नई दिल्ली
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि के कारण विमान उड़ान भरने वाली ऊंचाई पर वायुमंडल अधिक अस्थिर हो सकता है, जिससे हवा में टर्बुलेंस की संभावना बढ़ेगी और उड़ानों को खतरा होगा।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के शोधकर्ताओं ने अपने पिछले अध्ययन के निष्कर्षों का विस्तार किया है, जिसमें यह बताया गया था कि गंभीर एयर टर्बुलेंस 1979 में 17.7 घंटे से बढ़कर 2020 में 27.4 घंटे हो गई है, यानी 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से उच्च ऊंचाई पर बहने वाली तेज हवाओं वाली धाराओं (जेट स्ट्रीम्स) में वायु के प्रवाह में ज़ोरदार बदलाव (विंड शियर) उत्पन्न हो रहा है।
इस नए अध्ययन, जिसे Journal of the Atmospheric Sciences में प्रकाशित किया गया है, के अनुसार, 2015 से 2100 तक विंड शियर में 16-27 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है और वायुमंडल 10-20 प्रतिशत तक कम स्थिर हो सकता है। इस प्रभाव से उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्ध प्रभावित होंगे।
लीड लेखक जोआना मेडेरोस, जो यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में पीएचडी शोधकर्ता हैं, ने कहा, “बढ़ा हुआ विंड शियर और घटती स्थिरता मिलकर क्लियर-एयर टर्बुलेंस (CAT) के अनुकूल परिस्थितियां बनाते हैं – जो अचानक और अनदेखे झटकों के रूप में उड़ान को हिला सकते हैं। ये टर्बुलेंस तूफानों के कारण नहीं होती, इसलिए रडार पर दिखाई नहीं देतीं, जिससे पायलटों के लिए इसे टालना मुश्किल हो जाता है।”
टीम ने 26 वैश्विक जलवायु मॉडलों का उपयोग कर अध्ययन किया कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि जेट स्ट्रीम्स को प्रभावित करती है, खासकर विमान के सामान्य उड़ान ऊंचाई (लगभग 35,000 फीट या 10 किलोमीटर) पर।
अध्ययन में मध्यम और उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों दोनों का विश्लेषण किया गया, जिसमें उच्चतम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मामलों में सबसे अधिक प्रभाव दिखे।
शोध निष्कर्ष बताते हैं कि “क्लियर-एयर टर्बुलेंस के बनने की संभावनाएं बढ़ रही हैं, जो गर्म होते जलवायु में हवाई सुरक्षा और परिचालन के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करता है।”
सह-लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर पॉल विलियम्स ने कहा, “हाल के वर्षों में गंभीर टर्बुलेंस की घटनाओं से गंभीर चोटें और कुछ दुखद मौतें हुई हैं। पायलटों को सीट बेल्ट साइन लंबे समय तक चालू रखना पड़ सकता है और उड़ान के दौरान केबिन सेवा स्थगित करनी पड़ सकती है, लेकिन एयरलाइनों को टर्बुलेंस का पता लगाने के लिए नई तकनीक की भी जरूरत होगी ताकि वे यात्रियों की सुरक्षा कर सकें क्योंकि आकाश और अधिक अस्थिर होता जा रहा है।”