श्रीनगर
कश्मीर घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों ने पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ गणेश चतुर्थी (जिसे पारंपरिक रूप से विनायक छोरम कहा जाता है) का त्योहार मनाना शुरू कर दिया है।
इस पर्व की शुरुआत बुधवार से हुई, जहां श्री सिद्धिविनायक गणपत्यार मंदिर (श्रीनगर), इंदिरा नगर में ऑल पीएम पैकेज इंप्लॉईज़ वेलफेयर एसोसिएशन, शिव मंदिर, और अनंतनाग स्थित वेस्सू केपी कॉलोनी में विशेष धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए गए।
पिछले वर्षों की तरह इस बार भी हवन और प्रसाद वितरण जैसे धार्मिक आयोजन किए जा रहे हैं। पुणे की श्री बाउसाहेब रंगारी ट्रस्ट (जिसके प्रमुख पुनीत बलन हैं) द्वारा इन आयोजनों में सहयोग किया जा रहा है। ट्रस्ट ने पर्यावरण के अनुकूल (इको-फ्रेंडली) गणेश मूर्तियाँ उपलब्ध कराईं हैं ताकि उत्सव का आयोजन पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदारी के साथ किया जा सके।
धार्मिक आयोजनों के अलावा, समुदाय को एकजुट करने के उद्देश्य से पांच दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजन संध्याएँ भी आयोजित की जा रही हैं, जो भक्ति और संस्कृति का उत्सव बनकर उभरी हैं।
उत्सव का समापन गणेश मूर्तियों के विसर्जन के साथ होगा। यह 31 अगस्त और 2 सितंबर को निकाली जाने वाली शोभायात्राओं के माध्यम से किया जाएगा, जो गणपत्यार मंदिर, शिव मंदिर और वेस्सू कॉलोनी से चलकर वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे विसर्जन स्थलों तक जाएगी। यह विसर्जन यात्रा गणेश उत्सव का प्रमुख आकर्षण होती है।
इस त्योहार की एक खास परंपरा ‘पन्न पूज़ा’ है, जिसमें भगवान गणेश को अर्पित करने के लिए मीठी रोटी बनाई जाती है। यह रोटी बाद में परिवारजनों और मित्रों में बाँटी जाती है, जो एकता और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है।
मिलिटेंसी के कठिन वर्षों के बावजूद, कश्मीर में स्थानीय मुस्लिम समुदाय न केवल इस उत्सव का साक्षी रहा है, बल्कि कई बार सहभागिता भी करता है। यह धार्मिक सहिष्णुता और साम्प्रदायिक सौहार्द का सशक्त उदाहरण है।
स्थानीय मुस्लिम आबादी की भागीदारी से यह स्पष्ट होता है कि कश्मीर की सांझी सांस्कृतिक विरासत आज भी जीवित है, और गणेश चतुर्थी जैसे पर्व इसमें भाईचारे और परस्पर सम्मान की भावना को और भी मजबूत करते हैं।