100 years of Kakori Train Action: An unmatched story of harmony and brotherhood between Ashfaq-Bismil
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
आजादी की लड़ाई की एक ऐतिहासिक घटना ''काकोरी ट्रेन एक्शन'' के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान एक ही जगह हवन करते और नमाज पढ़ते थे और एक ही थाली में खाना खाते थे. वे हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहते थे। अशफाक और बिस्मिल की सौहार्द व भाईचारे की यह क्रांतिकारी कहानी मिसाल के तौर पर याद की जाती है.
नौ अगस्त, 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के क्रांतिकारियों बिस्मिल, अशफाक उल्लाहह खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन को रोककर गार्ड के केबिन से ब्रिटिश खजाने को लूट लिया था.
ब्रिटिश सरकार ने इस योजना को अंजाम देने के लिए चारों को 19 दिसंबर, 1927 को फांसी दे दी थी.
अशफाक उल्लाहह खान के बड़े भाई रियासत उल्लाहह खान के पोते अफाक उल्लाहह खान (55) ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, "उन दिनों, जब बिस्मिल साहिब शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में हवन करते थे, अशफाक उल्लाह साहब उसी स्थान पर नमाज पढ़ते थे.
उन्होंने याद किया कि वे दोनों न केवल एक ही थाली में खाना खाते थे, बल्कि हर समय एक-दूसरे के साथ खड़े भी रहते थे.
अफाक उल्लाहह ने कहा, "काकोरी ट्रेन एक्शन से कुछ महीने पहले, शाहजहांपुर में आर्य समाज मंदिर पर भीड़ के धावा बोलने के बाद सांप्रदायिक दंगा हुआ था। तब अशफाक उल्लाहह साहब भीड़ का सामना करने वाले पहले व्यक्ति थे.
उन्होंने कहा, "अशफाक साहब ने बवाल करने वालों को दूर रहने की चेतावनी दी थी और कहा था कि अगर ऐसा न हुआ तो वह गोली चलाने से नहीं हिचकिचाएंगे.
उन्होंने यह भी याद किया कि शुरुआत में, अशफाक उल्लाहह काकोरी ट्रेन एक्शन को अंजाम देने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे लोगों में गलत संदेश जाएगा.