पितृपक्ष मेला: बगैर मोहम्मद मोइनुद्दीन के पितरों को मोक्ष कहां !

Story by  जितेंद्र पुष्प | Published by  [email protected] | Date 11-09-2022
पितृपक्ष मेला: बगैर मोहम्मद मोइनुद्दीन के पितरों को मोक्ष कहां !
पितृपक्ष मेला: बगैर मोहम्मद मोइनुद्दीन के पितरों को मोक्ष कहां !

 

जितेंद्र पुष्प / गया ( बिहार )

मोक्ष नगरी गयाधाम स्थित विष्णुपद मंदिर में गैर हिंदुओं का प्रवेश भले वर्जित हो, पर बिना मुसलमानों के सहयोग के यहां पूर्वजांे को मोक्ष मिलना थोड़ा मुश्किल है. वजह है, श्राद्धकर्म, पिंडदान और पूर्वजों के तर्पण में मुसलमानों के एक वर्ग का प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सहयोग. यहां तक कि उनके द्वारा उत्पादित पूजन सामग्रियां भी पिंडदान के दौरान इस्तेमाल की जाती हैं.

विष्णुपद मंदिर से महज दो किलोमीटर के फासले पर बस है छठु बिगहा गांव. विष्णुपद मंदिर से लगे लखनपुरा से छठु विगहा तक 30 एकड़ से अधिक भूमि पर फूलों की खेती, वर्षों से हो रही है.
 
गया पॉलिटेक्निक कॉलेज के उत्तर सटे छठु विगहा निवासी 62 वर्षीय मोहम्मद मोइनुद्दीन के वंशज तीन पुश्त से करीब फूलों की खेती करते आ रहे हैं. इनके खेतों में बेला, गुलाब, गेंदा, ओढहल, कुंद सहित अन्य कई किस्म के फूल और तुलसी के पौधे उगाए जाते हैं. 
 
gaya
 
मोहम्मद मोइनुद्दीन बताते हैं कि उनके खेतों में उपजे फूल और तुलसी विष्णुपद मंदिर, मंगलागौरी मंदिर सहित अन्य गया के अन्य मंदिरों में चढ़ते हैं. मंगला गौरी मंदिर में मां मंगला का श्रृंगार उनके खेतों के फूलों से वर्षों से होता आ रहा है. इस को लेकर कभी किसी तरह का मतभेद नहीं हुआ.
 
हाल में, बिहार प्रदेश के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री और गया जिला के प्रभारी मंत्री मोहम्मद इसराइल मंसूरी के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ गया के विष्णुपद मंदिर में जाने पर विवाद हो गया था.
 
चूंकि विष्णुपद मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर पाबंदी है, इस लिए पितृपक्ष मेला शुरू होने से कुछ दिनों पहले एक वर्ग ने इसे तूल देने की कोशिश की, जिसे बाद में सुलझा लिया गया.
 
वैसे, विष्णुपद मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही गैर हिंदुओं के प्रवेश निषेध की सूचना पट्टी लगी है. आरोप है कि सूबे के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री मोहम्मद इस्माइल मंसूरी जब नीतीश कुमार के साथ विष्णुपद मंदिर जा रहे थे, तब गयावाल पंडों, हिंदू संगठनों और सुरक्षा प्रहरियों ने उन्हें नहीं रोका.

मगर उनके लौटते ही मामले ने तूल पकड़ लिया. बाद में विष्णुपद मंदिर को गंगाजल व अन्य सामग्रियों से धोने के उपरांत धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रोच्चार से पवित्र किया गया.
 
gaya
 
हालांकि, मोहम्मद मोइनुद्दीन इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते. वह बताते हैं, मेरे दादा सजलु मियां ने मंगलागौरी के पुजारी तारा गुरु जी की प्रेरणा से अपनी सात एकड़ जमीन में फूल की खेती शुरू की थी.
 
पहले इस जमीन में आम, अमरूद, बेर, निंबू, पपीते की खेती होती थी. फूल की खेती की शुरुआत उनके दादा जी ने ओढहुल से की. चूंकि ओढहुल के फूल से मां मंगला गौरी का श्रृंगार होता है. तब से आज तक उनके खेत के फूल से ही मां मंगला गौरी के श्रृंगार का सिलसिला चला आ रहा है.
 
दादाजी ने फूल की खेती की शुरुआत देश की आजादी से पहले 1942 में की थी. उनके बाद मेरे पिता अलीमुद्दीन फूलों की खेती करने लगे. पितृपक्ष सहित अन्य मौके पर फूलों की बढ़ती मांग को लेकर 1975 में खेती का विस्तार किया. 
 
गेंदा, गुलाब, बेला, चमेली, कुंद और भगवान विष्णु पर चढ़ने वाली तुलसी की खेती शुरू की. उन्होंने बताया कि फूलों की खेती नगदी और लाभदायक फसल है. मोक्षधाम गया में सालों भर फूल की मांग रही है. पितृपक्ष मेले के समय मांग कई गुणा बढ़ जाती है.
 
पूर्वजों की मृत आत्मा को तृप्त करने के लिए पिंड के साथ फूल और तुलसी महत्वपूर्ण पूजन सामग्री होती है. वह बताते हैं पिताजी के इंतकाल के बाद अपने पुरखों के इस विरासत को वह और उसके भाई ने संभाल रखा है.
 
gaya
 
उनकी उम्र 62 साल से अधिक हो चुकी है. ऐसे में इस विरासत को संभालने की जवाबदेही मेरे बेटे रहीमुद्दीन पर है. वह बताते हैं, प्रत्येक दिन माली आकर खेतों में लगे फूलों को तोड़कर इसे बेचते हैं, जिससे दोनों को आमदनी हो जाती है.
 
मोक्षधाम गया में 17 दिवसीय पितृपक्ष मेला शुरू

पुनपुन नदी अथवा गोदावरी सरोवर में पिंडदान के साथ भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि यानी शुक्रवार से 17 दिवसीय (त्रै पाक्षिक) पितृपक्ष महासंगम की शुरुआत हो गई है.
 
देश-विदेश से आने वाले जो श्रद्धालु सीधे गयाजी पहुंचते हैं वे सभी शहर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित गोदावरी सरोवर पर पिंडदान, श्राद्ध कर्म व तर्पण अपने कुल पंडा के निर्देशन में पूरा करते हैं.
 
gaya
 
श्री विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के सचिव गजाधर लाल पाठक ने कहा कि पुनपुन नदी में माथा मुंडन कराने के बाद श्रद्धालु त्रै पाक्षिक पिंडदान के लिए गयाजी आते हैं. धार्मिक ग्रंथों व पुराणों के अनुसार, माथा मुंडन कराने वाले श्रद्धालुओं को तीर्थ के समान फल की प्राप्ति होती है.
 
गया में 17 दिवसीय के अलावा एक दिवसीय, तीन दिवसीय, पांच दिवसीय पिंडदान का भी विधान है. यहां पहले 365 पिंडवेदियां, सरोवर व दर्शनीय स्थल थे. समय के साथ कई पिंडवेदियां व सरोवर विलुप्त हो गए.
 
अब महज 54 पिंडवेदियां व सरोवर बचे हैं, जहां पिंडदान व तर्पण होता है. 17 दिवसीय पिंडदान के लिए आए श्रद्धालु हर दिन अलग-अलग पिंडवेदी व सरोवर में अपने पितरों की मोक्ष कामना को लेकर पिंडदान व तर्पण करते हैं.
 
शुक्रवार को पहले दिन का श्राद्ध कार्य संपन्न हो गया. पुनपुन में श्राद्धकार्य करने के बाद श्रद्धालु काफी संख्या में रेल, सड़क मार्ग से शुक्रवार की शाम से ही गयाजी पहुंचने लगे हैं.
 
(तस्वीरें: रूपक सिन्हा)