आवाज द वाॅयस /लंदन
अजमेर शरीफ़ दरगाह के वरिष्ठ आध्यात्मिक परिवार से संबंध रखने वाले और सूफी परंपरा के प्रख्यात प्रतिनिधि हज़रत सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने लंदन के Belgrave Community Centre, इलफोर्ड में मुस्लिम समुदाय को संबोधित करते हुए सूफीवाद को इस्लाम का मूल और आवश्यक पहलू बताया. उन्होंने कहा कि सूफी मार्ग प्रेम, करुणा, सेवा, सह-अस्तित्व और आत्मिक शुद्धता पर आधारित है.
अपने प्रभावशाली भाषण में चिश्ती ने कहा कि सूफी संतों ने इस्लाम का प्रचार कभी तलवार से नहीं किया, बल्कि प्रेम और सेवा के माध्यम से लोगों के दिलों को जीता. उन्होंने याद दिलाया कि हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ग़रीब नवाज़ (रह.) ने कहा था,"दिलों को फ़तह करो, ज़मीनों को नहीं. प्रेम जीतो, युद्ध नहीं. रब की रज़ा पाने के लिए उसकी मख़लूक की सेवा करो."
बताया कि वह खुद ख्वाजा साहब के वंशज हैं और उनके पिता अजमेर शरीफ़ दरगाह के 29वें सज्जादानशीन हैं. यह पद केवल एक सम्मान नहीं बल्कि एक सेवा की जिम्मेदारी है — एक मिशन जो इंसानियत, आध्यात्मिकता और समर्पण से जुड़ा है.
उन्होंने कहा कि इस्लाम केवल इबादतों का मज़हब नहीं है, बल्कि यह प्यार, न्याय, रहम, विनम्रता और आत्मिक विकास का मार्ग है. यही संदेश सूफिया-ए-किराम ने अपने जीवन और कर्म से समाज को दिया.
हज़रत नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा,“आज जब दुनिया भौतिकता, वैमनस्य और आत्मिक खोखलेपन की ओर बढ़ रही है, ऐसे समय में औलिया और सूफियों का संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है.”
उन्होंने कहा कि बिना करुणा के ईमान अधूरा है.बिना सेवा के इबादत खोखली है.बिना विनम्रता के ज्ञान घातक है.
उन्होंने स्पष्ट किया कि तसव्वुफ़ (सूफीवाद) कोई बाहरी वेशभूषा या उपाधि नहीं है, बल्कि यह अहम, घृणा और घमंड से हृदय को शुद्ध करने की प्रक्रिया है। यह धरती पर नरमी से चलने और हर चेहरे में अल्लाह को देखने का तरीका है.
अपने संबोधन में उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अजमेर शरीफ़ की दरगाह केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए खुली है जो शांति, सुकून और आध्यात्मिक मार्गदर्शन चाहता है.
भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य धर्मों के लोग अजमेर दरगाह पर आते हैं.उन्हें कभी यह नहीं पूछा जाता कि वे किस धर्म से हैं. उन्हें केवल इंसान और प्रेम के जिज्ञासु के रूप में स्वीकार किया जाता है.
उन्होंने कहा,“अजमेर शरीफ़ दरगाह की रूहानियत और दरवाज़े हर धर्म, जाति और वर्ग क लिए खुले हैं. वहां कोई भेदभाव नहीं है, सिर्फ मुहब्बत और इंसानियत की तालीम है.”
उन्होंने आगे कहा कि सूफी परंपरा हमें सिखाती है कि:बिना शर्त प्रेम करना सीखो.निर्बल की सेवा करो और बदले में कुछ न चाहो.किसी की राह दिखाओ तो बिना निर्णय लिए.
कार्यक्रम का समापन एक दुआ के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने प्रार्थना की:“अल्लाह हमें औलिया अल्लाह के नक़्श-ए-क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ दे. हमें ऐसा मुसलमान बना दे जो दिलों को जोड़ता हो, जो सेवा करे, जो प्रेम बाँटे. हमें ऐसा बना दे कि जब हम किसी से मिलें, तो उन्हें रब की याद आए.”
सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती का यह उद्बोधन न केवल एक धार्मिक शिक्षण था, बल्कि यह समाज में शांति, सह-अस्तित्व और आध्यात्मिक जागरूकता को फिर से स्थापित करने का एक सशक्त संदेश भी था. उपस्थित जनसमूह ने इस भाषण को न केवल ध्यानपूर्वक सुना, बल्कि उनके विचारों को जीवन में उतारने का भी संकल्प लिया.
यह आयोजन ब्रिटेन में बसे भारतीय और दक्षिण एशियाई मुस्लिम समुदाय के लिए एक आध्यात्मिक संजीवनी सिद्ध हुआ, जो आज के दौर में इस्लाम की असल रूह — मुहब्बत, अदब और खिदमत — को फिर से समझने की ज़रूरत को दर्शाता है.