मलिक असगर हाशमी
उत्तर प्रदेश को लेकर पिछले कुछ वर्षों में एक विशेष नैरेटिव गढ़ा गया है कि यहां मुस्लिम समुदाय न तो सुरक्षित है और न ही उन्हें आगे बढ़ने के लिए कोई अवसर मिल रहे हैं. यह धारणा खासतौर पर राजनीतिक मंचों पर जोर-शोर से उठाई जाती है ताकि एक खास वर्ग को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर राजनीतिक लाभ लिया जा सके.
लेकिन अगर हम सियासी चश्मा उतारकर उत्तर प्रदेश की जमीनी हकीकत को देखें, तो तस्वीर पूरी तरह से अलग नजर आती है. खासकर जब बात आर्थिक विकास, रोजगार, और पारंपरिक उद्योगों की आती है, तो मुस्लिम समुदाय की भागीदारी और सफलता साफ तौर पर दिखाई देती है.
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने ‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ODOP योजना के माध्यम से राज्य के हर जिले की पारंपरिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान को न केवल संरक्षित किया है, बल्कि उसे वैश्विक स्तर तक पहुंचाने का भी कार्य किया है.
यह योजना सिर्फ सरकार की आर्थिक रणनीति भर नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान बन चुकी है, जिसने लाखों कारीगरों, शिल्पकारों और खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदायों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया है.
प्रदेश के मुस्लिम समुदाय की बड़ी आबादी बुनकरी, हस्तशिल्प, कढ़ाई, कालीन, चूड़ी निर्माण, चमड़ा उद्योग और कृषि आधारित उत्पादों में कार्यरत है. ODOP योजना ने इन्हीं पारंपरिक व्यवसायों को पुनर्जीवित किया है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि ODOP योजना एक राष्ट्रीय मॉडल बन चुकी है. स्वदेशी अपनाना आज समय की मांग है. यदि हमारे कारीगरों और शिल्पकारों के पास ही पैसा रहेगा, तो उससे प्रदेश में विकास, समृद्धि और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस विचार का समर्थन करते हुए कहते हैं कि हमें वही चीजें खरीदनी चाहिए जो किसी भारतीय के पसीने से बनी हों, और जो भारत के लोगों के कौशल का परिणाम हों। यही असली ‘वोकल फॉर लोकल’ है.
अगर हम आंकड़ों की बात करें, तो स्पष्ट रूप से दिखता है कि ODOP योजना ने उन जिलों में भी जबरदस्त असर डाला है जहां मुस्लिम आबादी अधिक है और परंपरागत उद्योग लंबे समय से उनकी आजीविका का मुख्य आधार रहे हैं.
वाराणसी, जो बनारसी सिल्क साड़ियों और हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है, वहां का कुल निर्यात ₹430.44करोड़ तक पहुंच चुका है. बहराइच जिले से आलू, चना, केला, चावल और खांडसारी शक्कर का निर्यात ₹629.99करोड़ हुआ है. बिजनौर से प्राकृतिक शहद, आलू फ्लेक्स और सब्जियों के बीजों का निर्यात ₹146.70करोड़ तक पहुंचा है.
गाजीपुर जिले से थूलन दरी और अन्य हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात ₹5,097करोड़ रहा है. गाजियाबाद जिले से इंजीनियरिंग उत्पाद, ऑटो पार्ट्स, और स्पेयर पार्ट्स का निर्यात ₹14,948.79करोड़ हुआ है.
फिरोज़ाबाद, जो चूड़ियों और कांच के अन्य उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है, वहां का निर्यात ₹705.88करोड़ रहा है. बरेली से बासमती चावल, खांडसारी शक्कर और प्राकृतिक मेंथॉल का निर्यात ₹689.73करोड़ है.
भदोही, जो कालीन उद्योग के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है, वहां से चावल, प्राकृतिक मेंथॉल और पेपरमिंट जैसे उत्पादों का निर्यात ₹813.36करोड़ रहा है. बुलंदशहर से सिंथेटिक फाइबर, ड्रेसेज, पेंटिंग्स और अन्य हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात ₹1,454.76करोड़ हुआ है. लखनऊ, जो चिकनकारी के लिए विख्यात है, वहां से स्टेनलेस स्टील के कास्ट आर्टिकल्स समेत कुल निर्यात ₹1,739.29करोड़ दर्ज किया गया है. आगरा, जो चमड़े के उत्पादों का गढ़ है, वहां से कुल निर्यात ₹7,555.3करोड़ हुआ है.
इन जिलों की विशेषता यह है कि इनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम कारीगर, शिल्पकार, बुनकर और छोटे व्यापारी शामिल हैं, जो दशकों से इन पारंपरिक व्यवसायों से जुड़े हुए हैं.
ODOP योजना ने उनके लिए प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता, मार्केटिंग, GI टैग, ब्रांडिंग, एक्सपोर्ट की सुविधा और अंतरराष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराए हैं. यह वह वास्तविकता है जो तथाकथित नरेटिव को पूरी तरह से खारिज कर देती है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को अवसर नहीं मिल रहे हैं.
ODOP योजना की बात करें तो इसके तहत अब तक 15 Common Facility Centers (CFCs) पूरे किए जा चुके हैं, और 13अन्य निर्माणाधीन हैं. इन केंद्रों पर कारीगरों को आधुनिक मशीनें, डिज़ाइनिंग सपोर्ट, पैकेजिंग और क्वालिटी कंट्रोल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिससे उनके उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता में जबरदस्त वृद्धि हुई है.
प्रशिक्षण और टूलकिट वितरण के तहत 1.08 लाख से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित किया गया है और उन्हें आधुनिक टूलकिट्स भी प्रदान किए गए हैं. यह न केवल हुनर को निखारने में सहायक हुआ है, बल्कि इससे बाजार में उत्पादों की मांग भी बढ़ी है.
GI टैग की बात करें तो अब तक ODOP के 44उत्पादों को GI टैग मिल चुका है, और 2026तक 75 उत्पादों को GI टैग देने का लक्ष्य रखा गया है. GI टैग किसी भी उत्पाद की विशिष्टता और पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में सहायक होता है, जिससे निर्यात और मांग दोनों में बढ़ोतरी होती है.
राष्ट्रीय स्तर पर भी इस योजना को मान्यता मिली है. पहले राष्ट्रीय ODOP अवार्ड में उत्तर प्रदेश को पहला स्थान मिला है, जो यह दर्शाता है कि ODOP न केवल एक राज्य की योजना है, बल्कि यह राष्ट्रीय विकास का हिस्सा बन चुकी है.
प्रचार-प्रसार के लिए 2018 से अब तक 500 से अधिक प्रमोशनल कार्यक्रम, 9 ODOP समिट और अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियां आयोजित की गई हैं. इससे ODOP उत्पादों को घरेलू और विदेशी बाजारों में नई पहचान मिली है.
तीन प्रमुख शहरों – आगरा, वाराणसी और लखनऊ – में ODOP यूनिटी मॉल्स स्थापित करने की योजना स्वीकृत हो चुकी है, जहां ODOP उत्पादों को प्रदर्शन और बिक्री के लिए रखा जाएगा.
यह कारीगरों को अपने उत्पादों के लिए स्थायी मार्केट प्लेटफॉर्म प्रदान करेगा. साथ ही, ODOP मार्जिन मनी योजना के तहत अब तक ₹4,000करोड़ के प्रोजेक्ट्स को स्वीकृति दी जा चुकी है, जो इन उद्यमों को आर्थिक रूप से स्थिर करने में एक मजबूत आधार बनकर उभरा है.
अगर राज्य के समग्र निर्यात की बात करें तो 2017में उत्तर प्रदेश का निर्यात ₹80,000करोड़ था, जो 2025तक बढ़कर ₹2,00,000करोड़ हो चुका है. यानी पिछले आठ वर्षों में निर्यात में ₹1.2लाख करोड़ की बढ़ोतरी हुई है.
यह सिर्फ आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश अब देश का एक प्रमुख औद्योगिक और निर्यात केंद्र बन चुका है. यह विकास कपड़ा उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण और हस्तशिल्प जैसे उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों के विस्तार के कारण संभव हुआ है.
वर्तमान में उत्तर प्रदेश भारत की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसका राष्ट्रीय GDP में योगदान 9.2%है. 96लाख से अधिक MSME यूनिट्स के साथ यह देश का शीर्ष राज्य है. गुड गवर्नेंस इंडेक्स 2021 में इसे पहला स्थान और Export Preparedness Index में दूसरा स्थान मिला है. Logistics Ease Across Different States Ranking 2023में भी उत्तर प्रदेश को एक Achiever State के रूप में स्थान दिया गया है.
इन सभी उपलब्धियों के केंद्र में ODOP जैसी योजनाएं और उसमें काम कर रहे कारीगर, व्यापारी, शिल्पकार और बुनकर हैं – जिनमें बड़ी संख्या मुस्लिम समुदाय की है. इसलिए यह कहना कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल रहा है, न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि यह उस मेहनतकश तबके का भी अपमान है जो दिन-रात अपने हुनर से प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहा है.
आज जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक लाभ के लिए गढ़े गए नकारात्मक नैरेटिव से बाहर निकलकर सच्चाई को समझा जाए. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की नीतियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर सरकार की नीयत और नीति स्पष्ट हो, तो हर वर्ग, हर धर्म, हर समुदाय के लोगों को विकास का लाभ मिलता है. ODOP जैसी योजनाएं इसका जीवंत उदाहरण हैं, जिसने न केवल पारंपरिक उद्योगों को पुनर्जीवित किया, बल्कि लाखों लोगों को सम्मानजनक रोजगार दे रहा है.