क्या है खुला, मुस्लिम औरतों की कैसे मदद कर रही है इमारत ए शरिया ? जानिए सब कुछ !

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 10-09-2022
मुख्य काजी मुफ्ती मोहम्मद अंजार आलम कासमी
मुख्य काजी मुफ्ती मोहम्मद अंजार आलम कासमी

 

सेराज अनवर/ पटना

मुस्लिम औरतों को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं.आम धारणा है कि इस्लाम में महिलाओं को उतना अधिकार नहीं है,जितना मर्दों को है.यह बिल्कुल निराधार है.इस्लाम में महिलाओं को पुरुषों के समान अख्तियार हासिल है.अब देखिए,पुरुषों को तलाक का अधिकार है तो मुस्लिम औरतों को ’खुला’का हथियार दिया गया है.दीगर बात है कि खुला के मामले में महिलाओं को कम पता है.

मुस्लिम समाज को बदनाम करने के लिए तलाक का हौआ तो खूब खड़ा किया जाता है, पर यह कोई नहीं बताता कि खुला भी इस्लाम में है. यह औरतों के लिए तलाक के बराबर ही है.
 
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आवेदन की जांच करते काजी

बिहार में औरतें उन मर्दों से खुला ले रही हैं,जिनके शौहर का रवैया पत्नी के प्रति ठीक नहीं है. काजी की अदालत में पहुंच कर मियां-बीवी बीच सुलह भी हो रहे हैं.चार राज्यों के मुसलमानों के प्रतिनिधित्व संगठन  इमारत ए शरिया में इसके लिए बजाबता दारूल कजा स्थिति है.
 
पिछले एक साल के रिकॉर्ड के मुताबिक, पटना के फुलवारीशरीफ स्थित इस धार्मिक संस्था में 118 खुला के मामले हल हुए हैं.कुल मामले 572 आए थे.इसमें तलाक के मामले भी शामिल हैं. यहां शनिवार और रविवार को विशेष रूप से खुला और तलाक के मामले निपटाए जाते हैं.
 
खुला लिया कैसे जाता है?

खुुला के लिए दारूल कजा में दरख्वास्त दी जाती है. इसके साथ फीस के बतौर 500 रुपये जमा कराया जाता है.फिर दरख्वास्त की तस्दीक होती है.उसके बाद तारीख पड़ती है.
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रिकॉर्ड रूप में खुला के मामले

उस तारीख पर काजी के सामने दोनों पक्ष को हाजिर होना होता है.इसमें किसी की सिफारिश नहीं चलती.चाय-पानी से भी परहेज किया जाता है.चाहे रिश्तेदार ही क्यों न हो.
 
फैसले में पूरी ईमानदारी बरती जाती है.पहले दोनों पक्ष में सुलह की पहल होती है.सुलह नहीं होने पर फैसला सुनाया जाता है.हंगामा से बचने के लिए फैसला लिखित डाक से भेजा जाता है.
 
अक्सर फैसले पर एतराज नहीं होता.क्योंकि, दरख्वास्त के वक्त ही शपथ ले लिया जाता है कि काजी का जो फैसला होगा दोनों पक्ष को काबिल ए कबूल होगा.
 
न्याय को पारदर्शी बनाने के लिए ऊपरी अदालत में अपील का अख्तियार दिया जाता है.नायब काजी के फैसले के खिलाफ काजी और काजी के विरुद्ध अमीर ए शरीयत के पास अपील की जा सकती है.
 
पिछले एक साल में एक बार काजी के खिलाफ अमीर ए शरीयत के यहां अपील की गई, लेकिन शिकायत सही नहीं पाई गई.दारुल कजा का पैटर्न भारतीय अदालत की तरह ही है.हालांकि.मुख्य काजी मुफ्ती मोहम्मद अंजार आलम कासमी कहते हैं कि दारूल कजा समानांतर अदालत नहीं है.
 
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आवेदन पर जांच प्रक्रिया शुरू

तलाक के मामले नहीं लिए जाते

दारूल कजा तलाक के मामला को नहीं लेता.मुफ्ती अंजार आलम बताते हैं कि यदि कोई पुरुष तलाक लेना चाहता है तो उनकी दरख््वासत नहीं ली जाती.उसे शरई तौर पर तलाक देने का अख्तियार है.
 
मुफ्ती अंजार के मुताबिक, इस्लामी कैलेंडर 1443 हिजरी साल 11 अगस्त 2021 से 30 जुलाई 2022 तक दारूल कजा में कुल 572 मामले आए,जिसमें अधिकतर खुला के थे.
 
118 खुला के मामले में फैसले आ चुके हैं. शेष में फैसले आने वाले हैं.उन्होंने बताया कि जिस तरह अन्य समस्याओं में बढ़ोतरी हुई है,जाहिर सी बात है खुला के मामले भी बढ़े हैं.फिर भी जनसंख्या की तुलना में बहुत कम है.
 
दारूल कजा सिर्फ मध्यस्थता करती है.हमारा प्रयास सुलह का रहता है.उनका कहना है कि अक्सर लोग यहां से संतुष्ट हो कर जाते हैं.कुरान ,हदीस की रौशनी में निर्णय सुनाए जाते हैं.यहां कोई गार्ड है न पुलिस.बावजूद इसके शांति बनी रहती है.
 
कम खर्च पर मुकदमों का निपटारा

आज जहां देश की अदालतों में हजारों मुकदमे लंबित हैं ,आम आदमी के लिए न्याय सस्ता नहीं रह गया है.वहीं दारूल कजा कम खर्च और कम वक्त में राहत प्रदान करने के साथ अदालतों के बोझ को हलका करने में महती भूमिका निभा रही है.
 
यहां कई बार एक दिन में फैसला होता है.सुबह आए और शाम तक दोनों पक्ष हंसी-खुशी घर लौट गए.मुकदमों का निपटारा इस महीना के उस महीना कम ही होता है.
 
मात्र 500 रुपये फीस भी इसलिए ली जाती है कि डाक और कागज का खर्च निकल सके.उसकी रसीद भी दी जाती है.बहुत गरीब लोगों से यह फीस नहीं ली जाती.
 
काजी अंजार आलम कहते हैं कि आसान तरीके से कम खर्च और कम वक्त में न्याय की यह व्यवस्था कहीं और नहीं मिलेगी.दारूल कजा पर आम आदमी के साथ काफी पढ़े-लिखे लोगों का भी विश्वास है.यहां डॉक्टर,इंजीनियर से लेकर समाज के प्रबुद्ध लोग भी अपने मामले हल कराने आते हैं.
 
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दारूल कजा क्या है?
 
दारूल कजा एक तरह से अदालत है.मगर यह इस्लामी अदालत है.यहां शरीयत की रोशनी में फैसले सुनाए जाते हैं.दारुल कजा में खासतौर से निकाह और तलाक के मामलों की सुनवाई होती है.
 
कभी-कभी विरासत के जायदाद संबंधी मामले भी सुने जाते हैं.कभी एक तो कभी-कभी दोनों पक्ष दारुल कजा में अर्जी देते हैं.मामला दर्ज होने पर दारुल कजा दोनों पक्षों को सुनवाई के लिए बुलाती है.
 
दारू कजा का विस्तार और गैर मुस्लिम मामला

बिहारशरीफ के एक गैरमुस्लिम भी भूमि विवाद का मसला लेकर यहां आ चुके हैं.दारूल कजा के इतिहास में यह पहला मुस्लिम मामला था जिसका समाधान निकाला गया.
 
अभी इमारत ए शरिया के बिहार समेत झारखंड,ओड़िसा और बंगाल में दारूल कजा के 82 ब्रांच कार्यरत हैं.अहमद फैसल रहमानी के अमीर ए शरीयत बनने के बाद 10 नए दारूल कजा खुले हैं.
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फैसला सुनाने के बाद रिकॉर्ड का अध्ययन

कई काजी की है तैनाती

दारूल कजा पूरे सिस्टम से चलता है.अलग से रिकॉर्ड रूम है.मुख्य काजी का अलग चेंबर है,सहायक काजी के लिए भी कमरे हैं.एक हॉल में कई स्टाफ काम करते हैं.
 
सिर्फ फुलवारीशरीफ में 18 स्टाफ की तैनाती है.तीन नायब काजी और तीन सहयोगी काजी भी नियुक्त है.अलग-अलग शाखा में भी काजी कार्यरत हैं.मगर फैसले का अधिकार मुख्य काजी मुफ्ती मोहम्मद अंजार आलम कासमी को ही है.
 
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सुनवाई के लिए पहुंचे लोग

यानी आखरी आदेश इनका ही मान्य है.उनकी मदद के लिए फुलवारी शरीफ दारुल कजा के मुख्य कार्यालय में मौलाना वसी अहमद कासमी,मौलाना सोहेल अख्तर कासमी,मौलाना मुजीब उर रहमान कासमी और सहयोगी के रूप में मौलाना मुफ्ती मुजीब उर रहमान कासमी,इम्तियाज अहमद कासमी,शमीम अकरम रहमानी नियुक्त हैं.