60 सेकंड्स टू फेम' की जूरी में ए.आर. रहमान और शम्स आलम ने बिखेरी बदलाव की रोशनी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 04-07-2025
AR Rahman and Shams Alam spread the light of change in the jury of '60 Seconds to Fame'
AR Rahman and Shams Alam spread the light of change in the jury of '60 Seconds to Fame'

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

भारत के सबसे अनोखे और समावेशी फिल्म महोत्सवों में से एक, एबिलिटीफेस्ट 2025 के अंतर्गत आयोजित '60 सेकंड्स टू फेम' नामक एक मिनट की फिल्म प्रतियोगिता ने इस वर्ष रचनात्मकता, संवेदनशीलता और समावेशिता की दृष्टि से नए मापदंड स्थापित किए. विकलांगता और समावेशिता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर केंद्रित यह अखिल भारतीय प्रतियोगिता, प्रतिभागियों को केवल 60 सेकंड में प्रभावशाली कहानी कहने की चुनौती देती है.
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इस प्रतियोगिता की जूरी बैठक हाल ही में चेन्नई के प्रतिष्ठित मालगुडी – द सवेरा होटल,चेन्नई  में आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता भारत के विश्वप्रसिद्ध संगीतकार ए.आर. रहमान ने की. निर्णायक मंडल में अभिनेत्री सिमरन, गीतकार मदन कार्की, अंतरराष्ट्रीय पैरा-तैराक मोहम्मद शम्स आलम शेख और फिटनेस कोच टिंकेश कौशिक शामिल थे. 
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जूरी ने प्रस्तुत फिल्मों की विषयवस्तु, दृष्टिकोण, तकनीक और प्रभावशीलता के आधार पर मूल्यांकन किया और एक स्वर में माना कि एक मिनट में सामाजिक यथार्थ को दर्शाना कठिन जरूर है, लेकिन कई युवाओं ने इसे बड़े ही प्रभावी ढंग से अंजाम दिया.

इस प्रतियोगिता में खास उपस्थिति दर्ज कराने वाले प्रेरणास्रोत मोहम्मद शम्स आलम शेख की जीवन-यात्रा स्वयं एक फिल्म जैसी है. बिहार के मधुबनी जिले के राठौस गांव में 17 जुलाई 1986 को जन्मे शम्स बचपन से ही खेलों के प्रति उत्साहित थे. तालाब में तैरते हुए उन्हें देखना गांव के लोगों के लिए एक तमाशे जैसा होता था, और तालियों की गूंज उनकी प्रेरणा बनती चली गई.

मुंबई आकर उन्होंने पढ़ाई के साथ खेलों में भी उत्कृष्टता हासिल की. उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और बी.ई तत्पश्चात एमबीए की डिग्री प्राप्त की. कराटे की शितो रयू शैली में ब्लैक बेल्ट प्राप्त करने के साथ उन्होंने 50 से अधिक पदक जीते. हालांकि 2010 में रीढ़ की चोट ने उन्हें व्हीलचेयर तक सीमित कर दिया, लेकिन इससे उनका आत्मबल नहीं टूटा.

राजा राम घाग और सत्यप्रकाश तिवारी जैसे मार्गदर्शकों के साथ उन्होंने पैरा-स्विमिंग में अपनी नई पहचान बनाई. वह न केवल राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक बने, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता भी हैं.

उन्होंने खुली समुद्री तैराकी में विश्व रिकॉर्ड बनाया. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज कराया. उन्होंने एशियाई पैरा गेम्स 2018, जकार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व किया और अब 2026 जापान एशियाई पैरा गेम्स और 2028 लॉस एंजिल्स पैरालंपिक की तैयारी में जुटे हैं.

TEDx के मंच पर वे भारत के अनेक शहरों और संस्थानों में अपनी प्रेरणादायक यात्रा साझा कर चुके हैं.

अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा उन्हें ग्लोबल स्पोर्ट्स मेंटरिंग प्रोग्राम के लिए चयनित किया गया, जो विश्व स्तर पर विकलांगता और खेल कूटनीति में श्रेष्ठ नेतृत्व का उदाहरण है.


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उन्हें बिहार सरकार, नीना फाउंडेशन, विकलांग खेल अकादमी, सत्यभामा यूनिवर्सिटी और कई संस्थानों से सम्मानित किया गया. 'जिगर पुरस्कार', 'युवा आइकॉन अवार्ड', 'मिस्टर व्हीलचेयर इंडिया फर्स्ट रनर-अप', और 'बिहार खेल रत्न' जैसे पुरस्कार उनकी उपलब्धियों का प्रमाण हैं.

आवाज द वाॅयस से इस क्षण को साझा करते हुए शम्स आलम ने कहा, ‘‘'60 सेकंड्स टू फेम' प्रतियोगिता में उनकी निर्णायक उपस्थिति ने न केवल युवा फिल्मकारों को प्रेरणा दी, बल्कि यह संदेश भी दिया कि चुनौतियां चाहे कितनी भी विकट क्यों न हों, आत्मबल, समर्पण और दृष्टिकोण से उन्हें परास्त किया जा सकता है."


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एबिलिटी फाउंडेशन के इस आयोजन ने समावेशी सिनेमा, प्रतिनिधित्व और संवेदनशीलता की दिशा में एक नया अध्याय जोड़ा है. और जब ऐसे आयोजनों में ए.आर. रहमान जैसी हस्तियां और शम्स आलम जैसे प्रेरक नायक जुड़ते हैं, तब यह महज एक फिल्म फेस्टिवल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति बन जाता है.