सैयदा सलवा फातिमाः भारतीय महिला पायलट जिसका चलता है आसमान में सिक्का

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 05-05-2022
सैयदा सलवा फातिमा
सैयदा सलवा फातिमा

 

रत्ना चोटरानी / हैदराबाद

भारतीय महिलाओं को जिन जटिलताओं का सामना करना पड़ता है, वे आंतरिक हैं, क्योंकि उसका पूरा डीएनए ऐसा है. भले ही उसकी दोहरी पहचान हो - घर पर भारतीय लड़की और जब वह बाहर निकलती है, तो पायलट.

बाधाओं के बावजूद महिलाएं घरेलू मोर्चे पर लोहे के चने चबा  रही हैं, जो भविष्य के लिए आशा का संकेत देती हैं, यहां एक ऐसी महिला की कहानी है, जो सभी बाधाओं के बावजूद पायलट बन गई है.

एक दशक पहले जब एक विनम्र बेकरी मजदूर की बेटी ने एक कार्यक्रम में जवाब दिया कि वह एक पायलट बनना चाहती है, तो क्या किसी ने सोचा था कि यह छोटी लड़की अपने सपनों को हकीकत में बदल देगी, लेकिन आज सैयदा सलवा फातिमा हिजाब पहने केवल एक पायलट नहीं हैं, शादी की है और सफलतापूर्वक महाद्वीपों की उड़ान भरी.

हैदराबाद में जन्मी इस छोटी लड़की, सैयदा सलवा फातिमा ने महाद्वीपों को पार करने के लिए हर हफ्ते कहीं न कहीं उड़ान भरी.

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पारंपरिक रूप से पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे में, कैप्टन सैयदा सलवा फातिमा ने एक वाणिज्यिक यात्री एयरबस 320 की कमान संभालने वाली, हिजाब पहनने वाली और  अब तक की सबसे कम उम्र की महिला का दुर्लभ गौरव अर्जित किया है. 30 वर्षीय फातिमा ने सामाजिक अस्वीकृति, वित्तीय असफलताओं और भाषा बाधाओं सहित सभी बाधाओं को दूर किया है. 

एक बेकरी मजदूर के घर में पैदा हुई एक मामूली परिवार से आने वाली, सैयदा सलवा फातिमा ने पायलट बनने का सपना देखा था और तब उसके सपने के लिए मजाक उड़ाया गया था. लेकिन उसके दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत ने उसे एक अविश्वसनीय यात्रा तक पहुँचाया और उसे अपने लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए प्रेरित किया, जिसने उसे एयरबस ए 320 को उड़ाने में सक्षम बनाया.

हालाँकि क गरीबी से त्रस्त शहर की लड़की से पायलट का व्यावसायिक लाइसेंस प्राप्त करना आसान नहीं रहा, क्योंकि उसे अपने जीवन की पुकार को प्राप्त करने के लिए कई बाधाओं को पार करना पड़ा.

यह पूछे जाने पर कि क्या कोई ऐसा क्षण था, जब उसने फैसला किया कि वह पायलट बनना चाहती है?

फातिमा कहती हैं, ‘‘दरअसल, मैं बहुत छोटी उम्र से ही आसमान की ओर देखती थी और मुझे याद है कि मैं इसे छूकर बादलों के बीच उड़ना चाहती थी! मैं अलग-अलग विमानों की तस्वीरें इकट्ठी करती थी, लेकिन लोग उसके सपने पर हंसते थे. उसके माता-पिता ने तब उसे इंजीनियरिंग के लिए खुद को तैयार करने का सुझाव दिया. बारहवीं कक्षा पास करने के बाद उसने एक उर्दू दैनिक द्वारा आयोजित इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग में दाखिला लिया.’’ उसकी कोचिंग के दौरान एक कार्यक्रम में उर्दू दैनिक के संपादक जाहिद अली खान ने उससे पूछा कि वह क्या बनना चाहती है और उसने तुरंत ‘पायलट’ का जवाब दिया. उसके विश्वास ने उसके सपनों को पंख देने का फैसला किया और उसे 2007 में आंध्र प्रदेश विमानन अकादमी में नामांकित किया गया. असफलताओं के बावजूद वह अडिग रही और आखिरकार उसने अपना प्रशिक्षण पूरा कर लिया. उसने 152 विमान में 200 घंटे की उड़ान और 123 घंटे की एकल उड़ान में प्रवेश किया. उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए सबसे अच्छा पल वह था, जब मैंने पहली बार उड़ान भरी थी. इसके अलावा, हर बार जब मैं बड़ी एयरबस 320 को कमान में उड़ाती हूं, तो यह अब तक का सबसे अच्छा एहसास है!’’

आपकी नौकरी का आपका पसंदीदा हिस्सा क्या है? वो कहती हैं, ‘‘मेरी वर्दी पहनने, यात्रा करने और सीखने का गौरव और निश्चित रूप से, अपने आप में उड़ना बहुत रोमांचक है.’’ उन्होंने भारत और विदेशों में अपने पूरे प्रशिक्षण के दौरान हिजाब पहना था. सैयदा सलवा फातिमा कहती हैं कि उन्होंने वर्दी के ऊपर अपना हिजाब पहना था. उन्होंने जो हिजाब पहना  था, उसके कारण कभी कोई समस्या नहीं हुई. वास्तव में खाड़ी उड्डयन अकादमी में बहरीन में उनकी सराहना की गई थी और हिजाब व उनकी वर्दी के साथ उनकी तस्वीरें एक पत्रिका में प्रकाशित हुई थीं.

वह कहती हैं कि यह कपड़े नहीं, बल्कि शिक्षा और क्षमता है, जो मदद करती है, चाहे वह विमानन हो या कोई अन्य पेशा. किसी को यह साबित करना होगा कि कोई वह करने में सक्षम है, जो उन्हें करना चाहिए.

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उन्हें 2013 में कमर्शियल पायलट लाइसेंस मिला, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि बड़े हवाई जहाजों को उड़ाने में सक्षम होने के लिए उन्हें मल्टी इंजन ट्रेनिंग और टाइप रेटिंग के लिए बड़े फंड की जरूरत है.

वह तब 24 वर्ष की थीं और उनके माता-पिता ने उसे शादी करने के लिए कहा. सैयदा सलवा फातिमा कहती हैं कि उनके पास कोई वित्त विकल्प नहीं था, उन्होंने शादी कर ली. हालाँकि जब वह अपने पारिवारिक जीवन में थीं, तब तेलंगाना सरकार ने उनके बहु-इंजन प्रशिक्षण और टाइप-रेटिंग के लिए 36 लाख रुपये की वित्तीय सहायता की घोषणा की. फातिमा कहती हैं कि उनकी बेटी वास्तव में उनके लिए भाग्यशाली थी.

पायलट सलवा फातिमा को 2015 में तेलंगाना सरकार की छात्रवृत्ति मिली और वह शेष प्रशिक्षण को पूरा करने में सक्षम थीं और 2019 फरवरी में इंडिगो में सह-पायलट के रूप में शामिल हुईं.

जब उन्होंने बच्चे को जन्म दिया, तो लोग उससे पूछते रहे कि क्या वह अब भी विमानन में अपना करियर बनाएगी. उनका जवाब था कि ‘‘मैंने लक्ष्य हासिल करने में इतना लंबा समय बिताया है, मैं पीछे क्यों हटूं ? मुझे आगे बढ़ना है.’’ एक साल के इंतजार के बाद, वह अपने मल्टी इंजन प्रशिक्षण के लिए तेलंगाना एविएशन अकादमी में शामिल हो गईं, लेकिन उनके लिए विमान उपलब्ध नहीं था. जब सरकार ने जीएमआर एविएशन एकेडमी को पैसे ट्रांसफर किए और वह प्रशिक्षण शुरू करने वाली थीं, तो दुर्घटना के कारण विमान को रोक दिया गया था. तमाम बाधाओं के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और तेलंगाना सरकार से उन्हें प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजने की अपील की.

वह अब एक पायलट के रूप में इंडिगो के लिए काम कर रही है लेकिन अपने दूसरे बच्चे के साथ मातृत्व अवकाश पर हैं. वह उसके बाद अपने जुनून के साथ अपना करियत जारी रखेंगी.

उड्डयन जैसे पुरुष-प्रधान पेशे में एक महिला होना कैसा है? क्या आपने किसी भेदभाव का सामना किया है और यदि हां, तो आपने इससे कैसे निपटा? वह कहती हैं, ‘‘एक महिला के रूप में मुझे यात्रा से संबंधित पेशे में काम करने वाली किसी भी अन्य महिला की तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. ध्यान केंद्रित रहना महत्वपूर्ण रहा है, और व्यावसायिकता की भावना होने से मुझे मदद मिली है.’’

वह कहती हैं, ‘‘यह वो समय है कि महिलाएं इस परवाह करना बंद करें कि दूसरे क्या सोचते हैं.यह विश्वास करने का समय है कि हम जो करते हैं, उसमें हम सर्वश्रेष्ठ हैं. अगर तुम खुद नहीं मानोगे, तो कोई और विश्वास नहीं करेगा.’’