- हरजिंदर
एक तरफ तो लोग आमतौर पर यह कहते हुए सुनाई दे जाते हैं कि पल भर में दुनिया बदल जाती है. दूसरी तरफ यह भी सुनाई दे जाता है कि आधे घंटे की ही तो बात है, आधे घंटे में क्या हो जाएगा. लेकिन यह आधा घंटा ही इस समय केरल सरकार को परेशान कर रहा है.
कुछ समय पहले केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को यह आदेश दिया था कि वह यह सुनिश्चित करे कि स्कूलों में पढ़ने वाले आठवी, नौवीं और दसवीं के छात्र एक सेशन में कम से कम 1100 घंटे की पढ़ाई करें.
यह कैसे किया जाए सरकार ने इसके लिए कुछ शनिवार की छुट्टी खत्म कर दी और सरकारी स्कूलों का समय आधे घंटे बढ़ा दिया. 15 मिनट सुबह और 15 मिनट शाम को.
पहले ये स्कूल सुबह दस बजे खुलते थे. अब पौने दस बजे खुलने लगे. चार बजे होने वाली छुट्टी को सवा चार बजे कर दिया गया. अल्पसंख्यकों को परेशानी न हो इसके लिए यह तय हुआ कि यह बढ़ा हुआ समय शुक्रवार केा नहीं लागू होगा.
जाहिर है इसका विरोध शुरू हो गया. कहा जाने लगा कि सरकार अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का काम कर रही है. बात इतनी ही रहती तो सरकार इससे निपट लेती. समय बढ़ाने का विरोध तुरंत ही दूसरी तरफ से भी होने लग गया.
समस्त केरला जन-जयाथल उलेमा नाम के संगठन ने इस तरह से टाईम बढ़ाने का विरोध किया. उसका तर्क था कि इस तरह से समय बढ़ाने का असर उन बच्चों पर पड़ेगा जो स्कूल से पहले सुबह या स्कूल के बाद शाम को मदरसों में भी जाते हैं.
स्कूली शिक्षा के बाद वे धार्मिक शिक्षा भी ग्रहण करते हैं. इस संगठन की गिनती केरल की माक्र्सवादी सरकार के समर्थकों में होती है. कुछ ही दिन पहले इस संगठन के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पेन्नरई विजयन शामिल हुए थे.
बात यहीं नहीं रुकी. समस्त केरला सुन्नी स्टूडेंट फेडरेशन भी इस मांग के समर्थन में खड़ा हो गया. कुछ और छोटे बड़े संगठन भी यही सब दोहराने लगे.सरकार के सामने अब परेशानी है.
एक तरफ हाईकोर्ट का आदेश है. दूसरी तरफ इस तरह के विरोध. किसी एक को भी नजरंदाज करना मुश्किल हो रहा है. केरल के शिक्षा मंत्री हालांकि अभी भी समय बढ़ाने के तर्क का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उनके सुर पहले के मुकाबले नरम पड़ गए हैं. अब वे कह रहे हैं कि इस मसले पर बातचीत की जाएगी.
सरकारें जब कोई फैसला करती हैं तो उनसे उम्मीद की जाती है कि वे उससे संबंधित सभी पक्षों से बातचीत करेगी. इसके लिए अंग्रेजी का शब्द इस्तेमाल होता है स्टेक होल्डर्स.
माना जाता है कि कोई भी फैसला सभी स्टेक-होल्डर्स की राय लेने के बाद ही होना चाहिए. मुमकिन है कि सरकार ने ऐसा किया भी हो. लेकिन यहां सवाल कुछ और है. क्या शिक्षा के मामले में धार्मिक संगठनों को भी स्टेक-होल्डर्स मानना चाहिए ?
यहां तो सिर्फ स्कूल की टाईमिंग का ही मामला है, लेकिन अगर ऐसे ही होने लगा तो हो सकता है कि आगे जाकर इसके चलते बहुत खराब अनुभवों से भी गुजरना पड़े.
हमें पता नहीं है कि केरल सरकार इस पर आगे जाकर क्या फैसला करेगी. उम्मीद है कि जो भी फैसला होगा उसका कोई बुरा असर बच्चों शिक्षा पर नहीं पड़ेगा।.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
ALSO READ एक जरूरी विमर्श की शर्त