सच्ची दोस्ती: इस्लाम की रौशनी में एक नेक रिश्ता

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-08-2025
True friendship: A noble relationship in the light of Islam
True friendship: A noble relationship in the light of Islam

 

इमान सकीना

इस्लाम में मित्रता एक बेहद कीमती और पाक रिश्ता है. यह केवल एक-दूसरे के साथ समय बिताने या समान रुचियों के आधार पर नहीं बनती, बल्कि यह साझा विश्वास, सच्चाई, नेकनीयती और अल्लाह की राह पर एक साथ चलने की भावना पर आधारित होती है. एक सच्चा मुस्लिम मित्र सिर्फ आपका साथी नहीं होता, बल्कि वह आपकी आत्मा को संबल देने वाला, दुख में सहारा देने वाला और आपको अच्छाई की ओर मार्गदर्शन करने वाला होता है.

कुरआन और हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत हमें बताते हैं कि एक सच्चे दोस्त के अंदर कौन-कौन से गुण होने चाहिए.सबसे पहले, एक सच्चे दोस्त की नीयत बिल्कुल साफ होती है. वह आपकी दोस्ती किसी फायदे के लिए नहीं करता—ना धन के लिए, ना शोहरत के लिए, ना किसी रूप या रूपये के लिए.

उसकी दोस्ती केवल अल्लाह की खातिर होती है. ऐसी दोस्ती अल्लाह को बहुत पसंद है और क़यामत के दिन वह इन दोस्तों को अपने साए में रखेगा, जब कोई और साया नहीं होगा. यह दोस्ती न ईर्ष्या से भरी होती है, न चालाकी से, और न ही किसी स्वार्थ से.

एक सच्चा मुस्लिम दोस्त अमानतदार और वफ़ादार होता है. वह आपकी बातों को राज़ रखता है, आपकी अनुपस्थिति में भी आपकी इज़्ज़त करता है और कभी भी आपका भरोसा नहीं तोड़ता.

जब आप उससे कुछ साझा करते हैं, तो वह इसे एक जिम्मेदारी समझता है, न कि गपशप का विषय. वह आपकी बुराई नहीं करता, बल्कि आपकी गरिमा की रक्षा करता है.

सच्चा मित्र हमेशा ईमानदार होता है. वह आपकी गलतियों पर सिर्फ चुप नहीं बैठता, बल्कि सच्चाई और प्यार के साथ आपको सुधारने की कोशिश करता है. वह आपकी तारीफ तो करता है, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर सही समय पर नसीहत भी देता है.

अल्लाह ने भी कुरआन में कहा है कि जो लोग ईमान लाते हैं, अच्छे काम करते हैं और एक-दूसरे को सच और सब्र की नसीहत करते हैं—वे ही कामयाब हैं.एक अच्छा मुस्लिम दोस्त हमेशा आपकी रूहानी तरक्की चाहता है.

वह आपको नमाज़ की याद दिलाता है, कुरआन की ओर लौटने की प्रेरणा देता है, और दुनिया की भटकनों से दूर रखता है. रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फ़रमाया है कि इंसान अपने दोस्त के दीन पर होता है, इसलिए सोच-समझकर दोस्त बनाना चाहिए. सच्चा दोस्त आपको दीन से जोड़ता है, न कि उससे दूर करता है.

ऐसे दोस्त भावनात्मक सहारा भी देते हैं. जब आप दुखी होते हैं, तो वे आपके पास होते हैं. वे आपकी तकलीफ को महसूस करते हैं, उसे हल्का करते हैं और आपको अल्लाह पर भरोसा करने की ताक़त देते हैं.

इस्लाम में मोमिनों की एकता को एक शरीर की तरह बताया गया है—अगर एक हिस्सा दर्द में हो, तो पूरा शरीर परेशान हो जाता है.सच्चा मित्र आपकी कमियों के लिए आपको जज नहीं करता, बल्कि सब्र और माफ़ी से काम लेता है.

वह छोटी-छोटी बातों को दिल में नहीं रखता, बल्कि मनमुटाव की स्थिति में भी सुलह की कोशिश करता है. कुरआन सिखाता है कि बुराई का जवाब भलाई से दो, जिससे दुश्मन भी दोस्त बन सकता है.

इसके अलावा, एक सच्चा मुस्लिम दोस्त हमेशा हया और सीमाओं का ध्यान रखता है. वह ऐसे मज़ाक नहीं करता जिससे आप शर्मिंदा हों. वह आपके आत्म-सम्मान को कभी ठेस नहीं पहुंचाता और हमेशा शरीफ़ाना और पाक लहजे में बात करता है.

सबसे बढ़कर, ऐसा दोस्त निस्वार्थ होता है. वह मदद करता है बिना बदले की उम्मीद के. चाहे मदद छोटी हो या बड़ी, उसका मक़सद सिर्फ अल्लाह की रज़ा हासिल करना होता है. जैसे रसूल (स.अ.व.) ने फ़रमाया—जो किसी मोमिन की परेशानी दूर करता है, अल्लाह उसकी आख़िरत की परेशानी दूर करेगा.

यही वह दोस्त होते हैं जो क़यामत के दिन भी आपके साथ होंगे, क्योंकि कुरआन में साफ़ कहा गया है कि उस दिन दोस्त दुश्मन बन जाएंगे—सिवाय उन लोगों के जो परहेज़गार हैं.

इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम खुद भी ऐसे दोस्त बनें—जो ना सिर्फ इस दुनिया में पसंद किए जाएं, बल्कि अल्लाह की नजरों में भी अज़ीज़ हों.