इंसानियत बनी इबादत: मस्जिद से मिला हिंदुओं को पीने का पानी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-07-2025
Humanity became worship: Hindus got drinking water from the mosque
Humanity became worship: Hindus got drinking water from the mosque

 

सतानंद भट्टाचार्य / हैलाकांडी

असम के दक्षिणी हिस्से, बराक घाटी के हैलाकांडी जिले के एक छोटे से गांव राजेश्वरपुर में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सौहार्द और मानवीय संवेदना का एक दुर्लभ उदाहरण सामने आया है, जिसने पूरे इलाके को उम्मीद और एकता की रोशनी से भर दिया है.

राजेश्वरपुर के हिंदू बहुल इलाकों में पिछले कई महीनों से पीने के पानी की भारी किल्लत बनी हुई है. लोक स्वास्थ्य विभाग की कामरांगरपार जलापूर्ति योजना लंबे समय से बंद पड़ी है और इसके मरम्मत की दिशा में अब तक कोई ठोस सरकारी कदम नहीं उठाया गया है.

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दूसरी ओर, एक अन्य जलापूर्ति केंद्र की भी विफलता ने स्थिति को और भी विकट बना दिया. स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि गांव के लोग कई बार विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन पीएचई विभाग की ओर से कोई सुनवाई नहीं हुई.

ऐसे में, जब पानी जैसी बुनियादी ज़रूरत भी दुर्लभ हो गई थी, नलूबक जामे मस्जिद के दरवाजे उम्मीद बनकर खुले. मस्जिद प्रबंधन समिति ने बिना किसी भेदभाव के अपने वुज़ूखाने और पानी के नलों को पूरे गांव के लिए खोल दिया — न धर्म देखा, न जात; सिर्फ प्यास और इंसानियत देखी.

मस्जिद प्रबंधन समिति के सचिव बिलाल अहमद बरभुइयां ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “यह बेहद दुखद है कि गांव के लोग पानी जैसी जरूरत के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हमने फैसला लिया कि जब तक ज़रूरत होगी, हम हर किसी को पानी देंगे. इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है.” उनका यह बयान ना केवल हौसला देता है, बल्कि सामाजिक सौहार्द का एक सशक्त संदेश भी देता है.

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गांव के वरिष्ठ नागरिकों ने बताया कि मस्जिद से उन्हें शुद्ध पीने का पानी मिल रहा है और इसके लिए वे मस्जिद समिति के आभारी हैं. यह पहल केवल एक राहत नहीं, बल्कि समाज में भरोसे की नींव को मजबूत करने वाला कदम भी है.

स्थानीय निवासी सुमित नाथ, नारायण नाथ, प्रभाकर नाथ, अभिषेक नाथ, धीरेंद्र सिन्हा, पूर्णिमा नाथ और कई अन्य लोगों ने 5 नंबर ब्लॉक की जलापूर्ति योजना को फिर से शुरू करने की पुरजोर मांग की है. वहीं, असम मजदूर संघ के सचिव परवेज खसरू के नेतृत्व में क्षेत्र में लगातार जनआंदोलन जारी है, जो प्रशासन को जगाने की कोशिश कर रहा है.

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यह घटना न केवल असम बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण है कि जब व्यवस्थाएं चूक जाती हैं, तब समाज का संवेदनशील और जागरूक तबका कैसे एक-दूसरे की मदद कर सकता है. यह सिर्फ पानी बांटने की बात नहीं, बल्कि भरोसा, भाईचारा और मानवीय मूल्य बांटने की बात है.