रहते है. इस शिल्पकला को संजो कर रखने के लिए खासा प्रयास कर रहे है.
इस शिल्पकला को लेकर उन्होंने पश्मीना शॉल पर तिल्लियों से कढ़ाई करके कानी शॉल तैयार किया. इस शॉल को तैयार करने में लगभग 1 साल का समय लगा और वर्ष 2011 में इस शिल्पकला पर उन्हे भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय की तरफ से राष्ट्रीय अवार्ड दिया गया.
इस अवार्ड को लेकर उनके परिवार को खासा उत्साह मिला
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के साथ-साथ दिल्ली प्रगति मैदान, चंडीगढ़ कला मैदान, उदयपुर सहित एनजेडसीसी की तरफ से जहां-जहां उन्हें आमंत्रित किया जाता है, वहां-वहां वे अपनी शिल्पकला के साथ पहुंच जाते है. इस महोत्सव में पर्यटकों के लिए कानी शॉल, कश्मीरी सूट, कश्मीर का फेमस फेरन, दुपट्टे विशेष तौर पर लेकर आए है.
कढ़ाई के द्वारा तैयार की गई पश्मीना कानी शॉल की कीमत 70 हजार रुपए से लेकर 1 लाख 20 हजार रुपए तक की है. इसके अलावा 2500 रुपए तक कश्मीरी सूट की कीमत तय की है. इस महोत्सव में बेटियों के लिए स्टॉल भी लेकर आए है. इस स्टॉल की कीमत 350 रुपए से लेकर 6 हजार रुपए तक की है.
एक हैं कानी शाल बनाने वाले शिल्पकार उमार अमी मलिक जिन्हें वर्ष 2018 में राष्ट्रीय अवार्ड मिला. शिल्पकार उमरी अमी मलिक ने महोत्सव-2023 में स्टॉल नंबर 488 दक्षिण दिशा में कानी शॉल और कश्मीरी सूट को स्टॉल लगाया है. उच्च गुणवत्ता की पश्मीना कानी शाल को बनाने में काफी समय लग जाता है. इस कानी शाल की कीमत लाखों रुपए में होती है.
Artist Umri Ami Malik,pashmina kani shawl maker
इस कानी शाल को वैरायटी के हिसाब से 5 या 6 माह में भी तैयार किया जा सकता है. इस स्टॉल पर शिल्पकार ने कानी शाल, लोई, कम्बल, सूट, फैरन आदि उत्पादों को कुरुक्षेत्र और आस-पास के पर्यटकों के लिए रखा है. यहां महोत्सव में आने के लिए हमेशा उत्साहित रहते है.
पुस्तों से उनका परिवार कानी शाल बनाने का काम कर रहा है. इस महोत्सव में पश्मीना की कानी शाल जिसकी कीमत 1 हजार रुपए से लेकर 15 हजार रुपए तक है, लेकर आए है.
इस कानी शॉल को डोगरा, सिख और मुगल काल में भी पसंद किया गया है. उस समय राजा महाराजा इस शाल को बडे ही शौंक के साथ पहनते थे. इस शिल्पकला को बढ़ावा देेने के लिए सरकार की तरफ से भी मदद मिलती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के प्रोग्राम को भी आगे बढाने का काम कर रहे है.