चांद शाह बाबा की मजार: जहाँ आस्था से मिट जाती हैं धर्म की दीवारें

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-08-2025
Chand Shah Baba's Mazar: Where the walls of religion are erased by faith
Chand Shah Baba's Mazar: Where the walls of religion are erased by faith

 

शांतिप्रिय राय चौधरी/ मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल)

भले ही यह सुनने में आपको हैरानी हो, लेकिन यह हकीकत है – पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के बेड़बल्लभपुर में स्थित सूफी संत चांदशाह पीर की मजार की देखरेख और सेवा पिछले 50वर्षों से हिन्दू श्रद्धालु कर रहे हैं.यही नहीं, वे न केवल मजार की देखभाल करते हैं, बल्कि समय-समय पर इसके संवर्धन और मरम्मत का कार्य भी पूरी श्रद्धा से करते हैं.

स्थानीय निवासियों के अनुसार, 1970 के दशक से पहले चांदशाह बाबा एक घूमंतू फकीर के रूप में मेदिनीपुर शहर के कोतवाली थाना अंतर्गत मुस्लिम बहुल बेड़बल्लभपुर इलाके में रहा करते थे.

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उनकी सरलता, आध्यात्मिकता और मानवता के कारण वे खासतौर पर हिंदू समाज में बेहद लोकप्रिय हो गए.लोग उन्हें स्नेहपूर्वक "चांदशाह बाबा" कहकर पुकारते थे.

सन 1980 में 82 वर्ष की आयु में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.खास बात यह रही कि उनके दफन की प्रक्रिया भी स्थानीय हिन्दू समाज के लोगों ने पूर्ण धार्मिक सम्मान और गरिमा के साथ संपन्न कराई.तभी से इस स्थान को ‘चांदशाह बाबा की मजार’ के नाम से जाना जाने लगा.

पीर बाबा की लोकप्रियता देश-विदेश तक फैली

कहा जाता है कि जो कोई भी चांदशा बाबा की मजार पर अपनी समस्या लेकर आया, उसे समाधान जरूर मिला.चाहे संतान प्राप्ति की कामना हो, नौकरी की तलाश या व्यापार में सफलता – बाबा की मजार से लौटने के बाद लोगों को मनवांछित फल प्राप्त हुआ.इसी चमत्कारिक अनुभवों की वजह से चांदशा बाबा की ख्याति सिर्फ मेदिनीपुर ही नहीं, बल्कि देश-विदेश तक फैल गई.

एक हिंदू परिवार ने बनाई मजार

बाबा की मृत्यु के बाद, एक हिंदू श्रद्धालु 'चमथ सेतुआ' (जिनका कुछ वर्षों पहले निधन हो गया) और उनके परिवार ने इस मजार की नींव रखी और इसे एक धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल के रूप में विकसित किया.यही परिवार वर्षों तक मजार की सेवा करता रहा और बाबा के वचनों, उनकी शिक्षाओं और चमत्कारों का प्रचार-प्रसार करता रहा.

आज यह मजार उस क्षेत्र में धार्मिक सहिष्णुता और साम्प्रदायिक सौहार्द की एक जीवंत मिसाल बन चुकी है.उल्लेखनीय है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद यहां करीब 80प्रतिशत श्रद्धालु हिंदू समुदाय से आते हैं.

मजार पर होती हैं विशेष प्रार्थनाएं और विशाल आयोजन

हर सप्ताह गुरुवार को यहां विशेष धार्मिक आयोजन होता है, जिसमें सभी धर्मों के लोग शिरकत करते हैं.इस दिन विशेष प्रार्थना की जाती है और 200से 400 लोगों के लिए भोजन प्रसाद का आयोजन होता है.

इसमें पूलाव, भुनी हुई सब्जियाँ, दाल, चावल, तीन प्रकार की सब्जियाँ और पायस (खीर) परोसे जाते हैं.इस भोजन को हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग 'प्रसाद' मानकर ग्रहण करते हैं.

इसके अलावा हर वर्ष चैत्र मास के अंतिम दिन यहां एक भव्य वार्षिक आयोजन होता है, जिसमें एक लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल होते हैं.यह आयोजन मजार को एक धार्मिक मिलन केंद्र में तब्दील कर देता है.

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प्रशासनिक उपेक्षा पर लोगों की नाराजगी

स्थानीय पत्रकार जुल्फिकार अली ने बताया कि सेतुआ परिवार ने कई वर्षों तक इस मजार की देखरेख की और आज भी नियमों का पालन करते हुए श्रद्धापूर्वक सभी आयोजन करते हैं.

लेकिन मजार की स्थिति को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं.स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा.चुनाव के समय नेता वादे करते हैं, पर उसके बाद सब भूल जाते हैं.

एकता का प्रतीक बना चांदशा बाबा का दरबार

मेदिनीपुर का बेड़बल्लभपुर आज चांदशाह बाबा की मजार के कारण जाना जाता है,जहां न कोई धर्म की दीवार है, न कोई जाति का बंधन.यहां सिर्फ आस्था, सेवा और मानवता है.

यह मजार न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह उस गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है, जिसने सदियों से भारत को जोड़कर रखा है.चांदशाह बाबा का दरबार आज हिंदू-मुस्लिम एकता, सांप्रदायिक सौहार्द और आध्यात्मिक विश्वास का अद्वितीय प्रतीक बन चुका है.