आवाज द वाॅयस / अनकापल्ले ( आंध्र प्रदेश)
आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम तट पर बसे छोटे से मछुआरा मोहल्ले रामबिल्ली मंडल के गरीब परिवार से जन्मे ‘सुरदा’ प्रसाद सूरी की कहानी असली ज़िद, जुनून और साहित्यिक विजय की मिसाल बन चुकी है. 25 वर्षीय प्रसाद ने अपनी पहली तेलुगु उपन्यास “मैरावण” से 2025 का प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार जीता और बन गए अपनी जाति — वड़ा बलिजा समुदाय — के पहले युवा पुरस्कार विजेता.
राजनीतिक-तटीय अनकापल्ले जिले के इस गांव में पैदा हुआ प्रसाद, मछुआरे माता-पिता सुरदा चंद्रराव और नुकरत्नम का बेटा है. बचपन में पढ़ने-लिखने की सुविधा से दूर, परिवार के पहले स्नातक और लेखक बनने की राह पर चले यह युवा, अपनी कहानी का संगमरमर खुद तराशने में कामयाब रहे.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार,प्रथम उपन्यास “माई नेम इज चिरंजीवी” (19 वर्ष की उम्र में) में उन्होंने विजाग की संस्कृति और किशोरों के संघर्षों को आत्मकथात्मक अंदाज़ में पिरोया. लेकिन “मैरावण” ने ही उन्हें नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया—न केवल एक साहित्यिक कृति बल्कि तीन साल की गहन शोध और वड़ा बलिजा समुदाय के सौ साल पुराने इतिहास, प्रवास और अस्तित्व विरोध की गाथा.
पुस्तक में सामाजिक उत्पीड़न, लिंग भेदभाव और राजनीति से जुड़ी चुनौतियों को गहराई से उकेरा गया है. प्रसाद ने कहा, “मैं चाहता था ये उपन्यास मछुआरा समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड बने.” जब वे ट्रेन में बड़ौदा जा रहे थे तभी पुरस्कार की घोषणा सुनकर उनके खुशी के आंसू रुक न सके.
उनकी लेखन शैली में अमिताव घोष और सलमान रुश्दी की ऐतिहासिक गहनता और सिनेमाई प्रस्तुति झलकती है, जो कोविड-19 समय में देखी फिल्मों और वेब सीरीज़ से प्रेरित है. उनका तीसरा उपन्यास “बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स” अपनी शैक्षणिक यात्रा को साहित्यिक स्वरूप में पेश करता है.
प्रसाद कहते हैं, “मैं वही उपन्यास लिखता हूँ जो मैं पढ़ना चाहता हूँ.” उन्होंने दलितों, पिछड़े समुदायों और हाशिए पर रहने वालों की कहानियों को अपने किरदारों में साकार किया है—वे कहते हैं, “इन कहानियों को उन्हीं द्वारा लिखा जाना चाहिए जो स्वयं इन्हीं समाजों से जुड़े हैं.”
जवाहरलाल नेहरू वास्तुकला और ललित कला विश्वविद्यालय, हैदराबाद से स्नातक, और अब महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा में पुरातत्व के छात्र, प्रसाद सूरी अपने छोटे-से शुरूआती गांव से निकलकर साहित्य जगत में नया इतिहास गढ़ रहे हैं. उन्होंने अपने समुदाय और संपूर्ण साहित्य जगत के लिए एक नई प्रेरणा दी है—कि सपने तब भी सच हो सकते हैं, जब घर से तक़नीक और संसाधन दूर ही क्यों न हो.
✨ प्रसाद सूरी की इस यात्रा ने साबित कर दिया है कि प्रतिभा और दृढ़ निश्चय से न केवल ख्वाब पूरे होते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ें भी मजबूत बनती हैं.