- हरजिंदर
अभी दो सप्ताह तक पहले हमारी चिंताएं अलग थीं.पहलगाम के आतंकी हमले के बाद उत्तर भारत के कईं हिस्सों में जिस तरह की प्रतिक्रिया दिखाई दी वह परेशान करने वाली थी.जगह-जगह से बुरी खबरें आ रहीं थीं.कईं जगहों पर कश्मीरी छात्रों और कारोबारियों को परेशान किया गया.अल्पसंख्यकों को परेशान करने की खबरें भी आ रहीं थीं.यह समझना मुश्किल था कि नफरत का दौर जो शुरू हुआ है वह किधर जाएगा.
देश के सामने इससे भी बड़ी परेशानी यह थी कि भारत में आतंकवाद फैलाने वाले पाकिस्तान को किस तरह जवाब दिया जाए.शुरुआती तैयारियों के बाद भारत की वायु सेना ने यह जवाब दिया और पूरी सख्ती से जवाब दिया.
सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह का जवाब दिया जाना जरूरी है इसे लेकर पूरे देश में एक आम सहमति दिखाई दी.आॅपरेशन सिंदूर की कामयाबी को लेकर लोगों में एक तरह का उत्साह भी बना.
इस बीच एक और बहुत बड़ी चीज हुई जिस पर बहुत कम ध्यान दिया गया.कश्मीरियों या अल्पसंख्यकों को परेशान करने की खबरें आनी बंद हो गईं.जब पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा था तो बाकी देश ने भी हालात की नजाकत को समझा और वे सारे हंगामे जो गलत थे वे भी बंद हो गए.
स्थानीय स्तर पर लोगों को भड़काने की कोशिशें अचानक ही नाकाम होने लगीं और पहले जो लोग बेवजह हंगामे का हिस्सा बन गए थे वे सिर्फ और सिर्फ सेना की सक्रियता से उम्मीद बांधने लगे.
जिस गुस्से को पहले नफरत की तरफ मोड़ने की कोशिश हो रही थी वह अपने आप एक उम्मीद में बदल गया.भारत में पगलाई भीड़ संकट के समय समझदार नागरिकों में कैसे बदल जाती है यह इसका एक उदाहरण है.
इसे एक पुराने उदाहरण से भी समझा जा सकता है.सत्तर के दशक तक देश भर में सिखों के खिलाफ तरह-तरह के मजाक और चुटकुले चलते थे.इन चुटकुलों का मकसद अक्सर उन्हें अपमानित करने का होता था.
इसी दौर में पंजाब समस्या आई और आतंकवाद उभरा.हालांकि इसका कारण वे चुटकुले कतई नहीं थे। उसके पीछे कईं दूसरे तरह के कारण और षड़यंत्र थे.
इसी समस्या के दौरान आतंकवादियों के खिलाफ आॅपरेशन ब्लू स्टार हुआ.प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या जैसे जघन्य आतंकवादी कांड हुए.एक और दुर्भाग्यपूर्ण चीज यह हुई कि देश के कुछ हिस्सों में भयानक सिख विरोधी दंगे हुए.
इस दौर की तमाम घटनाओं से पूरी समाज को सदमा लगा.नतीजा यह हुआ कि सिखों के खिलाफ चुटकुले पूरी तरह से बंद हो गए.इसके लिए कोई आदेश जारी नहीं हुआ.
किसी ने किसी से ऐसा करने के लिए कहा भी नहीं.किसी ने इसकी कोई प्रेरणा भी नहीं दी.यह काम पूरे समाज ने अपने आप कैसे और कब कर दिया पता भी नहीं पड़ा.
समाज की ऐसी कोशिश ने ही उन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया जो कह रहीं थीं कि सिख देश की मुख्य धारा से अलग-थलग हो जाएंगे.इस बार मामला चुटकुलों से ज्यादा गंभीर था लेकिन समाज ने समझदारी इस बार भी दिखाई.
हालांकि अभी इस समझदारी की उम्र को लेकर किसी तरह की भविष्यवाणी संभव नहीं है.मगर एक सवाल जरूर है कि जो समझदारी हमे संकट के समय दिख रही है क्या वह आम समय में नहीं दिखाई दे सकती?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)