लोकसभा चुनाव-2024 में मुस्लिम वोटों का एकीकरण असम के राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 13-06-2024
Rakibul Hussain and Badruddin Ajmal
Rakibul Hussain and Badruddin Ajmal

 

झुमुर देब

असम के धुबरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र ने भारत के राजनीतिक मानचित्र पर एक अनूठी छाप छोड़ी है, जहां कांग्रेस उम्मीदवार रकीबुल हुसैन 1,012,476 मतों के रिकॉर्ड अंतर से विजयी हुए हैं, जो भारत में दर्ज सबसे बड़ा अंतर है, जैसा कि भारत के चुनाव आयोग ने बताया है.

यह जीत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि मुस्लिम कांग्रेस नेता हुसैन ने एक अन्य प्रमुख अल्पसंख्यक नेता, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट  के इत्र व्यापारी बदरुद्दीन अजमल को हराया. हुसैन और अजमल के बीच मुकाबला 2014 से असम में भाजपा के बढ़ते प्रभाव के बीच अल्पसंख्यक नेताओं के बीच राजनीतिक प्रभुत्व के लिए तीव्र लड़ाई को उजागर करता है.

अजमल, जिन्होंने लगातार दो बार धुबरी सीट पर कब्जा किया था, ने असम में अवैध प्रवासियों के निर्धारण न्यायाधिकरण अधिनियम को खत्म करने के बाद एआईयूडीएफ की स्थापना की. अवैध प्रवासियों को संरक्षण देने वाले आईएमडीटी अधिनियम को प्रभावशाली ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के साथ लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था.

एआईयूडीएफ की लोकप्रियता में वृद्धि मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर आधारित थी, जो जल्दी ही असम में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत बन गई. 2011 के विधान सभा चुनावों में, एआईयूडीएफ ने 126 में से 18 सीटें जीतीं और 2016 में, इसने 13 सीटें हासिल कीं थी.

हालांकि, हाल के लोकसभा चुनावों में नाटकीय बदलाव देखने को मिला. धुबरी निर्वाचन क्षेत्र, जिस पर 2014 से अजमल का दबदबा था, में कांग्रेस के पक्ष में 54 प्रतिशत से अधिक वोटों के साथ महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया, जबकि एआईयूडीएफ के वोट शेयर में 23 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई.

यह बदलाव कांग्रेस की ओर मुस्लिम वोटों के एकीकरण का संकेत देता है, यह प्रवृत्ति असम में अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर भी देखी गई.

परिसीमन और इसका प्रभाव

परिसीमन के बाद, धुबरी में आठ विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. अल्पसंख्यक बहुल एक अन्य क्षेत्र नागांव में भी आठ विधानसभा क्षेत्र हैं, जबकि बराक घाटी के करीमगंज में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इन सभी क्षेत्रों में कुल मिलाकर 22 विधानसभा सीटें हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजों से संकेत मिलता है कि मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के साथ एकजुट हो रहे हैं, जिससे भाजपा को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ा है.

इन बदलावों के बावजूद भाजपा एक मजबूत ताकत बनी हुई है. भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के आंकड़ों के अनुसार, हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों ने 93 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की. खास तौर पर, भाजपा ने 76 सीटों पर, एजीपी ने 10 सीटों पर और यूपीपीएल ने सात सीटों पर बढ़त हासिल की. कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 31 सीटों पर और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने दो सीटों पर बढ़त हासिल की.

राजनीतिक परिदृश्य का विश्लेषण

असम में भाजपा का गढ़ स्पष्ट है, लेकिन संभावित बदलाव के संकेत भी हैं. ऊपरी असम की एक महत्वपूर्ण सीट जोरहाट निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस नेता गौरव गोगोई की हालिया जीत से संकेत मिलता है कि कांग्रेस भाजपा के आधार में सेंध लगा सकती है. यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है,क्योंकि इसमें स्वदेशी लोगों का एक बड़ा वोट बैंक है, जो भविष्य के चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है.

2011 की जनगणना के अनुसार असम की आबादी में मुस्लिमों की संख्या लगभग 40 प्रतिशत है. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि परिसीमन मुस्लिम-बहुल सीटों की संख्या को कम करने के लिए किया गया था, जिससे स्वदेशी समुदायों को राजनीतिक रूप से लाभ हो.

हालांकि, लोकसभा चुनावों में एआईयूडीएफ की हार से पता चलता है कि मुस्लिम मतदाता एक ऐसी पार्टी के लिए अपने वोटों को विभाजित करने के लिए तेजी से अनिच्छुक हैं, जो राज्य और राष्ट्रीय दोनों ही मंचों पर खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष करती है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) जैसे विवादास्पद मुद्दों पर एआईयूडीएफ के रुख ने भी मुस्लिम मतदाताओं के बीच मोहभंग कर दिया है. कई लोगों का मानना है कि पार्टी वास्तव में सामुदायिक चिंताओं को संबोधित करने के बजाय राजनीतिक लाभ पर अधिक केंद्रित है.

भविष्य की संभावनाएं

अगले दो वर्षों को देखते हुए, असम में राजनीतिक गतिशीलता में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं. अगर कांग्रेस अपनी हालिया सफलताओं को जारी रखती है और ऊपरी असम में महत्वपूर्ण स्वदेशी वोट हासिल करने में सफल होती है, तो यह सत्तारूढ़ भाजपा के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकती है.

भाजपा, जो वर्तमान में विधानसभा सीटों के मामले में आगे चल रही है, वह आत्मसंतुष्ट होने का जोखिम नहीं उठा सकती. विकसित हो रहा मतदाता आधार, विशेष रूप से कांग्रेस के पीछे मुस्लिम वोटों का एकजुट होना, एक संभावित बदलाव का संकेत देता है, जो असम के राजनीतिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित कर सकता है.

निष्कर्ष के तौर पर, धुबरी में रॉकीबुल हुसैन की ऐतिहासिक जीत सिर्फ एक व्यक्तिगत जीत से कहीं ज्यादा हैय यह असम में एक व्यापक राजनीतिक पुनर्संयोजन का प्रतिनिधित्व करती है. अल्पसंख्यक वोटों का एकीकरण, स्वदेशी निर्वाचन क्षेत्रों में रणनीतिक लाभ के साथ, असम की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत कर सकता है, जो भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती देगा और राज्य के भविष्य को नया आकार देगा.

(झुमुर देब गुवाहाटी में स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं.)