बेसल (स्विट्जरलैंड)
स्विट्जरलैंड की बेसल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अणु (मॉलिक्यूल) का निर्माण किया है, जो पौधों की प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) प्रक्रिया से प्रेरित है और सूरज की रोशनी की मदद से चार चार्ज (दो धनात्मक और दो ऋणात्मक) एक साथ संग्रहित कर सकता है। यह खोज कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण (Artificial Photosynthesis) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
इस नई तकनीक की खासियत यह है कि यह कम तीव्रता वाली रोशनी में भी काम करती है, जिससे यह वास्तविक परिस्थितियों में सौर ईंधन (Solar Fuel) उत्पादन के और करीब पहुंच गई है।
प्रकृति में पौधे सूरज की रोशनी का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को ऊर्जा-समृद्ध शर्करा (Sugar Molecules) में बदलते हैं। जानवर और इंसान इन कार्बोहाइड्रेट्स को जलाकर ऊर्जा प्राप्त करते हैं, जिससे फिर से CO₂ बनती है — और यह एक बंद चक्र बन जाता है।
वैज्ञानिकों का लक्ष्य इसी प्रक्रिया की नकल कर सूरज की रोशनी से कार्बन-न्यूट्रल ईंधन बनाना है, जैसे हाइड्रोजन, मिथेनॉल या सिंथेटिक पेट्रोल। इन्हें जलाने पर उतना ही CO₂ निकलता है, जितना इनको बनाने में खपत हुआ था — यानी ये प्रदूषण रहित ईंधन हो सकते हैं।
प्रोफेसर ओलिवर वेंगर और उनके डॉक्टोरल छात्र मैथिस ब्रांडलिन ने जर्नल Nature Chemistry में अपनी इस नई खोज को प्रकाशित किया है।
उन्होंने ऐसा मॉलिक्यूल (अणु) बनाया है जो प्रकाश पड़ने पर दो पॉजिटिव और दो नेगेटिव चार्ज को एक साथ स्टोर कर सकता है। यह स्टोरेज इसलिए अहम है क्योंकि इन चार्ज को बाद में रासायनिक प्रतिक्रियाओं में उपयोग किया जा सकता है — जैसे कि पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करना।
इस अणु को पांच भागों में बांटा गया है, जो आपस में जुड़े हुए हैं और प्रत्येक का अलग कार्य है:
एक छोर के दो भाग इलेक्ट्रॉन छोड़ते हैं (पॉजिटिव चार्ज बनता है)
दूसरी ओर के दो भाग इन्हें ग्रहण करते हैं (नेगेटिव चार्ज बनता है)
बीच का भाग सूरज की रोशनी को पकड़ता है और रिएक्शन चालू करता है
इस प्रक्रिया में दो चरणों में प्रकाश डाला जाता है।पहले फ्लैश से एक पॉजिटिव और एक नेगेटिव चार्ज उत्पन्न होता है, जो अणु के दोनों छोरों पर पहुंच जाते हैं।
दूसरे फ्लैश से वही प्रक्रिया दोबारा होती है, जिससे कुल मिलाकर चार चार्ज (2+ और 2-) बनते हैं।
ब्रांडलिन के अनुसार,“यह चरणबद्ध एक्साइटेशन (Stepwise excitation) हमें कमज़ोर रोशनी में भी प्रतिक्रिया संभव बनाने में सक्षम बनाता है। अब हम सूरज की सामान्य रोशनी की तीव्रता के काफी करीब आ गए हैं।”
पहले की शोधों में केवल तेज लेज़र लाइट की मदद से यह संभव था, जो व्यवहारिक उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं थी।
ब्रांडलिन ने यह भी जोड़ा कि,“इस अणु में उत्पन्न चार्ज काफी समय तक स्थिर रहते हैं, जिससे उन्हें आगे की रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।”
हालांकि अभी तक यह अणु पूरी तरह से कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण प्रणाली के रूप में कार्य नहीं कर रहा है, लेकिन यह खोज इलेक्ट्रॉन ट्रांसफर (electron transfer) की समझ को बेहतर बनाती है, जो भविष्य के हरित ऊर्जा (Green Energy) समाधानों के लिए बेहद जरूरी है।