ससुराल से बेघर अफसाना खातून दे रहीं सैकड़ों महिलाओं को रोजगार

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 09-03-2023
अफसाना खातून दे रहीं सैकड़ों महिलाओं को रोजगार
अफसाना खातून दे रहीं सैकड़ों महिलाओं को रोजगार

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

समाज में बहुत सारी ऐसी महिलाएं भी हैं, जो उच्च शिक्षा और कारोबार के क्षेत्र में कदम रखकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं, लेकिन घर की जिम्मेदारियां महिलाओं के सपने को पूरा नहीं होने देते. मगर फिर भी कुछ हौसलामंद महिलाएं मुश्किलों का सामना करते हुए अपने कदमों पर खड़ी हुईं, उसके बाद समाज ने भी उन्हें कद्र की निगाह से देखना शुरू किया.

ऐसी महिलाएं समाज के लिए मिसाल हैं और हौसला हार जाने वालों के लिए प्रेरणादायक मिसाल हैं. उन्हीं में से एक नाम हैं अफसाना खातून, जो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के विकासखंड चमरौआ के फैजुल्लाह गांव से हैं और इस समय सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दे रही हैं. अफसाना ने कपड़े का कारोबार सिर्फ तीन हजार रुपये में शुरू किया था और अब लाखों का कारोबार कर रही हैं.

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राजधानी दिल्ली से कुछ ही दूरी पर नोएडा हॉट में लगे सरस आजीविका मेले में अफसाना अपने पति मोहम्मद अयूब के साथ स्टॉल लगाए हुए हैं. अफसाना ने आवाज-द वॉयस को बताया कि जब उनकी शादी 23 साल पहले मोहम्मद अयूब के साथ हुई थी,

उसी वक्त वो अपने पैरों पर खड़ा चाहती थीं, जब मैंने कोशिश की, तो ससुराल वालों को यह मंजूर नहीं हुआ. उस समय मेरे पति ने भी हमारा साथ छोड़ दिया और छह महीने के बाद उन्हें घर से निकाल दिया गया. लेकिन मैं जिद पर थी, क्योंकि मेरे सामने घर की माली परेशानियां थी, जिसे मैं खत्म करना चाह रही थी. मगर ससुराल वालों को ये मंजूर नहीं था. कुछ माह बीतने के बाद मेरी जिद के सामने ससुराल वालों को हार मानना पड़ा. उसके बाद पति ने भी साथ दिया, तो हौंसला बढ़ा.

तीन हजार रुपये से शुरू किया कारोबार

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अफसाना बताती हैं कि मैंने साल 2003 में सिर्फ तीन हजार रुपये से काम शुरू किया था. हर रोज सुबह सुबह सिर पर कपड़े रखकर गांव-गांव जाती थीं और शाम को घर लौटती थी. मैंने जिस तरह जिंदगी गुजारी हैं, उसे बयां भी नहीं कर सकती हूं.

2003 में जब मुझे ख्याल आया कि मैं खुद कपड़ा बनवा र बेचूं, तो इसके लिए स्वयं सहायता समूह बनाया और दिल्ली से कपड़ा लेकर घर पहुंचकर कारीगरों से बनवाना शुरू किया. आज अल्लाह का करम है कि लाखों रुपये सालाना कमा रही हूं. एक बार सरकार ने मुझे पांच हजार रुपये का अनुदान भी दिया है.

अफसाना बताती हैं कि मैं अपना सामान लेकर देश के सभी राज्यों में जाती रहती हूं, जिसमें दिल्ली, चेन्नई, पटना, मुम्बई, उत्तराखंड, देहरादून आदि मशहूर शहर शामिल हैं. वह खुशी व्यक्त करते हुए कहती हैं कि अब महिलाएं जागरूक हो चुकी हैं. अपने कारोबार में कई तरह की नई-नई बातें सीखने को मिलती हैं.

दुनिया छूटेगी मगर समूह नहीं छूटेगा

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अफसाना खातून अपने बीते दिनों को याद करते हुए कुछ देर के लिए जज्बाती होते हुए कहती हैं कि एक वक्त था कि सोने के लिए छत नहीं थी. मेरे पास तीन बच्चे हैं. सब माशाअल्लाह कामयाब हैं. समूह ने हमारी जिस तरह मदद की हैं, उसे मैंने दिलो-जान से सींचा हैं. दुनिया छूटेगी, मगर हमारा समूह नहीं छूटेगा.

आपके समूह से इस समय कितने लोग जुड़ कर काम कर रहे हैं? इस सवाल के जवाब में अफसाना खातून बताती हैं कि मेरे समूह में इस समय 400 महिलाएं जुड़कर काम कर रही हैं. एक समूह में कई ग्रुप बनाए गए हैं और उस समूह में कई-कई महिलाएं जुड़ी हुई हैं.

शुरू में हमें भी बुरा लगा

अफसाना के पति मोहम्मद अयूब ने बताया कि हमारे यहां सिर्फ हाथ से बने हुए कपड़े मिलते हैं. इस काम को रामपुर और उसके आस-पास के लोग अपने अपने घरों में कर रहे हैं. मेरी पत्नी जब घर से बाहर निकलकर काम करना चाह रही थी, तो उस समय कुछ देर के लिए बुरा लगा कि कैसे एक महिला घर के बाहर निकलकर काम करेगी.

एक वक्त ऐसा आया कि मुझे उसके साथ खड़ा होना पड़,ा जिससे कारोबार में कामयाबी मिली हैं. अब प्रतिदिन हजारों रुपये कमा रहा हूं.

ये घरेलू काम है

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इस काम को घरों में किया जाता है. इसके साथ ही पढ़ाई करने वाले छात्र भी समूह से जुड़े हुए हैं. जो स्कूल से पढ़ाई करने के बाद कुछ घंटे इस काम में देकर 3-4 हजार रुपये प्रतिदिन कमा रहे हैं. इस तरह हमारा काम घरेलू काम ही है. जिसमें अब तक 400 लोग काम कर रहे हैं.

महिला के लिए जीवनदान से कम नहीं

अफसाना महिला सशक्तिकरण के बारे में कहती हैं कि इस सरकार में जिस तरह महिलाओं को अपने पैर पर खड़ा होने का मौका दिया है, वह मेरी जैसी महिला के लिए जीवनदान से कम नहीं हैं. सरकार हमें बाजार दे रही है, जहां अपने सामान को बेच रही हूं. महिलाओं को भी चाहिए कि वह खुद को सशक्त बनाएं. इस रास्ते में बाधाएं आएंगी, लेकिन उन्हीं से सीख लेकर हमें आगे बढ़ना चाहिए.