- हरजिंदर
मई के दूसरे हफ्ते में जब भारत की मिसाइलें और ड्रोन पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों को निशाना बना रहीं थीं और जवाब में पाकिस्तानी फौज भी कुछ एक मिसाइलों की फुलझड़ियां छोड़ने की कोशिश कर रहीं थी तो उस समय पाकिस्तान के चरमपंथी क्या कर रहे थे ?सीधा सा जवाब है कि वे वही कर रहे थे जो उन्हे करना आता है.
जिस समय भारत और पाकिस्तान का तनाव चरम पर था उस समय पाकिस्तानी प्रांत पंजाब के खुशब जिले में रोधा नाम की एक जगह पर ये चरमपंथी एक कब्रिस्तान में घुसे और तोड़-फोड़ शुरू कर दी.
अहमदिया समुदाय के इस कब्रिस्तान में उन्होंने एक दो नहीं पूरी 90 कब्र तोड़ दीं. उन पर लगे शिलालेखों को चूर-चूर कर दिया.ये चरमपंथी कितने थे उसका जिक्र वहां से आने वाली किसी भी खबर में नहीं किया गया, लेकिन जिस तरह से और जितनी बड़ी तोड़-फोड़ वहां की गई उससे यह तो साफ पता चलता है कि वे काफी देर तक इस काम को बिना किसी रोक-टोक के करते रहे.
इसी कब्रिस्तान पर पिछले साल एक और दो अप्रैल की रात भी इसी तरह का हमला हुआ था. तब भी कई कब्रों को नुकसान पहुंचाया गया था. विडंबना यह रही कि पुलिस ने बजाए यह कारनामा करने वालों को पकड़ने के अहमदिया समुदाय के नेताओं से ही कहा कि वे इन कब्रों पर लगे शिलालेख हटा लें.
समुदाय के नेताओं ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया. नतीजा एक साल बाद के इस हमले में दिखा जिनमें वहां शायद ही कोई ऐसी कब्र बची हो जिसे नुकसान नहीं पहुंचाया गया.
वैसे न तो पाकिस्तान के अहमदिया समुदाय पर ही ये पहले हमले हैं और न ही उनके कब्रिस्तानों पर. 2025 में अब तक ऐसी 11 वारदात हो चुकी हैं और कुल 269 कब्रों को नुकसान पहुंचाया जा चुका है. पिछले साल ऐसी 21 वारदात हुईं थीं . कुल 319 कब्रों को नुकसान पहुंचाया गया.
इन आंकड़ों से यह भी समझा जा सकता है कि ऐसी वारदात लगातार बढ़ रही हैं . सुरक्षा के कोई भी इंतजाम नहीं किए गए. इन वारदात के लिए किसी को कभी पकड़ा गया है ऐसे खबरें भी नहीं मिली हैं.
अल्पसंख्यक अहमदिया समुदाय पर होने वाल ऐसे अत्याचारों की कहानी तो काफी लंबी है. यह तकरीबन उसी के बाद शुरू हो गए थे जब पाकिस्तान अभी बना ही था. 1974 में उन्हें गैर-इस्लामी घोषित करने के बाद भेदभाव और अत्याचारों की घटनाओं में इजाफा ही हुआ.
लेकिन वे अल्पसंख्यक जो अभी भी पाकिस्तान की सरकारी शब्दावली में इस्लामिक ही माने जाते हैं उनके साथ भी इतना ही बुरा बर्ताव होता रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाके में रहने वाला हाजरा समुदाय.
जनवरी 2013 के क्वेटा में हुए उस आतंकवादी हमले को कौन भूल सकता है जिसमें इस समुदाय के 126 लोगों की जान चली गई थी.इसी तरह का एक और उदाहरण पाकिस्तान का शिया समुदाय है जो लगातार अत्याचार का शिकार रहा है.
बावजूद इसके कि पाकिस्तान के संस्थापक माने जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना खुद शिया थे. क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर में छपे के एक पुराने लेख पर यकीन करें तो पाकिस्तान में 1987 से लेकर 2007 के बीच 4000 से ज्यादा शिया की जान सांप्रदायिक हिंसा में जा चुकी है.
2007 के बाद तो ऐसे मामले और भी बढ़े हैं जिनके भरोसेमंद आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.पाकिस्तान में पल रहे उग्रवाद के शिकार सिर्फ वहां के अल्पसंख्यक ही हैं ऐसा नहीं है. वहां के बरेलवी और देवबंदी चरमपंथियों में खूनी टकराव की खबरें भी अक्सर ही आती रहती हैं.
ये सब वही उग्रवादी हैं जिनका इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ कश्मीर और अन्य जगहों पर आतंक फैलाने के लिए करती है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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