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यादों की गठरी खोलते ही गुलज़ार बोले, अब्बू जी… अब तैरना सीख चुका हूँ, पर किनारा नहीं मिल रहा
मलिक असगर हाशमी, बांसेरा–सराय कालेखां, नई दिल्ली
बुज़ुर्गी में जब कोई यादों की गाँठ खोलता है, तो अक्सर जीवन का सबसे भीगा हुआ दुख ही टपक पड़ता है। जश्न-ए-रेख्ता के मंच पर जब अ...