मोहम्मद रफ़ी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि: जब 'भगवान की आवाज़' को 9 साल तक गाने नहीं दिया

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 31-07-2025
A touching tribute to Mohammad Rafi on his death anniversary: When even the 'voice of God' was silenced
A touching tribute to Mohammad Rafi on his death anniversary: When even the 'voice of God' was silenced

 

मलिक असगर हाशमी/नई दिल्ली

 

क्या आप सोच सकते हैं कि जिस मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ को पूरी दुनिया "भगवान की आवाज़" कहती है, उन्हें भी कभी नौ वर्षों तक जबरन चुप रहने पर मजबूर किया गया? जिस इंसान की गायकी ने करोड़ों दिलों को छुआ, जिसे सुनकर कई पीढ़ियां गायक बनने का सपना देखने लगीं—उस रफ़ी साहब को भी बॉलीवुड की साज़िशों का शिकार होना पड़ा.

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यह कोई अटकल नहीं, बल्कि उस दौर के मशहूर गायक सुरेश वाडेकर का खुलासा है. एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया चैनल को दिए गए एक घंटे लंबे इंटरव्यू में सुरेश वाडेकर ने वह सच सामने रखा जिसे जानकर हर संगीतप्रेमी का दिल दहल जाए.

वाडेकर कहते हैं, “सोचिए, रफ़ी साहब जैसे महान गायक को आठ से नौ साल तक गवाने का मौका नहीं दिया गया. म्यूजिक डायरेक्टर जिनकी मिसालें दिया करते थे, वही लोग उन्हें चुप कर बैठे. इतना बड़ा कलाकार, जिसे लोग अल्लाह मियां की गाय कहते हैं, घर पर बैठा दिया गया.”

इंटरव्यू में सुरेश वाडेकर बताते हैं कि रफ़ी साहब को किन्हीं उभरते गायकों को मंच देने के लिए जानबूझकर पीछे कर दिया गया. वो कहते हैं, “रफ़ी साहब उन गायकों से बेहतर गाते थे, मगर शायद यही उनकी सबसे बड़ी गलती बन गई. उनसे चिढ़कर उन्हें दरकिनार कर दिया गया।” इस पीड़ा को बयां करते हुए वाडेकर की आवाज़ में एक दर्द साफ झलकता है.

वे आगे कहते हैं, “एक ही गायक को सौ में से 98 गाने दे देते हो, फिर कहते हो वो 'लकी सिंगर' है. लकी कैसे नहीं होगा, जब सारे मौके उसी को मिलेंगे? बाकी क्या घास काटने आए हैं?”

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यह बात सिर्फ रफ़ी साहब की नहीं थी. सुरेश वाडेकर खुद भी इस पक्षपात का शिकार हुए.गायकों के प्रति यह रवैया आम हो चला था.

बातचीत के दौरान वाडेकर यह भी जोड़ते हैं कि, “हर साल सौ गाने बनते हैं. अगर पचास अपने पसंदीदा गायक को देते हो, तो पचास बाकी लोगों को भी दो. सबका चाय-पानी चलता रहे। ये क्या बात हुई कि एक ही नाम हर तरफ हो?”

वाडेकर के इन शब्दों से झलकता है कि फिल्म इंडस्ट्री में कलाकारों को लेकर किस हद तक राजनीति होती है. वो मानते हैं कि बॉलीवुड एक 'शापित' इंडस्ट्री है.वे कहते हैं, “इतनी नेगेटिविटी है यहां. जब सौ में से पचास लोग आपको बद्दुआ देंगे, तो वो असर करेगी ही.” 

सुरेश वाडेकर की मोहम्मद रफ़ी से आत्मीयता भी किसी से छुपी नहीं है. वे बताते हैं कि कैसे एक बार जब उन्होंने रफ़ी साहब के साथ एक कव्वाली गाई, तो रफ़ी साहब के साले ने फोन कर बताया कि रफ़ी साहब उनकी गायकी से बेहद प्रभावित हुए थे. ये वाकया आज भी सुरेश वाडेकर के लिए गर्व का विषय है.

इंटरव्यू के अंत में सुरेश वाडेकर बेहद भावुक होकर कहते हैं, “रफ़ी साहब सिर्फ एक गायक नहीं थे, वो भगवान की आवाज़ थे. उनके जैसा न कोई हुआ, न कभी होगा. हम जैसे सैकड़ों गायकों ने उनके गाने सुन-सुनकर ही संगीत सीखा.”

आज जब हम मोहम्मद रफ़ी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हैं, तो यह सवाल भी उठता है—क्या यह वही देश है जहां 'भगवान की आवाज़' को भी नौ साल तक चुप बिठा दिया गया?

रफ़ी साहब की आवाज़ तो आज भी गूंजती है—हर दिल में, हर गीत में. मगर यह याद भी हमेशा ज़िंदा रहनी चाहिए कि कला और कलाकार को चुप कराना, किसी भी सभ्यता की सबसे बड़ी नाइंसाफी होती है.

रफ़ी साहब, आपकी सादगी, विनम्रता और सुरों से भरी दुनिया को आवाज द वाॅयस का सलाम.