क्या महेंद्र सिंह धोनी ने बिगाड़ा इरफान पठान का करियर ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-08-2025
Did Mahendra Dhoni ruin Irfan Pathan's career?
Did Mahendra Dhoni ruin Irfan Pathan's career?

 

मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली

भारतीय क्रिकेट सिर्फ़ मैदान पर खेले जाने वाला खेल नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज का एक ऐसा आईना भी है, जिसमें लोगों की भावनाएँ, सपने और गॉसिप तक झलकती हैं. क्रिकेट के मैदान पर बल्लेबाज के हर चौके-छक्के, गेंदबाज़ के हर विकेट और कप्तान के हर फ़ैसले पर नज़र रखने वाली इस जनता को हमेशा से यह जानने में भी गहरी दिलचस्पी रही है कि टीम के भीतर क्या चल रहा है. अक्सर खिलाड़ी और कप्तान के बीच के रिश्ते, टीम चयन को लेकर होने वाले मतभेद और खेमेबाज़ी जैसी बातें चर्चा का विषय बनती रही हैं.

इसी क्रम में एक बार फिर सुर्खियों में हैं भारतीय क्रिकेट के ‘कैप्टन कूल’ महेंद्र सिंह धोनी. धोनी को दुनिया का सबसे सफल कप्तान माना जाता है, जिन्होंने न सिर्फ़ भारत को दो वर्ल्ड कप दिलाए बल्कि टीम इंडिया को टेस्ट क्रिकेट में नंबर वन रैंकिंग पर भी पहुँचाया.

उनकी शांत प्रवृत्ति और मैदान पर न हार मानने वाला रवैया उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का प्रिय बनाता है. लेकिन, इस चमकदार छवि के पीछे बीते कुछ समय से एक अलग बहस छिड़ी हुई है—क्या धोनी अपने कुछ साथियों के करियर पर ग़लत असर डालते रहे ?

सहवाग के बाद धोनी पर इरफान को टीम से बाहर करने का आरोप

सहवाग का आरोप और धोनी की चुप्पी

यह विवाद तब शुरू हुआ जब भारत के विस्फोटक ओपनर वीरेंद्र सहवाग ने एक पॉडकास्ट पर कहा कि उन्हें 2007-08 की ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ में अचानक टीम से बाहर कर दिया गया था.

सहवाग ने साफ़ शब्दों में आरोप लगाया कि धोनी की कप्तानी में उनके जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों को किनारे किया गया. सहवाग का यह बयान सिर्फ़ आरोप भर नहीं था, बल्कि इसमें एक बड़े खिलाड़ी की वेदना भी झलक रही थी. उन्होंने कहा, “पाँच मैच खेलने के बाद अचानक मुझे प्लेइंग इलेवन से बाहर कर दिया गया. तब मुझे लगा कि अगर मुझे मौका ही नहीं मिल रहा, तो वनडे क्रिकेट खेलने का कोई अर्थ नहीं है.”

सहवाग ने यह भी बताया कि उस कठिन दौर में उन्होंने सचिन तेंदुलकर से संन्यास लेने की बात तक कह दी थी. सचिन ने उन्हें समझाया कि हर खिलाड़ी के करियर में उतार-चढ़ाव आते हैं और भावनाओं में बहकर निर्णय नहीं लेना चाहिए.

सचिन की यह सलाह मानकर सहवाग ने क्रिकेट जारी रखा, लेकिन उनके शब्दों ने यह सवाल ज़रूर खड़ा कर दिया कि क्या धोनी के फ़ैसले हमेशा निष्पक्ष रहे?
इरफ़ान पठान का दर्द

सहवाग के बयान के ठीक अगले दिन पूर्व ऑलराउंडर इरफ़ान पठान ने भी वही मुद्दा उठाया. इरफ़ान, जिन्होंने अपनी स्विंग गेंदबाज़ी और उपयोगी बल्लेबाज़ी से कई बार भारत को मैच जिताया, उन्होंने कहा कि धोनी की कप्तानी में उन्हें लगातार नज़रअंदाज़ किया गया.

एक इंटरव्यू में इरफ़ान ने खुलासा किया, “मैं और यूसुफ (पठान) ने श्रीलंका के ख़िलाफ़ एक मैच जिताया था। आखिरी 27-28 गेंदों में हमें 60 रन चाहिए थे और हम जीत गए. लेकिन इसके बाद भी मुझे बाहर कर दिया गया. न्यूज़ीलैंड दौरे पर लगातार तीन मैचों तक मैं बेंच पर बैठा रहा. चौथा मैच बारिश से धुल गया और उसके बाद मैं टीम से ही बाहर हो गया.”

इरफ़ान ने यह भी बताया कि उन्होंने कोच गैरी कर्स्टन से कारण पूछा, तो उन्हें जवाब मिला,“कुछ बातें मेरे नियंत्रण में नहीं हैं.” इरफ़ान को समझ आ गया कि असली निर्णय कप्तान के हाथ में है और उस समय कप्तान धोनी ही थे.

धोनी की चुप्पी और सोशल मीडिया का तूफ़ान

इन आरोपों पर अब तक धोनी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. यही वजह है कि सोशल मीडिया पर यह गॉसिप लगातार गर्म बनी हुई है. ट्विटर (अब एक्स) और इंस्टाग्राम पर फैन्स बँट गए हैं.

एक पक्ष कह रहा है कि धोनी ने टीम के भविष्य को ध्यान में रखकर कठिन फ़ैसले लिए, जबकि दूसरा पक्ष मानता है कि सहवाग और इरफ़ान जैसे खिलाड़ियों के साथ अन्याय हुआ.

धोनी के समर्थक कहते हैं कि हर कप्तान को यह अधिकार है कि वह टीम संयोजन के अनुसार खिलाड़ियों का चयन करे. अगर उस समय धोनी ने युवाओं पर भरोसा जताया, तो उसका फल भी भारत ने देखा—2011 का वर्ल्ड कप, 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी और टेस्ट में नंबर वन पोज़ीशन. दूसरी ओर आलोचक यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्या इन सफलताओं की कीमत कुछ खिलाड़ियों के करियर से चुकाई गई?

सहवाग-इरफ़ान की कहानी में छुपा सच

दरअसल, क्रिकेट सिर्फ़ रन और विकेट का खेल नहीं है. यह टीम के भीतर राजनीति, चयनकर्ताओं की सोच और कप्तान की प्राथमिकताओं का भी खेल है. सहवाग और इरफ़ान के आरोप इस बात की ओर इशारा करते हैं कि हर कप्तान अपनी रणनीति के हिसाब से टीम बनाता है.

इरफ़ान का दर्द इस बात से और गहरा हो जाता है जब वह कहते हैं, “मेरे समय में ऑलराउंडरों की वैल्यू उतनी नहीं थी जितनी आज है. उस समय सातवें नंबर पर एक बैटिंग ऑलराउंडर चाहिए था. मैं बॉलिंग ऑलराउंडर था, जबकि मेरा भाई यूसुफ बैटिंग ऑलराउंडर था. टीम में जगह सिर्फ़ एक के लिए थी.”

यह बयान साफ़ करता है कि भारतीय क्रिकेट का माहौल समय के साथ बदलता रहा है. आज हार्दिक पंड्या और रविंद्र जडेजा जैसे खिलाड़ियों को वही अहमियत दी जा रही है, जो शायद इरफ़ान के समय नहीं दी गई.

धोनी की कप्तानी पर बहस

महेंद्र सिंह धोनी को क्रिकेट इतिहास का सर्वश्रेष्ठ रणनीतिकार कहा जाता है. उनकी कप्तानी में लिए गए साहसिक निर्णयों की मिसाल दी जाती है—चाहे 2007 का टी20 वर्ल्ड कप हो, 2011 का वनडे वर्ल्ड कप या फिर 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी. लेकिन साथ ही, यह भी सच है कि उनकी कप्तानी में कई सीनियर खिलाड़ियों को अचानक

टीम से बाहर बैठना पड़ा..

सहवाग, गौतम गंभीर, युवराज सिंह और इरफ़ान पठान जैसे नाम ऐसे हैं जिनके करियर के ढलान में धोनी की भूमिका को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. हालांकि धोनी के प्रशंसक इसे टीम के भविष्य के लिए ज़रूरी फैसले मानते हैं.

राहुल द्रविड़, एमएस धोनी और वीरेंद्र सहवाग के साथ, चौथा टेस्ट, एडिलेड, पाँचवाँ दिन, 28 जनवरी, 2012

क्रिकेट की गॉसिप संस्कृति

यह पूरा विवाद हमें यह भी बताता है कि भारतीय क्रिकेट में ‘गॉसिप कल्चर’ कितना मज़बूत है. मैदान के बाहर खिलाड़ी किससे मिल रहे हैं, किस फिल्म अभिनेत्री के साथ उनके रिश्ते हैं, किस कप्तान से उनकी पटरी नहीं बैठ रही.ये बातें आम जनता से लेकर मीडिया तक में उतनी ही चर्चा पाती हैं जितनी मैदान पर खेले गए मैच.

धोनी का नाम जब-जब ऐसे विवादों में घसीटा गया है, उन्होंने चुप्पी साधी है. शायद यही उनकी ‘कैप्टन कूल’ छवि की असली ताक़त भी है. लेकिन यह भी सच है कि उनकी चुप्पी से गॉसिप और अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि लोग अनुमान लगाने लगते हैं कि आखिर असली कहानी क्या है.

नतीजा क्या निकलता है?

सहवाग और इरफ़ान पठान के बयान एक बड़ी बहस को जन्म देते हैं,क्या कप्तान को इतना अधिकार होना चाहिए कि वह खिलाड़ियों के करियर पर निर्णायक असर डाल सके? या फिर चयन और टीम संयोजन का निर्णय अधिक पारदर्शी होना चाहिए?

आज जब भारतीय क्रिकेट पूरी दुनिया में सबसे लोकप्रिय है, तब यह ज़रूरी है कि खिलाड़ियों के अनुभव और शिकायतों को भी गंभीरता से लिया जाए. क्योंकि आखिरकार, टीम सिर्फ़ कप्तान की नहीं, बल्कि पूरे देश की होती है.

धोनी का क्रिकेट करियर भले ही बेमिसाल रहा हो, लेकिन उनके फ़ैसलों की छाया आज भी चर्चा का हिस्सा है. सहवाग और इरफ़ान जैसे खिलाड़ियों के आरोपों ने यह साबित कर दिया है कि क्रिकेट सिर्फ़ खेल नहीं, बल्कि भावनाओं और राजनीति का भी मैदान है.